यह क्या हो रहा है, यह क्या कर रहे हो

Edited By ,Updated: 19 Feb, 2016 01:27 AM

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नई दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) भारत के अग्रणी शिक्षा संस्थानों में से है, परंतु अब कुछ समय से यह राजनीतिक गतिविधियों का शिकार हो गया है

नई दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) भारत के अग्रणी शिक्षा संस्थानों में से है, परंतु अब कुछ समय से यह राजनीतिक गतिविधियों का शिकार हो गया है और इन दिनों इसके कुछ छात्रों पर लगे देशद्रोह के आरोपों के कारण यह भारी चर्चा में है।

 
गत 9 फरवरी को यहां आतंकवादी अफजल गुरु की तीसरी बरसी पर एक कार्यक्रम जे.एन.यू. छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने उमर खालिद की सलाह पर आयोजित किया। इस कार्यक्रम में चरमपंथी छात्र कश्मीर बारे एक फिल्म भी दिखाना चाहते थे लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी। इसी कार्यक्रम में कुछ छात्रों ने भारत विरोधी नारे भी लगाए। 
 
10 फरवरी को ए.बी.वी.पी. के सदस्यों द्वारा कुलपति से इसकी शिकायत करने के बाद कुछ अज्ञात छात्रों पर राजद्रोह का केस दर्ज करके कन्हैया कुमार को 12 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया गया।
 
13 फरवरी को इस मामले पर शुरू हुए राजनीतिक घमासान में जहां भाजपा ने राष्ट विरोधी गतिविधियां करने वालों को कड़ी सजा देने की मांग की वहीं वामदलों, कांग्रेस और जद (यू) ने इस मामले को दमन की कार्रवाई बताया और कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए। 
 
इसी बीच जहां राहुल गांधी ने छात्रों की आवाज दबाने वालों को देशद्रोही बताया वहीं 15 फरवरी को इस मामले ने अचानक नाटकीय मोड़ ले लिया जब दिल्ली की पटियाला हाऊस अदालत में दिन भर चले हंगामे के दौरान वकीलों के एक समूह ने अदालत में आए जे.एन.यू. के कुछ छात्रों, अध्यापकों और अनेक मीडिया कर्मियों से, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं, मारपीट की।
 
पत्रकारों के अनुसार, ‘‘यह हमला पूर्णत: पूर्व नियोजित था और वकीलों ने कहा था कि आज हम कुछ करके दिखाएंगे।’’  एक वकील विक्रम सिंह चौहान ने स्वीकार किया कि वह तो उस दिन ‘देशद्रोहियों’ को सबक सिखाने के लिए तैयार होकर ही आया था। 
 
यही नहीं भाजपा के विधायक ओ.पी. शर्मा ने परिसर के बाहर नारेबाजी करने वाले एक प्रदर्शनकारी को पीटा और कहा, ‘‘मैं बचपन से यही करता आ रहा हूं। मुझे मारा गया तो तीन-चार हाथ मैंने भी मार दिए।’’ 
 
गौरतलब है कि 17 फरवरी को कन्हैया को अदालत में पेश करने के अवसर पर भी सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों के बावजूद वकीलों ने ‘देशद्रोहियों’ को फांसी देने की मांग करते हुए कन्हैया से धक्का-मुक्की और नारेबाजी की। 
 
दिल्ली पुलिस इन घटनाओं पर मूकदर्शक बनी रही। दिल्ली के पुलिस आयुक्त बस्सी ने इस घटना को मामूली बताया और कहा कि ‘‘कन्हैया कुमार के विरुद्ध काफी सबूत हैं।’’ 
 
इस बीच जहां देश विरोधी नारे लगाने वाले छात्रों का समर्थन करने पर राहुल गांधी के विरुद्ध इलाहाबाद की एक अदालत में देशद्रोह का केस दर्ज करवाया गया है, वहीं राजनीतिक क्षेत्रों में इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। 
 
इससे क्षुब्ध प्रमुख वकील तथा पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा है कि ‘‘कन्हैया कुमार ने जो कुछ किया है वह ङ्क्षनदनीय है लेकिन देशद्रोह नहीं है। किस व्यक्ति ने क्या किया है इसका फैसला अदालत को करना है।’’ भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कन्हैया को निर्दोष बताया है तथा सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठï वकील प्रशांत भूषण ने भी कहा है कि ‘‘मैं कन्हैया कुमार की पैरवी करूंगा क्योंकि वह एक अच्छा छात्र नेता है जिसे गलत ढंग से फंसाया गया है।’’
 
एक ओर जहां जे.एन.यू. प्रकरण को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है वहीं अंतर्राष्ट्रीय प्रैस भी मोदी सरकार पर विरोधियों की आवाज दबाने का आरोप लगा रही है। इंगलैंड के अग्रणी दैनिक ‘टैलीग्राफ’ ने नरेंद्र मोदी को ‘हिन्दू नेता’ बताते हुए लिखा है कि ‘‘उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में बोलने के अधिकार को कुचला जा रहा है तथा असहिष्णुता बढ़ी है।’’ 
 
जे.एन.यू. प्रकरण में कश्मीरी छात्रों की संलिप्तता के दृष्टिïगत जहां जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी. और भाजपा द्वारा सरकार गठन की बातचीत बीच में ही लटक गई है वहीं 23 फरवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र पर भी इसका गहरा प्रभाव पडऩे की संभावना है। 
आगे जो भी हो, इस सारे घटनाक्रम से देश में असहिष्णुता का उभार भी दिखाई देने लगा है। जहां 16 फरवरी को दक्षिण भारत के कन्नूर में माकपा कार्यकत्र्ताओं ने आर.एस.एस. के एक कार्यकत्र्ता की हत्या कर दी वहीं 17 फरवरी को कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकत्र्ताओं ने चंडीगढ़ स्थित माकपा मुख्यालय पर पथराव किया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। 
 
अब जबकि कन्हैया को तिहाड़ जेल भेज दिया गया है, जे.एन.यू. के छात्रों के आंदोलन की कमान छात्र संघ की तेज-तर्रार उपाध्यक्ष तथा कश्मीर से ही संबंधित कामरेड शैहला ने संभाल कर आंदोलन जारी रखने की घोषणा की है। अत: इससे पहले कि स्थिति और बिगड़े, इस आंदोलन से किस प्रकार निपटना है इस पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए।
 

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