‘मां-बाप को खर्च न देने वाले बेटे को जेल’ व ‘तंग करने वाली बहू को घर से निकाला’

Edited By Pardeep,Updated: 28 Oct, 2018 02:16 AM

jail and tortious daughter in law from son who does not spend money for parents

भारत में बुजुर्गों को अतीत में अत्यंत सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, परन्तु आज संतानों द्वारा उनसे दुव्र्यवहार का रुझान बढ़ जाने से उनकी स्थिति दयनीय होकर रह गई है। इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार यह लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत...

भारत में बुजुर्गों को अतीत में अत्यंत सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, परन्तु आज संतानों द्वारा उनसे दुव्र्यवहार का रुझान बढ़ जाने से उनकी स्थिति दयनीय होकर रह गई है। इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार यह लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं, परंतु आमतौर पर वे यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन भुगतना पड़ता है। 

हाल ही में 2 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें अपनी संतानों के हाथों पीड़ित माता-पिता को न्याय पाने के लिए अदालत की शरण जाना पड़ा। पहला मामला अहमदाबाद का है जहां एक पारिवारिक अदालत ने अपने माता-पिता को खर्चा न देने पर ‘कांति भाई सोलंकी’ नामक एक 45 वर्षीय व्यक्ति को 1545 दिनों की कैद की सजा सुनाई है। रणछोड़ भाई का अपने 2 बेटों व बहुओं के साथ गुजारा भत्ते के मामले में विवाद चल रहा था। योग्य अदालत ने 30 महीने पूर्व रणछोड़ भाई के दोनों बेटों कांति भाई और दया भाई को आदेश दिया था कि वे दोनों अपनी 68 वर्षीय मां यशोमति बेन और 69 वर्षीय पिता रणछोड़ भाई सोलंकी को प्रतिमास 900 रुपए प्रत्येक के हिसाब से खर्च दिया करें। दया भाई ने तो आदेश का पालन शुरू कर दिया और प्रतिमास अपने माता-पिता को 900 रुपए के हिसाब से खर्च देता आ रहा है परंतु कांति भाई ने उक्त आदेश का पालन नहीं किया जिस पर रणछोड़ भाई तथा यशोमति बेन ने पारिवारिक अदालत में शिकायत की। 

इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कांति भाई सोलंकी को अपनी मां को खर्चा न देने के एवज में 735 दिन और पिता को खर्चा न देने की एवज में और 810 दिन जेल में बिताने का आदेश देकर जेल भेज दिया। एक अन्य मामले में बम्बई हाईकोर्ट ने 9 अक्तूबर को बांद्रा में रहने वाले बुजुर्ग दम्पति की गुहार पर उनकी बहू को उनके मकान से एक महीने के भीतर निकल जाने का आदेश सुनाया। बुजुर्ग दम्पति ने अदालत में अपनी बहू पर उन दोनों को तंग और परेशान करने का आरोप लगाया था। इससे पूर्व अदालत ने 44 वर्षीय महिला के पति (बुजुर्ग दम्पति के पुत्र) को अपनी पत्नी की पसंद का एक फ्लैट ढूंढ लेने का आदेश दिया था लेकिन जब महिला ने उसके पति द्वारा शॉर्ट लिस्ट किए गए सभी 49 फ्लैट नापसंद कर दिए तो हाईकोर्ट ने महिला को दो विकल्प दिए कि या तो वह 35,000 से 40,000 मासिक किराए के बीच अपनी पसंद का फ्लैट ढूंढ ले या अपने पति द्वारा ढूंढे हुए फ्लैटों में से कोई एक फ्लैट चुन ले। 

इसके साथ ही न्यायमूर्ति शालिनी फंसालकर ने यह भी कहा कि ‘‘अपने जीवन की संध्या से गुजर रहे बुजुर्गों को उनकी बहू के हाथों पीड़ित होते रहने देना उनके प्रति अत्याचार होगा।’’ अदालत ने कहा, ‘‘वर्षों से महिला का अपने ससुर से झगड़ा चला आ रहा है और वह बुजुर्ग पर उससे वासनात्मक छेड़छाड़ करने तक का आरोप लगा चुकी है। यदि ऐसा है तो ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि इस हालत में भी वह अपने ससुराल घर में ही क्यों रहना चाहती है? अदालत इन तथ्यों की उपेक्षा नहीं कर सकती।’’ माननीय न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘बुजुर्गों ने आरोप लगाया है कि उनकी बहू उन्हें गालियां निकालती है और उन्हें परेशान करती है। सिर्फ इस आधार पर उसे अपने ससुराल घर में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह 49 वैकल्पिक आवास रद्द कर चुकी है। अत: उसे एक महीने के भीतर अपने पति के साथ ससुर का घर छोड़ कर चले जानेका आदेश दिया जाता है।’’ उक्त दोनों ही घटनाएं इस बात की साक्षी हैं कि आज बुजुर्ग अपनी ही संतानों के हाथों किस कदर उत्पीड़ित और अपमानित हो रहे हैं। यदि न्यायपालिका इनकी रक्षा के लिए न हो तो आज की कलियुगी संतानें तो अपने माता-पिता को सड़क पर ही बिठा दें।—विजय कुमार  

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