कानपुर का ‘दरिंदा’ ‘विकास दुबे’ हुआ गिरफ्तार

Edited By ,Updated: 10 Jul, 2020 03:03 AM

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2-3 जुलाई की मध्य रात्रि को उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिकरू गांव में 8 पुलिस कर्मियों की हत्या का मुख्यारोपी कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पुलिस से बचने के लिए दो दिनों तक कानपुर के शिवली इलाके में एक दोस्त के घर रहा। वहां से वह फरीदाबाद पहुंचा और...

2-3 जुलाई की मध्य रात्रि को उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिकरू गांव में 8 पुलिस कर्मियों की हत्या का मुख्यारोपी कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पुलिस से बचने के लिए दो दिनों तक कानपुर के शिवली इलाके में एक दोस्त के घर रहा। वहां से वह फरीदाबाद पहुंचा और न्यू इंदिरा काम्प्लैक्स में अपने एक रिश्तेदार के यहां रुका। अगले ही दिन वह अपने साथी के साथ एक गैस्ट हाऊस में रुका और फिर आसानी से एक गाड़ी में फरीदाबाद से उज्जैन पहुंच गया। 

विकास दुबे 9 जुलाई को सुबह पौने आठ बजे अपने कुछ साथियों के साथ वहां महाकाल के मंदिर में गया। उसने वहां 250 रुपए की पर्ची कटवाई और दर्शनों के लिए कतार में लग गया। इस दौरान वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों कोशक होने पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी तो उन्होंने आकर उसे गिरफ्तार कर लिया। यह भी कहा जाता है कि विकास दुबे ने एक योजना के तहत आत्मसमर्पण किया जिसे गिरफ्तारी का नाम दिया गया। वह मंदिर में इसलिए सरैंडर करना चाहता था ताकि वह एनकाऊंटर में मारे जाने से बच सके। उसे पता था कि मंदिर में पुलिस गोली नहीं चलाएगी। विकास दुबे ने अपने महाकाल मंदिर पहुंचने की सूचना स्वयं ही किन्हीं स्रोतों से पुलिस तक पहुंचाई थी। इस बीच पुलिस द्वारा विकास दुबे और उसके साथियों को पकडऩे के लिए उत्तर प्रदेश में की जा रही ताबड़तोड़ छापेमारी में जहां विकास के 5 गुर्गे मारे गए वहीं उसके अनेक साथियों और बाद में उसकी पत्नी तथा बेटे को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने विकास दुबे की गिरफ्तारी को मध्य प्रदेश पुलिस की बड़ी कामयाबी बताया और कहा है कि ‘‘हमारी पुलिस से कोई अपराधी बच कर नहीं जा सकता।’’ परंतु उसकी नाटकीय गिरफ्तारी पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं तथा पूछा जा रहा है कि इतनी बंदिशों के बाद भी वह फरीदाबाद से उज्जैन कैसे पहुंच गया। कानपुर कांड में शहीद हुए डी.एस.पी. देवेंद्र मिश्रा के रिश्तेदार कमलाकांत मिश्रा ने कहा है कि ‘‘विकास को मौत से बचाया गया है। इस तरह गिरफ्तारी नहीं होती। यह सब मिलीभगत है। विकास को अब तक जिन्होंने बचाया है उन लोगों के कहने पर ही उसने गिरफ्तारी दी है।’’ इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूछा है कि ‘‘यह आत्मसमर्पण है या गिरफ्तारी?’’ 

जो भी हो, अब जबकि विकास दुबे को गिरफ्तार कर ही लिया गया है पुलिस द्वारा अपराधी तत्वों से मिलीभगत और मुखिबरी किए जाने के मामलों ने पुन: लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लिहाजा आवश्यकता इस बात की है कि न सिर्फ विकास दुबे के विरुद्ध जल्द से जल्द आरोप सिद्ध करके उसे कठोरतम दंड दिया जाए बल्कि उसे संरक्षण और सहायता प्रदान करने वाले उसके राजनीतिक संपर्कों, उस तक आवश्यक सूचनाएं पहुंचाने वाले पुलिस कर्मियों और समाज के महत्वपूर्ण लोगों का पता लगा कर उनके विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाई की जाए।—विजय कुमार

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