किम को सौदेबाजी के लिए राजी होना ही पड़ा

Edited By Pardeep,Updated: 23 Apr, 2018 01:13 AM

kim had to agree to bargain

वित्तीय बाजार अक्सर राजनीतिक बदलावों के संकेतों का सर्वोत्तम जरिया रहे हैं। ऐसे में उत्तर कोरियाई नेता किम-जोंग द्वारा तुरंत प्रभाव से सभी मिसाइल टैस्ट स्थगित करने तथा परमाणु परीक्षण बंद करने की अचानक हुई घोषणा के बाद पूर्व एशियाई बाजारों में दिखाई...

वित्तीय बाजार अक्सर राजनीतिक बदलावों के संकेतों का सर्वोत्तम जरिया रहे हैं। ऐसे में उत्तर कोरियाई नेता किम-जोंग द्वारा तुरंत प्रभाव से सभी मिसाइल टैस्ट स्थगित करने तथा परमाणु परीक्षण बंद करने की अचानक हुई घोषणा के बाद पूर्व एशियाई बाजारों में दिखाई दिए सकारात्मक रुझान से स्पष्ट हो गया कि दक्षिण-पूर्व एशिया इस बदलाव की कितनी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। 

21 अप्रैल से उत्तर कोरिया द्वारा अपने परमाणु परीक्षण बंद करने के बारे में किम की ओर से हुई इस एकतरफा घोषणा की अपेक्षा शायद दक्षिण कोरियाई नेता मून-जे-ईन को भी नहीं थी जो शांति वार्ता में प्रमुख मध्यस्थ हैं और जिनसे अगले सप्ताह किम की मुलाकात तय थी। मून के माता-पिता उत्तर कोरिया से आए आप्रवासी थे इसलिए वह हमेशा से अमेरिका तथा उत्तर कोरिया के बीच शांति वार्ता पर बल देते रहे हैं। 

किम को वार्ता के लिए एक टेबल पर लाने का श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को ही दिया जाना चाहिए। महज 6 सप्ताह पूर्व तक किम तथा डोनाल्ड एक-दूसरे को धमका रहे थे और किम को ‘मिसाइल मैन’ के नाम से पुकारते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने यहां तक कह दिया था कि यदि किम की ओर से कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो वह जून में प्रस्तावित वार्ता से कदम पीछे खींच लेंगे। 1950-53 के कोरियाई युद्ध के समय से ही उत्तर तथा दक्षिण कोरिया दोनों तकनीकी रूप से एक-दूसरे से युद्धरत रहे हैं। यह बात गौर करने वाली है कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ही कोरियाई प्रायद्वीप दो देशों में विभाजित हुआ था। किम तथा उनके पिता जैसे एक के बाद एक तानाशाहों के सत्ता हासिल करने के साथ उत्तर कोरिया जहां एक निरंकुश राष्ट्र बन गया वहीं लोकतंत्र को अपनाने वाला दक्षिण कोरिया एक मुक्त बाजार बन गया। 

विश्व स्तर पर उत्तर कोरिया को अक्सर अलग-थलग किया जाता रहा जो अपने आस-पड़ोस के देशों को परमाणु हथियारों से धमकाता रहा और हाल के दिनों में तो उसने दक्षिण कोरिया तथा जापान ही नहीं, अमेरिका तक को धमकाते हुए ऐसी मिसाइल विकसित करने का दावा किया जो परमाणु हथियारों के साथ अमेरिका तक पहुंच सकती है, वह भी तब जबकि उसकी अपनी जनता भूखों मर रही थी। किम के झुकने या समझौता करने को राजी होने का एक प्रमुख कारण यही हो सकता है कि उत्तर कोरिया पर बैन लगाने के मामले में चीन ने अमेरिका, यू.के. तथा फ्रांस का साथ दिया। वास्तव में उत्तर कोरिया के विरुद्ध हालिया यू.एन. पाबंदियों को इतने प्रभावी ढंग से अपनाया गया कि उसे सौदेबाजी के लिए राजी होना पड़ा। 

हालांकि, ऐसे संकेत हैं कि यू.एन. के फैसले के तहत निर्यात पर पाबंदी के बावजूद टंगस्टन, सिक्का, जिस्त, तांबा तथा सोना कंसैंट्रेट्स जैसे खनिजों की तस्करी ट्रकों में भर कर चीन के साथ लगते उत्तर कोरियाई कस्बे ल्योसेम में हो रही थी। किम के शासन के इन वर्षों के दौरान अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता रहा है कि उसे हटा ही क्यों नहीं दिया जाता परंतु ऐसा करने पर वहां अराजकता फैल जाती और चीन को हस्तक्षेप करने का अवसर मिल जाता। दूसरी ओर विंटर ओलिम्पिक्स के दौरान उत्तर कोरियाई अधिकारियों को दक्षिण कोरिया जाने का अवसर मिलने, सत्ता में आने के पश्चात हाल में पहली विदेश यात्रा के रूप में किम के चीन जाने तथा सी.आई.ए. के डायरैक्टर माइक पोम्पियो के साथ किम की गुप्त बैठक ने वर्तमान स्थिति पर पहुंचने की आधारशिला रखी। 

माना जा रहा है कि इतने स्पष्ट रूप से तथा खुल कर परमाणु कार्यक्रम को बंद करने की बात कहने के बावजूद कोई गारंटी नहीं है कि जून में किम इस बाबत किसी तरह की संधि पर हस्ताक्षर करेगा क्योंकि पाबंदियां हटाए जाने के पश्चात अपने वायदे तोडऩे अथवा संधि को मानने से इंकार करने के लिए भी किम को जाना जाता है। इससे पहले कि राष्ट्रपति ट्रम्प तथा मून वर्तमान हालात का श्रेय लें, किम पर लगाम लगाने तथा पूर्व एशिया विशेषकर दक्षिण कोरिया तथा जापान के साथ शांति बहाली के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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