Edited By ,Updated: 09 Sep, 2016 01:50 AM
पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछुड़े हुए आज 34 वर्ष हो गए हैं। नि:संदेह आज वह सशरीर हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं परंतु सूक्ष्म रूप में ‘पंजाब केसरी समूह’...
पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछुड़े हुए आज 34 वर्ष हो गए हैं। नि:संदेह आज वह सशरीर हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं परंतु सूक्ष्म रूप में ‘पंजाब केसरी समूह’ पर उनका आशीर्वाद आज भी बना हुआ है।
पूज्य पिता जी ने जहां अपने संपादकीय लेखों में देश की समस्याओं, राजनीतिक विषयों एवं मुद्दों पर अपने निर्भीक एवं सटीक विचार नि:संकोच व्यक्त किए वहीं अपनी विचारधारा से जुड़े हर मुद्दे पर दृढ़ स्टैंड लिया और उस पर आजीवन अडिग रहे। लाला जी के जीवन के इसी पहलू को उजागर करता ‘पंजाब केसरी’ के दिनांक 29 जून,1977 के अंक में प्रकाशित उनका संपादकीय लेख यहां प्रस्तुत है :‘मेरे संबंध में कोई भ्रांति न हो’
‘‘मैंने जिस दिन से पत्रकारिता में प्रवेश किया है, रचनात्मक आलोचना करने से कभी भी संकोच नहीं किया। मैं जब पंजाब प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री था, तब भी कांग्रेसी सरकारों की रचनात्मक आलोचना से संकोच नहीं करता था। मैं भारत में पहला पत्रकार था जिसने लिखा कि पं. नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं। मैंने रिजनल फार्मूला को भी खुले शब्दों में तर्क के साथ लागू न करने का अनुरोध किया था।
मैंने पंजाब कांग्रेस का महामंत्री बनने से पहले भी और बाद में भी पंजाब की कांग्रेसी वजारतों के कामों की रचनात्मक आलोचना की। इस पर मेरी शिकायत बराबर ऊपर होती रहती थी मगर पं. नेहरू व पंजाब मामलों के इंचार्ज मौलाना आजाद सदा यही कहते थे कि हर कांग्रेसी को कांग्रेस के कामों की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार है। मेरे लेखों के विरुद्ध कभी भी कोई कार्रवाई मेरे कांग्रेस में रहने तक नहीं की गई।
मैंने कांग्रेस तब छोड़ी जब मुझे स. कैरों का विरोध न करने को कहा गया। यह मेरे लिए असहनीय था। हालांकि मौलाना आजाद ने मुझे कहा कि मैं कांग्रेस न छोड़ूं वह सब ठीक कर देंगे पर इसके साथ ही उन्होंने मुझे यह भी बताया कि स. कैरों ने पं. नेहरू से कहा है कि ‘‘यदि जगत नारायण ‘ङ्क्षहद समाचार’ में मेरा विरोध करते रहे तो मैं सरकार अच्छी तरह नहीं चला पाऊंगा।’’ अत: मौलाना आजाद ने मुझसे कहा कि मैं कुछ देर के लिए चुप हो जाऊं तो अच्छा रहेगा।
उत्तर में मैंने कहा कि मैं यह नहीं कर सकता। इस पर आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने मेरे विरुद्ध इतनी ही कार्रवाई की कि मैं एक वर्ष तक किसी महत्वपूर्ण पद पर न रहूं और प्रोटैस्ट के तौर पर मैंने कांग्रेस छोड़ दी।
कांग्रेस छोडऩे के बाद मैं किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुआ। केवल एक वर्ष के लिए ‘भारतीय क्रांति दल’ में शामिल हुआ था क्योंकि उसने घोषणा की थी कि वह गांधी जी के रास्ते पर चलेगा पर मैंने महसूस किया कि वह घोषणा सारहीन थी, अत: मैंने उसे भी छोड़ दिया और फिर किसी पार्टी में शामिल नहीं हुआ।
मैंने कांग्रेस छोडऩे के बाद भी पहले की तरह ही स्पष्ट शब्दों में रचनात्मक आलोचना जारी रखी। राज्यसभा में भी मैंने जितने भाषण दिए, देश व पंजाब के हित में ही दिए। फिर जब तक मैं 28 जून, 1975 को गिरफ्तार नहीं हो गया तब तक मैं अपने विचार पूरी निर्भीकता से इन कालमों में रखता रहा।
रिहाई के बाद लोकसभा के चुनाव में मैंने अपने लेखों और भाषणों द्वारा जनता पार्टी का भरपूर समर्थन किया। अगर मैं यह कहंू कि पंजाब, हिमाचल, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की अनुपम सफलता में मेरे लेखों व भाषणों का भी 5-10 प्रतिशत तो अवश्य है तो गलत नहीं होगा। हालांकि इसका सही श्रेय तो जनता को ही है।
जनता पार्टी ने सत्तारूढ़ होने के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम किया लोगों को वाणी और लेखनी की स्वतंत्रता देने का। आज जबकि केंद्र के अलावा विभिन्न प्रदेशों में भी जनता पार्टी की सरकारें बन गई हैं, मैं निवेदन करना चाहता हूं कि एक पत्रकार के रूप में जनता पार्टी के कामों की रचनात्मक आलोचना भी उसी तरह निर्भीकतापूर्वक करूंगा जिस तरह कांग्रेस में रहते हुए भी कांग्रेसी सरकारों के कामों की रचनात्मक आलोचना मैं करता था क्योंकि यह एक पत्रकार का सर्वोपरि कत्र्तव्य और धर्म है, इसलिए कोई भ्रांति किसी भी भाई को इस संबंध में मेरे विषय में नहीं होनी चाहिए।
एक बात मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि बेशक मेरा अधिकांश जीवन कांग्रेस में बीता है, मैं वहां बड़े से बड़े प्रादेशिक पद पर भी रहा हूं और अ.भा. कांग्रेस कमेटी का भी कई वर्ष सदस्य रहा हूं मगर कांग्रेस में पुन: शामिल होने का मेरा कोई इरादा न पहले था न अब है।’’ —जगत नारायण
समय साक्षी है कि पूज्य लाला जी ने अपने उक्त संपादकीय में जो बातें लिखीं वह कितनी सत्य निकलीं और जनता पार्टी के शासन में भी स्वस्थ पत्रकारिता के अपने धर्म से कभी नहीं डिगे। आज उनके उक्त संपादकीय के साथ उन्हें स्मरण करते हुए हम पुन: संकल्प करते हैं कि जिन आदर्शों पर वह अडिग रहे हम भी उन्हीं आदर्शों पर चलते हुए सत्य और निर्भीक, न्यायपूर्ण एवं निष्पक्ष पत्रकारिता के पथ से कभी विचलित न होंगे।