देश में सफल विपक्षी मोर्चा बनाने के लिए नेताओं को निजी महत्वाकांक्षा त्यागनी होगी

Edited By ,Updated: 04 Aug, 2021 02:32 AM

leaders must give up personal ambition to build a successful opposition front

माह जून के अंत में तृणमूल कांग्रेस के नेता तथा राष्ट्रीय मंच के संस्थापक यशवंत सिन्हा ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को देश के राजनीतिक घटनाक्रम पर अनौपचारिक चर्चा करने के लिए राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के

माह जून के अंत में तृणमूल कांग्रेस के नेता तथा राष्ट्रीय मंच के संस्थापक यशवंत सिन्हा ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को देश के राजनीतिक घटनाक्रम पर अनौपचारिक चर्चा करने के लिए राकांपा सुप्रीमो शरद पवार के नई दिल्ली स्थित आवास पर आमंत्रित किया। हालांकि इसमें भाग लेने के लिए कांग्रेस के पांच नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था परंतु किन्हीं कारणों से वे बैठक में शामिल नहीं हो पाए। 

26 जुलाई को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 5 दिनों के दिल्ली दौरे पर आईं जिसके दौरान वह विरोधी दलों के नेताओं सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और द्रमुक की कनिमोझी आदि से मिलीं।
अपना दौरा सफल होने का दावा करते हुए ममता ने कहा कि लोगों में मोदी सरकार के प्रति बहुत रोष है व इसे उसी तरह जनरोष के परिणाम भुगतने होंगे जिस तरह 1977 में इंदिरा सरकार, 1980 में जनता पार्टी तथा 1989 में राजीव गांधी की सरकार को भुगतने पड़े थे। ममता बनर्जी का कहना है कि चाहे कोई भी इस मोर्चे का नेतृत्व करे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। वह तो कार्यकत्र्ता रह कर ही खुश हैं। 

27 जुलाई को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं इनैलो सुप्रीमो चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने विरोधी दलों का एक तीसरा मोर्चा गठित करने की इच्छा व्यक्त करते हुए दावा किया कि यदि एक मजबूत तीसरा मोर्चा कायम हो जाए तो भाजपा की गठबंधन सरकार का समर्थन करने वाले अनेक दल इसे छोड़ जाएंगे, जिससे अंतत: देश में मध्यावधि चुनाव कराने पड़ेंगे। 

इसी शृंखला में 1 अगस्त को ओम प्रकाश चौटाला के गुरुग्राम स्थित आवास पर नीतीश कुमार की भोज वार्ता हुई जिसमें जद (यू) नेता के.सी. त्यागी भी मौजूद थे। चर्चा है कि चौटाला चाहते हैं कि इस मोर्चे का नेतृत्व नीतीश करें, परंतु उन्होंने अभी अपने पत्ते नहीं खोले। इस मुलाकात के अगले ही दिन 2 अगस्त को नीतीश कुमार ने पेगासस जासूसी मामले में केंद्र सरकार को घेर रहे विरोधी दलों के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि ‘‘पेगासस केस की निश्चित रूप से जांच होनी चाहिए।’’ 2 अगस्त को ही दिल्ली में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बीच भेंट हुई जिसमें उन्होंने आपसी कुशलक्षेम पूछने के अलावा खेत-खलिहान, गैर बराबरी, अशिक्षा, किसानों, गरीबों और बेरोजगारों के लिए चिंता व्यक्त की। 

3 अगस्त को पेगासस जासूसी कांड और किसानों के मुद्दे को लेकर संसद के दोनों सदनों में जारी गतिरोध के बीच राहुल गांधी ने ‘कांस्टीच्यूशन क्लब’ में विरोधी दलों के 17 नेताओं को चाय पर आमंत्रित किया। इसमें तृणमूल कांग्रेस, सपा, शिवसेना, राकांपा, राजद आदि 15 दलों के नेता शामिल हुए, जिन्होंने मोदी सरकार को घेरने की रणनीति के संबंध में मंथन किया। बैठक में अन्य बातों के अलावा राहुल गांधी ने नेताओं को संसद तक साइकिल मार्च करने का आह्वïान भी किया जिसके बाद एकता दिखाने के लिए विपक्षी नेता पैट्रोल, डीजल, रसोई गैस और खाद्य वस्तुओं की महंगाई के विरोध में राहुल गांधी के साथ साइकिल चला कर संसद पहुंचे। हालांकि विरोधी दलों की एकता के प्रयास अभी शुरूआती दौर में हैं  परंतु इसकी सफलता के लिए प्रयास कर रहे नेताओं को कांग्रेस नेता एम. वीरप्पा मोइली की यह ‘चेतावनी’ याद रखनी चाहिए कि :

‘‘केवल नरेंद्र मोदी विरोधी एजैंडे से विपक्षी दलों को भाजपा का मुकाबला करने में मदद नहीं मिलेगी। अत: राजनीतिक दलों को आपस में मिल कर काम करने के लिए एक सांझा न्यूनतम कार्यक्रम पेश करना चाहिए।’’ ‘‘विपक्षी दलों को अभी नेतृत्व की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि यदि ये दल इसी बात पर चर्चा करते रहेंगे कि किस नेता या राजनीतिक संगठन को इस समय इसका नेतृत्व करना चाहिए तो ऐसा मोर्चा सफल नहीं होगा।’’ 

राजनीतिक पर्यवेक्षक इस तरह की कवायद के चाहे जो भी अर्थ लगाएं, मगर वास्तविकता यही है कि किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में मजबूत सत्तापक्ष और मजबूत विपक्ष का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि एक मजबूत और एकजुट विपक्ष ही सत्तापक्ष को निरंकुश होने से रोक सकता है। इस लिहाज से विभिन्न विरोधी दलों द्वारा एकता प्रयास सही हैं परंतु विपक्षी एकता के लिए उन्हें निजी महत्वाकांक्षाओं का परित्याग करना होगा और यदि  देश में विरोधी दलों को मिलाकर कोई संयुक्त मोर्चा बन पाता है तो इससे देश और लोकतंत्र दोनों का ही भला होगा।—विजय कुमार

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