‘अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टियों में जाने का’ ‘नेताओं में बढ़ता रुझान’

Edited By ,Updated: 30 Dec, 2020 04:25 AM

leaving your party and moving to other parties increasing trend among leaders

पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा अपने मूल दल को अलविदा कह कर दूसरे दलों में जाने का रुझान काफी तेज हो गया है। आए दिन किसी न किसी छोटे-बड़े नेता के अपने राजनीतिक दल छोड़ कर दूसरे दल में शामिल होने

पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा अपने मूल दल को अलविदा कह कर दूसरे दलों में जाने का रुझान काफी तेज हो गया है। आए दिन किसी न किसी छोटे-बड़े नेता के अपने राजनीतिक दल छोड़ कर दूसरे दल में शामिल होने की खबर आ जाती है जिसके इसी महीने के उदाहरण पाठकों के लिए पेश हैं : 

* 4 दिसम्बर को हरियाणा के पूर्व सिंचाई मंत्री ‘जगदीश नेहरा’ के बेटे ‘सुरेन्द्र नेहरा’ ने आंदोलनकारी किसानों की मांगों के समर्थन में भाजपा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। 
* 4 दिसम्बर को गोवा में ‘आम आदमी पार्टी’ के पूर्व संयोजक तथा 2017 के चुनाव में पार्टी की ओर से सी.एम. कैंडीडेट रहे ‘एल्विस गोम्स’ ने पार्टी की रणनीति से नाखुशी जताते हुए पार्टी छोड़ दी।
* 19 दिसम्बर को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का दायां हाथ माने जाने वाले ‘तृणमूल कांग्रेस’ के कद्दावर बागी नेता ‘शुभेन्दु अधिकारी’ तथा आधा दर्जन से अधिक पार्टी सांसदों, पूर्व सांसदों और विधायकों तथा प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने अपने समर्थकों सहित भाजपा का दामन थाम लिया। ‘शुभेन्दु अधिकारी’ का कहना है कि ‘‘तृणमूल कांग्रेस में अपने 20 वर्ष नष्ट करने पर मैं शर्मिंदा हूं।’’ 

* 25 दिसम्बर को असम की कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायकों ‘अजंता नेयोग’  तथा ‘राजदीप गोवाला’ ने त्यागपत्र दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। 
* 25 दिसम्बर को ही असम से विधायक ‘पबिन्द्र डेका’ ने भी ‘असम गण परिषद’ (ए.जी.पी.) से त्यागपत्र देकर नवगठित ‘असम जातीय परिषद’ (ए.जे.पी.) का दामन थाम लिया और उसी दिन ए.जे.पी. के कार्यकारी अध्यक्ष चुन लिए गए। 
* 25 दिसम्बर को ही अरुणाचल में जनता दल (यू) के 7 में से 6 विधायकों ने पार्टी को अलविदा कह कर जद (यू) की सहयोगी भाजपा का दामन थाम लिया जिससे जद (यू) और भाजपा गठबंधन के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गई है। 

* 26 दिसम्बर को भाजपा की गठबंधन सहयोगी ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी’ के संयोजक एवं नागौर के सांसद ‘हनुमान बेनीवाल’ ने किसानों के आंदोलन के समर्थन में ‘राजग’ का साथ छोडऩे की घोषणा कर दी। 
* 26 दिसम्बर को ही पंजाब भाजपा की कार्यकारिणी के सदस्य एवं पूर्व सांसद ‘हरिन्द्र सिंह खालसा’ ने कृषि कानूनों के विरुद्ध पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देते हुए केन्द्र सरकार द्वारा एकतरफा तौर पर लागू किए गए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की। 

* 27 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व महासचिव ‘पंडित विनोद मिश्रा’ ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और कहा, ‘‘कांग्रेस पार्टी अपनी नीतियों और स्थापित परम्पराओं से भटक गई है। पार्टी में लगातार कार्यकत्र्ताओं का अपमान हो रहा है तथा गांधी परिवार स्वयं को सी.बी.आई. तथा ई.डी. से बचाने के लिए पार्टी का इस्तेमाल कर रहा है।’’
* और अब 29 दिसम्बर को गुजरात के भरूच से भाजपा सांसद ‘मनसुख भाई वसावा’ ने पार्टी नेतृत्व द्वारा अपनी बात न सुनी जाने से नाराज होकर पार्टी से त्यागपत्र दे दिया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि आगामी बजट सत्र में वह लोकसभा से भी त्यागपत्र दे देंगे। 

मोदी सरकार में राज्यमंत्री का पदभार भी संभाल चुके ‘मनसुख भाई वसावा’ पार्टी के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे जो हाल ही में राज्य की भाजपा सरकार के तौर-तरीकों पर सवाल उठा कर चर्चा में आए  थेे। अपनी-अपनी पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली से नाराज होकर पार्टी छोडऩे वाले नेताओं के ये तो चंद उदाहरण हैं। इनके अलावा भी और न जाने कितने लोग अपनी-अपनी पाॢटयों की कार्यशैली से नाराज़ बैठे हैं। वास्तव में जहां पार्टी सदस्यों द्वारा अपनी मूल पार्टी को अलविदा कहना निजी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है वहीं इसका एक कारण उनकी मूल पार्टी के नेतृत्व द्वारा उनकी उपेक्षा और बात न सुनना भी है जिससे उनके अंदर असंतोष पैदा होता है। 

नेताओं द्वारा अपनी राजनीतिक आस्था बदलने और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते उन्हें विपरीत विचारधारा वाली पाॢटयों में जाने से रोकने के लिए संसद में 1985 में दलबदल विरोधी कानून लागू किया गया था और इसमें 2002 में संशोधन किया गया था परंतु इसके बाद भी नेताओं में ‘आया राम, गया राम’ का रुझान जारी है। इसे रोकने के लिए दल-बदल विरोधी कानून की धाराओं में बदलाव करके इसे और अधिक सख्त करने की जरूरत है क्योंकि इस कानून की त्रुटियों के चलते ही नेता दल बदलते हैं और कई बार राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति पैदा हो जाती है।-विजय कुमार  

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