तमिलनाडु के 94 वर्षीय राजनीतिज्ञ एम. करुणानिधि का निधन

Edited By Pardeep,Updated: 08 Aug, 2018 03:41 AM

m karunanidhi 94 year old politician of tamil nadu dies

तमिलनाडु के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मुथुवेल करुणानिधि का संक्षिप्त बीमारी के बाद चेन्नई के कावेरी अस्पताल में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। तमिलनाडु के प्रमुख राजनीतिक दल द्रमुक के संस्थापक सी.एन. अन्नादुराई की मृत्यु के बाद 1969 से वह इसके नेता चले आ...

तमिलनाडु के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मुथुवेल करुणानिधि का संक्षिप्त बीमारी के बाद चेन्नई के कावेरी अस्पताल में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। तमिलनाडु के प्रमुख राजनीतिक दल द्रमुक के संस्थापक सी.एन. अन्नादुराई की मृत्यु के बाद 1969 से वह इसके नेता चले आ रहे थे और 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपने 60 वर्ष के राजनीतिक करियर में हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकार्ड बनाया। 

राजनीति में प्रवेश से पूर्व उन्होंने एक पटकथा लेखक के रूप में तमिल फिल्म इंडस्ट्री में काम किया और अनेक कहानियां, नाटक, उपन्यास और संस्मरण लिखे। करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया और भाषण कौशल द्वारा वह जल्दी ही एक राजनेता बन गए। वह द्रविड़ आंदोलन से भी जुड़े रहे तथा समाजवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली सामाजिक सुधारवादी कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करने के लिए किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता उन्मूलन, आत्म सम्मान, जमींदारी उन्मूलन और धार्मिक पाखंड के उन्मूलन जैसे विषयों पर फिल्में बनाईं। 1950 के दशक में उनके लिखे हुए 2 नाटकों पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। 

‘जस्टिस पार्टी’ के अलगिरि स्वामी के भाषण से प्रेरित होकर वह 14 साल की उम्र में राजनीति में आ गए और हिन्दी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने स्थानीय युवाओं का एक संगठन भी बनाया था जो ‘मनावर नेसन’ नामक हस्तलिखित अखबार भी निकालता था। उन्होंने ‘तमिल मनावर मंद्रम’ नामक एक छात्र संगठन की स्थापना भी की जो द्रविड़ आंदोलन का पहला छात्र विंग था। हिन्दी विरोधी प्रदर्शनों से उन्हें तमिल राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने में सहायता मिली और इस सिलसिले में जेल यात्रा भी की। वह तिरुचिरापल्ली जिले के पुल्लीथलाई विधानसभा क्षेत्र से 1957 में तमिलनाडु विधानसभा के लिए पहली बार चुने गए। वह 1961 में द्रमुक के कोषाध्यक्ष, 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उप-नेता, 1967 में जब द्रमुक सत्ता में आई तो सार्वजनिक कार्य मंत्री बने और 1969 में अन्नादुराई की मौत के बाद करुणानिधि को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 

अनेक पुरस्कारों से सम्मानित श्री करुणानिधि पर भ्रष्टïाचार के आरोप भी लगे। उन पर सरकारी आयोग द्वारा ‘वीरानाम परियोजना’ के लिए निविदाएं आबंटित करने में भ्रष्टïाचार का आरोप लगाया गया। इसके अलावा चेन्नई में फ्लाई ओवर बनाने में भ्रष्टाचार में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। उनके नाम के साथ अनेक विवाद जुड़े। राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में करुणानिधि पर लिब्रेशन टाइगर्स आफ तमिल इलम को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया गया था। करुणानिधि के विरोधियों एवं उनकी पार्टी के कुछ सदस्य और अन्य राजनीतिक प्रेक्षकों ने इन पर परिवार पोषण को बढ़ावा देने व वंशवाद का आरोप भी लगाया है। 

राजनीति में न तो स्थायी दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन। इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि की पार्टी ने केंद्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही समर्थन दिया। दक्षिण भारत की कम से कम 50 फिल्मों की कहानियां तथा संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे राजनीतिज्ञ के तौर पर थी जिसने अपनी कलम से तमिलनाडु की तकदीर लिखी। श्री करुणानिधि अपने पीछे अपने पुत्रों एम.के. अझागिरी, एम.के. स्टालिन और पुत्री कन्निमोझी आदि के रूप में समृद्ध राजनीतिक विरासत छोड़ गए हैं। अब द्रमुक का भविष्य उनके वारिसों के हाथ में है और यह समय ही बताएगा कि वे उनकी विरासत को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं। 

इस समय समूचा तमिलनाडु अपने कलाईनार (कला का विद्वान) के निधन के शोक में डूब गया है और देश ने एक जमीन से जुड़े नेता, गहन विचारक और ऐसी हस्ती को खो दिया है जिसने गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए जीवन भर काम किया। श्री करुणानिधि का अपने पार्टी वर्करों पर इतना प्रभाव था कि उनकी बीमारी का आघात सह न पाने के कारण उनके 21 समर्थकों की मृत्यु हो गई।—विजय कुमार 

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