महबूबा मुफ्ती के ‘नेतृत्व में’ ‘बिखर रहा पी.डी.पी. का कुनबा’

Edited By Pardeep,Updated: 16 Dec, 2018 03:04 AM

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महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन रूबिया सईद का 7 दिसम्बर, 1989 को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) ने उस समय अपहरण कर लिया था जब वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की केंद्रीय सरकार में इनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री...

महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन रूबिया सईद का 7 दिसम्बर, 1989 को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) ने उस समय अपहरण कर लिया था जब वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की केंद्रीय सरकार में इनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री थे। 

रूबिया को आतंकवादियों से छुड़वाने के लिए केंद्रीय सरकार ने 5 खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने की मांग स्वीकार कर ली थी। अपहरण के 122 घंटे बाद रूबिया रिहा हो गई जिसके लिए विपक्षी दलों ने सरकार की अत्यधिक आलोचना की थी। घाटी में हालात भी तभी से तेजी से खराब होने शुरू हुए और 1989 में यहां से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का सिलसिला भी शुरू हो गया। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि यदि उस समय सरकार आतंकवादियों के आगे घुटने न टेकती तो कश्मीर में हालात ऐसे नहीं होते। महबूबा मुफ्ती हमेशा अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर राजनीति में सक्रिय रहीं और पिता तथा पुत्री ने 1999 में मिल कर ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ (पी.डी.पी.) बनाई जिसकी इस समय वह अध्यक्ष हैं। 

बहरहाल, महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद 4 अप्रैल, 2016 को भाजपा के सहयोग से जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बनीं परंतु कानून व्यवस्था नियंत्रित करने में असफल रहने के कारण भाजपा द्वारा पी.डी.पी. से समर्थन वापस ले लेने पर 19 जून, 2018 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। बाद में तेजी से बदलते घटनाक्रम में पी.डी.पी. के अंदर महबूबा की कार्यशैली को लेकर असहमति की आवाजें उठने लगीं। उन पर सरकार और पार्टी में अपने परिवार को बढ़ावा देने के  आरोप भी लग रहे हैं। उन्होंने अपने फिल्म फोटोग्राफर भाई तसद्दुक हुसैन मुफ्ती को गत वर्ष दिसम्बर में कैबिनेट मंत्री नियुक्त करवा दिया था जिससे पार्टी में असंतोष बढ़ा। 

पी.डी.पी. की बदहाली के लिए महबूबा की नीतियों को जिम्मेदार करार देते हुए अनेक वरिष्ठï पी.डी.पी. नेताओं और विधायकों ने महबूबा के विरुद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद कर रखा है। जून में महबूबा की सरकार गिरने के बाद अब तक कम से कम 4 पूर्व विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं जिनमें इमरान रजा अंसारी, आबिद अंसारी, मोहम्मद अब्बास वानी और पूर्व वित्त मंत्री डा. हसीब द्राबू शामिल हैं। इमरान अंसारी ने 3 जुलाई को कहा, ‘‘मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद महबूबा ने उनकी पार्टी को ‘पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी’ की बजाय ‘फैमिली डैमोक्रेटिक पार्टी’ में बदल दिया जिसे भाइयों, चाचाओं और अन्य रिश्तेदारों द्वारा चलाया जा रहा था।’’ पी.डी.पी. का ‘थिंक टैक’ माने जाने वाले पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू ने 6 दिसम्बर को पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और उसके 2 दिन बाद ही 8 दिसम्बर को पूर्व विधायक आबिद अंसारी ने भी पार्टी छोड़ दी। इस अवसर पर आबिद अंसारी ने कहा कि पार्टी ने प्रदेश के लोगों को नीचा दिखाया है इसलिए वह इसके झूठ और छल का हिस्सा नहीं रहना चाहते। 

11 दिसम्बर को तंगमर्ग से पी.डी.पी. के पूर्व विधायक अब्बास वानी ने पार्टी छोडऩे की घोषणा कर दी और अगले ही दिन 12 दिसम्बर को उत्तर कश्मीर के उड़ी निर्वाचन क्षेत्र से पी.डी.पी. के वरिष्ठï नेता एवं स्टेट सैक्रेटरी राजा एजाज अली खान ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। राजा एजाज अली खान ने अपने त्यागपत्र में लिखा है कि पार्टी में उनका दम घुट रहा था। वह अपने उड़ी क्षेत्र के पार्टी वर्करों के भारी दबाव के अधीन पार्टी से त्यागपत्र दे रहे हैं जिनके साथ पार्टी ने अपने सत्ताकाल में उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया है। स्पष्टïत: महबूबा मुफ्ती की परिवार पोषण वाली नीतियों तथा अन्य कारणों से पार्टी आंतरिक कलह का सामना कर रही है और यदि ऐसे ही चलता रहा तो इसे टूटने से बचाना महबूबा के लिए आसान नहीं होगा तथा इन परिस्थितियों में लगता है कि महबूबा मुफ्ती का आगे का राजनीतिक सफर कठिनाइयों से भरपूर ही होगा।—विजय कुमार 

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