मुस्लिम संगठनों द्वारा देश भर में ‘शराबबंदी’ लागू करने की प्रशंसनीय मांग

Edited By ,Updated: 12 Jan, 2016 12:00 AM

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हालांकि शराब तथा अन्य सभी नशे जहर हैं परंतु हमारे नेता तो शराब को नशा ही नहीं मानते और हमारी सरकारें चूंकि इसकी बिक्री से होने वाली भारी-भरकम आय को खोना नहीं चाहतीं

हालांकि शराब तथा अन्य सभी नशे जहर हैं परंतु हमारे नेता तो शराब को नशा ही नहीं मानते और हमारी सरकारें चूंकि इसकी बिक्री से होने वाली भारी-भरकम आय को खोना नहीं चाहतीं इसलिए इस ओर से आंखें मूंद कर वे शराब का उत्पादन घटाने की बजाय हर वर्ष इसे बढ़ावा ही दे रही हैं।

सरकारों की इसी उदासीनता के कारण अब देश में शराबबंदी के पक्ष में आवाजें उठने लगी हैं क्योंकि शराब के नशे में व्यक्ति पलक झपकते ही ऐसे भयानक अपराध कर गुजरता है जिन्हें होशोहवास में होने पर करने से पूर्व वह हजार बार सोचेगा। इसीलिए इसे ‘सब अपराधों की मां’ कहा जाता है। 
 
कुछ समय पूर्व जम्मू-कश्मीर में ‘कारवां-ए-इस्लामी’ नामक संगठन नशाबंदी लागू करने की मांग कर चुका है और गत वर्ष अक्तूबर में ‘इत्तेहाद-ए-मिल्लत काऊंसिल’ नामक मुस्लिम संगठन के प्रधान मौलाना तौकीर रजा खान ने उत्तर प्रदेश में शराब के सेवन पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा था कि : 
 
‘‘उत्तर प्रदेश में हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों ही समुदायों के लोगों के धर्म स्थल हैं। यहां शराब की बिक्री का मतलब तीर्थ स्थान पर शराब की बिक्री के समान है। यहां शराब की बिक्री इतनी आसान बना दी गई है कि छोटी उम्र के बच्चे भी रेहडिय़ों पर शराब पीते नजर आते हैं। यदि शराब पर रोक लगा दी जाए तो प्रदेश में हत्या, डकैती, बलात्कार जैसे अपराधों पर रोक लगाई जा सकती है।’’
 
गुजरात का उदाहरण देते हुए उन्होंने शराबबंदी लागू न करने के पक्ष में सरकार का यह तर्क ठुकरा दिया कि इससे राजस्व का घाटा पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ‘‘गुजरात में शराबबंदी से हुई राजस्व की क्षति का वहां की अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और यह क्षति तो अन्य माध्यमों से पूरी की जा सकती है परंतु चरित्र नष्ट हो जाए तो उसकी क्षतिपूर्ति किसी तरह नहीं हो सकती।’’
 
गत वर्ष जहां उत्तर प्रदेश के हापुड़, महाराष्ट के औरंगाबाद व बिहार के नालंदा आदि में महिलाओं ने शराब के ठेकों के विरुद्ध प्रदर्शन किए, वहीं देश के अनेक भागों से होती हुई जागृति की यह लहर जम्मू-कश्मीर तक भी पहुंच चुकी है और वहां भी अपने पतियों की नशों की लत के विरुद्ध विद्रोह करते हुए मात्र 2 महीनों में कम से कम 40 महिलाओं ने नशेड़ी पतियों से तलाक लिया है। 
 
और अब 4 जनवरी को ‘जमायत-ए-इस्लामी हिंद’ (जे.आई.एच.) ने यौन अपराधों पर रोक लगाने के लिए देश भर में शराब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। जमायत के प्रधान सईद जलालुद्दीन उमरी ने इस सम्बन्ध में कहा है कि :
 
‘‘महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों के लिए 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोरों के साथ बालिग जैसा व्यवहार करना ही महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने के लिए काफी नहीं है। सरकार को किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराधों को एक सामाजिक समस्या के रूप में देखना चाहिए। इसके लिए बुराई की जड़ पर प्रहार करना आवश्यक है। देश भर में शराब के सेवन पर रोक लगाना ऐसे ही सुधारात्मक उपायों में से एक है।’’
 
‘‘हमारा यह मानना है कि केवल कानून और अधिक सजा के प्रावधान से ही यौन अपराधों पर रोक नहीं लग पाएगी। इस बुराई की जड़ सामाजिक ताने-बाने में निहित है और इसका सुधार भी सामाजिक स्तर पर ही होना चाहिए। लोगों के मन में आध्यात्मिकता की भावना जगा कर और चरित्र निर्माण द्वारा ही एक अपराध मुक्त समाज की रचना की जा सकती है।’’ 
 
‘‘इसके लिए यौन विकृति उत्पन्न करने वाले सब रास्ते बंद करने होंगे और अश्लीलता तथा कामुकता के सब व्यापारियों को जेल की सलाखों के पीछे डालना होगा। शराब और यौन अपराधों के बीच गहरा रिश्ता है और इसीलिए हम देश भर में पूर्ण नशाबंदी लागू करने की मांग करते हैं।’’ 
 
देश के सामाजिक जीवन में शुचिता लाने के उद्देश्य से यह बात निविवाद रूप से कही जा सकती है कि देश में शराब के सेवन से होने वाले अपराधों को रोकने के लिए सरकार को जितनी ऊर्जा और धन लगाना पड़ता है, देश में शराबबंदी लागू करने पर अपराध घटने के परिणामस्वरूप सरकार बड़े आराम से अपनी इस ऊर्जा और संसाधनों को अन्य विकासात्मक गतिविधियों पर लगा सकती है।
 

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