सरकार की बड़ी जीत मुस्लिम बहनों को मिलेगा ‘तीन तलाक’ से छुटकारा

Edited By ,Updated: 31 Jul, 2019 12:12 AM

muslim sisters get rid of three divorces

तीन तलाक’ पर प्रतिबंध के लिए कानून लाना भाजपा सरकार के अनेक सुधारवादी कार्यक्रमों में से एक था जिसमें अंतत: 30 जुलाई को इसे सफलता मिल ही गई जब विधेयक का विरोध करने वाली अधिकांश पार्टियों के राज्यसभा से गैर-हाजिर होने और विधेयक को सिलैक्ट कमेटी में...

‘तीन तलाक’ पर प्रतिबंध के लिए कानून लाना भाजपा सरकार के अनेक सुधारवादी कार्यक्रमों में से एक था जिसमें अंतत: 30 जुलाई को इसे सफलता मिल ही गई जब विधेयक का विरोध करने वाली अधिकांश पार्टियों के राज्यसभा से गैर-हाजिर होने और विधेयक को सिलैक्ट कमेटी में भेजने सहित सभी संशोधन प्रस्ताव गिर जाने के बाद अंतत: यह विधेयक पारित हो गया। 

‘तीन तलाक’, जुबानी तलाक व एकतरफा देने वाले तलाक के विरुद्ध संघर्षरत ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ की खातून शेख के अनुसार 90 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं ‘तीन तलाक’ तथा ‘निकाह हलाला’ के विरुद्ध हैं। किसी भी तलाकशुदा मुसलमान महिला को अपने पहले पति के साथ  दोबारा जीवन बिताने के लिए ‘निकाह हलाला’ करना पड़ता है जिसके लिए उसे किसी दूसरे पुरुष से शादी करके तलाक लेना पड़ता है। ‘तीन तलाक’ और ‘निकाह हलाला’ को लेकर समाज में परस्पर विरोधी विचार हैं। कोई इसके पक्ष में तो कोई इसके विरोध में बोल रहा है। ‘तीन तलाक’ और ‘निकाह हलाला’ पर प्रतिबंध लगाने के लिए भाजपा तभी से प्रयत्नशील थी जब यह 2014 में पहली बार सत्ता में आई थी। 

2017 में सुप्रीमकोर्ट के अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बैंच ने एक केस में 3-2 से फैसला सुनाते हुए ‘तीन तलाक’ को अïवैध घोषित कर दिया और सरकार को इस बारे 6 महीने में कानून लाने को कहा था। इसके बाद सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक बनाया और 28 दिसम्बर, 2017 को लोकसभा में पेश किया। इसमें मौखिक, लिखित, इलैक्ट्रॉनिक (एस.एम.एस., ई-मेल, व्हाट्सएप) माध्यम द्वारा तलाक को अमान्य करार दिया गया। इसे अनेक दलों का विरोध झेलना पड़ा और राज्यसभा में यह विधेयक पास नहीं हो सका। तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बावजूद इसका इस्तेमाल होने पर सरकार इस बारे एक अध्यादेश लाई जिसे सितम्बर, 2018 में राष्टï्रपति ने स्वीकृति दे दी। इस अध्यादेश के अनुसार ‘तीन तलाक’ देने पर पति के लिए 3 साल की सजा का प्रावधान रखा गया तथा अगस्त, 2018 में इसमें अनेक संशोधन किए गए। 

जनवरी, 2019 में इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले 17 दिसम्बर, 2018 को एक बार फिर सरकार ने यह विधेयक लोकसभा में पारित किया परन्तु एक बार फिर विपक्ष ने इसे राज्यसभा में अटका दिया और सरकार ने फिर से अध्यादेश जारी कर इसे अपराध घोषित कर दिया। इस अध्यादेश की अवधि समाप्त होने से पहले ही लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो गया और यह विधेयक संसद में पेश नहीं हो सका। आखिर भाजपा ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद फिर से विधेयक को सदन में पेश करने की तैयारी की और 21 जून, 2019 को विपक्ष के विरोध के बीच यह विधेयक 74 के मुकाबले 186 मतों के समर्थन से पारित करवा दिया गया। कुछ बदलावों के साथ लोकसभा में पारित होने के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे दोबारा 30 जुलाई को राज्यसभा में पेश किया। 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान सहित विश्व के अनेक मुसलमान देशों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा पर प्रतिबंध है और भारत के सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश होने के नाते अब राज्यसभा में भी इस विधेयक के पारित हो जाने से यहां मुस्लिम बहनों को ‘हलाला’ जैसी परम्परा से छुटकारा मिलेगा उनका वैवाहिक जीवन भी अन्य महिलाओं जैसा हो जाएगा। हालांकि मुसलमानों के एक वर्ग को इससे कुछ तकलीफ अवश्य होगी।—विजय कुमार 

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