नारायण मूर्ति की सलाह देश में कम पढ़े-लिखे और अनपढ़ों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत

Edited By Pardeep,Updated: 07 Sep, 2018 03:44 AM

need to create jobs for less educated in the country

मैसूर में 20.8.1946 को जन्मे ‘श्री नागवार रामाराव नारायण मूर्ति’ भारत की सुप्रसिद्ध साफ्टवेयर कम्पनी ‘इंफोसिस टैक्नोलॉजीज’ के संस्थापक हैं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण ये इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे जिसे देखते हुए एक दयालु...

मैसूर में 20.8.1946 को जन्मे ‘श्री नागवार रामाराव नारायण मूर्ति’ भारत की सुप्रसिद्ध साफ्टवेयर कम्पनी ‘इंफोसिस टैक्नोलॉजीज’ के संस्थापक हैं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण ये इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे जिसे देखते हुए एक दयालु अध्यापक डा. कृष्णमूर्ति ने इनकी प्रतिभा को पहचान कर इनकी सहायता की। इनकी सफलता की कहानी 1981 में उस समय शुरू हुई जब इन्होंने बम्बई के एक कमरे में अपने 6 दोस्तों के साथ मिल कर मात्र 10,000 रुपए की पूंजी से ‘इंफोसिस कम्पनी’ की स्थापना की। 

सफलता की सीढिय़ां चढ़ते हुए 1991 में उन्होंने इसे ‘पब्लिक लिमिटेड’ कम्पनी में बदल दिया और इसके बाद की कहानी सारी दुनिया जानती है। इनकी कम्पनी के शेयरों की बदौलत अनेक लोग मालामाल हो गए और उनमें से अनेक श्री नारायण मूर्ति व इनकी पत्नी को भगवान की तरह पूजते हैं। वर्ष 2005 में उन्हें विश्व का आठवां सर्वश्रेष्ठï प्रबंधक चुना गया। देश-विदेश के अनेक शीर्ष सम्मानों से अलंकृत नारायण मूर्ति को ‘फाच्र्यून’ पत्रिका द्वारा आज के दौर के 12 महानतम उद्यमियों की सूची में शामिल किया गया और भारत में आऊटसोर्सिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए ‘टाइम’ पत्रिका ने इन्हें ‘भारतीय आई.टी. सैक्टर का ‘पिता’ करार दिया था। 

श्री नारायण मूर्ति को ‘फोब्र्स एशिया’ द्वारा जारी शीर्ष दानवीरों की सूची में भी शामिल किया जा चुका है जिन्होंने अपनी 2.25 बिलियन डालर सम्पत्ति में से आधी सम्पत्ति लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए दान कर दी है। शिक्षा के क्षेत्र में भारी योगदान करने के अलावा नारायण मूर्ति ने पढऩे में इनकी मदद करने वाले डा. कृष्णमूॢत के नाम पर एक छात्रवृत्ति भी जारी की है। वह भारत में बढ़ रही आर्थिक असमानता को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। इनका मानना है कि शक्तिशाली और अमीर लोगों को इसे दूर करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि देश में शांति और सद्भावना का वातावरण पैदा किया जा सके और ऐसा न करने पर देश में ङ्क्षहसा बढ़ेगी। 

एक अंग्रेजी दैनिक को दिए साक्षात्कार में नारायण मूर्ति ने कहा, ‘‘देश में अमीर, शक्तिशाली और उच्च वर्ग के लोग आशा का संचार कर सकते हैं। उनकी जिम्मेदारी है कि वे आशा को जीवित रखें। यदि अमीर, शक्तिशाली और उच्च वर्ग के लोग यह जिम्मेदारी नहीं लेंगे  तो देश में हिंसा पैदा होगी।’’ ‘‘पूंजीवाद के नेताओं को भी खुद को और अपने मित्रों को विभिन्न लाभ प्रदान करने में आत्म संयम बरतने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं होगा तो समाज में शांति और सद्भावना नहीं हो सकेगी। कुछ मामलों में ऐसा नहीं हुआ है। मैं आशा करता हूं कि लोगों में सद्बुद्धि उत्पन्न होगी।’’ नारायण मूर्ति अतीत में सार्वजनिक रूप से ‘इंफोसिस’ सहित विभिन्न उद्यमों में उच्च सीनियर मैनेजमैंट तथा बेसिक लैवल पर वेतनों एवं कर्मचारियों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति में असमानता पर अप्रसन्नता व्यक्त कर चुके हैं। 

इनका कहना है, ‘‘उत्पादकता की तकनीकों में सुधार के चलते भी रोजगारों में कमी आई है जिससे रोजगार के मोर्चे पर ङ्क्षचताजनक स्थिति उत्पन्न हो गई है। भारत जैसे जिस देश में 40 करोड़ कम पढ़े-लिखे और 40 करोड़ अनपढ़ हों वहां निर्माण एवं कम तकनीकी सेवाओं वाले क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है।’’ ‘‘प्रधानमंत्री द्वारा मेक इन इंडिया पर जोर देना और देशी-विदेशी सहयोग से उद्योग लगाना अच्छी बात है लेकिन हमें देश में ऐसे उद्योग भी लगाने होंगे जिनमें कम पढ़े-लिखे और अनपढ़ों को खपाया जा सके।’’ ‘‘इसी परिप्रेक्ष्य में अफसरशाही को फैक्टरी इंस्पैक्टरों की निरंकुशता को समाप्त करने और जी.एस.टी. व अन्य मुद्दों संबंधी समस्याओं को भी दूर करने की जरूरत है। इससे उद्यमिता में वृद्धि होगी।’’ 

‘‘अत: राजनीतिज्ञों, अफसरशाहों और व्यापारिक नेताओं के लिए जरूरी है कि वे मिल कर बैठें और इस बात पर मनन करें कि किस प्रकार विकास में तेजी और रोजगार के अधिक अवसरों की सृष्टि की जा सकती है।’’ श्री नारायण मूर्ति एक छोटे स्तर और बिल्कुल नीचे से अपने करियर की शुरूआत करके सफलता के शीर्ष पर पहुंचे जिसके लिए उन्हें देश-विदेश में भरपूर सम्मान मिला। इतनी उच्च क्षमता वाले व्यक्ति के परामर्श की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अत: राजनीतिज्ञों, अफसरशाहों और व्यापारिक नेताओं को आपस में मिल-बैठकर यथाशीघ्र उनके सुझावों पर विचार करना चाहिए। अन्यथा सामाजिक असमानता बनी रहने पर देश में हिंसा पैदा होने की आशंका को रद्द नहीं किया जा सकता।—विजय कुमार 

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