परिवार नियोजन को धक्का, अब नलबंदी आप्रेशनों में लापरवाही सरकार ऐसे डाक्टरों पर एक्शन ले

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Oct, 2017 12:32 AM

negligence in the movement of nalbandi operations

‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए आजकल बच्चों को बेहतर भविष्य देने की चाह में अधिकांश दम्पति अपना परिवार एक या दो बच्चों तक सीमित रखने को अधिमान देने लगे हैं ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देकर बेहतर नागरिक बना सकें। यही...

‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए आजकल बच्चों को बेहतर भविष्य देने की चाह में अधिकांश दम्पति अपना परिवार एक या दो बच्चों तक सीमित रखने को अधिमान देने लगे हैं ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देकर बेहतर नागरिक बना सकें।

यही कारण है कि अधिकांश दम्पति एक या दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन का आप्रेशन अर्थात नसबंदी या नलबंदी करवा लेते हैं। हालांकि अधिकांश लोग आप्रेशन के बाद निश्चिंत हो जाते हैं परंतु ये आप्रेशन शत-प्रतिशत अचूक नहीं होते और इसी कारण आए दिन आप्रेशनों के विफल होने के समाचार आते रहते हैं तथा बच्चे को पालने में असमर्थ माता-पिता दुविधापूर्ण स्थिति में फंस जाते हैं। 

झारखंड के देवघर के सारठ प्रखंड के लखना गांव की रहने वाली कलावती नामक महिला ने 25 जनवरी, 2014 को मधुपुर अनुमंडल अस्पताल में नलबंदी करवाई। कलावती और उसके विकलांग पति जतिन पंडित को विश्वास था कि अब वह गर्भवती नहीं होगी परंतु वह फरवरी, 2017 में पुन: गर्भवती हो गई जबकि इनका एक बेटा और बेटी पहले से हैं। कलावती का कहना है कि गरीबी की वजह से बच्चों की परवरिश में दिक्कत को देखते हुए जतिन ने उसकी नलबंदी करवाई थी, अत: उसने डाक्टर पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हर्जाने का दावा किया तथा कहा कि तीसरे बच्चे की परवरिश कर पाना उनके लिए कठिन है। 

ऐसा ही एक मामला 16 जुलाई को सामने आया जब छत्तीसगढ़ के कांकेर में पति-पत्नी दोनों की नसबंदी के बावजूद पत्नी 4 साल बाद फिर गर्भवती हो गई जबकि परिवार में पहले ही चार बच्चे हैं। पत्नी गोदावरी बाई के अनुसार उसने जुलाई, 2012 में एक नलबंदी शिविर में नलबंदी करवाई थी जबकि इसके एक साल बाद पति सुखचंद ने अक्तूबर, 2013 में नसबंदी करवाई परंतु वह नवम्बर, 2016 में पुन: गर्भवती हो गई। हरियाणा में पलवल के सरकारी अस्पताल में एक महिला ने 2015 में नलबंदी का आप्रेशन करवाया था परंतु 2016 में वह पुन: गर्भवती हो गई और उसके घर पांचवीं बेटी पैदा हो गई। 

इसी प्रकार 3 अक्तूबर, 2017 को रुड़की के निकट नारसन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डाक्टरों की लापरवाही सामने आई और वहां जनवरी माह में नलबंदी करवाने वाली एक महिला पुन: गर्भवती हो गई। पहले से ही उसके 2 बच्चे हैं और अब दो गर्भ में पल रहे हैं। इस संबंध में नवीनतम मामला उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का है जहां वे 29 महिलाएं गर्भवती हो गईं जिनकी सरकारी अस्पताल में ‘नैशनल फैमिली प्लानिंग कार्यक्रम’ के अंतर्गत नलबंदी की गई थी। यह मामला स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों तक पहुंचने पर सी.एम.ओ. डा. आर.पी. रावत ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई करते हुए सर्जरी में लापरवाही करने वालों के विरुद्ध जांच के आदेश दिए हैं। 

सी.एम.ओ. ने यह भी कहा है कि स्वास्थ्य विभाग अब ऐसे विशेषज्ञों की लिस्ट तैयार कर रहा है जिन्होंने पिछले वर्षों में सफल आप्रेशन किए हैं। अब भविष्य में सिर्फ  ऐसे विशेषज्ञों से ही नलबंदी करवाई जाएगी। नलबंदी आप्रेशन विफल हो जाने के बाद यदि कोई महिला गर्भवती हो जाती है तो उसे 60 दिनों के भीतर अपने परिवार नियोजन आप्रेशन का प्रमाण पत्र एवं गर्भवती होने का प्रमाण पत्र परिवार नियोजन विभाग में जमा करवाने पर 30,000 रुपए अनुग्रह राशि दी जाती है लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि आप्रेशन के बावजूद महिला का गर्भवती होना परिवार नियोजन कार्यक्रम के उद्देश्य को ही समाप्त कर देता है। 

लिहाजा आप्रेशनों के बावजूद महिलाओं का गर्भवती होना गंभीर चिकित्सीय लापरवाही का ही प्रमाण है। अपवादस्वरूप एक-दो मामले हो सकते हैं पर लगातार ऐसे मामलों का होना दर्शाता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ अवश्य है। इसी वर्ष के शुरू में ओडिशा सरकार को 30,000 रुपए प्रत्येक के हिसाब से 2015-16 में नलबंदी आप्रेशनों के बावजूद गर्भवती हो जाने वाली 354 महिलाओं को 1.06 करोड़ रुपए क्षतिपूर्ति देनी पड़ी थी। इसी से स्पष्टï है कि नलबंदी आप्रेशनों की विफलता मात्र एक संयोग नहीं।—विजय कुमार 

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