सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला बैंक खाते, मोबाइल, स्कूल-कालेज दाखिले के लिए ‘आधार’ जरूरी नहीं

Edited By Pardeep,Updated: 27 Sep, 2018 01:57 AM

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सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को ‘आधार’ कार्ड के संबंध में दायर की गई 31 याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला पहचान पत्र है। इसमें ‘भारतीय विशिष्टï पहचान पत्र प्राधिकरण’ द्वारा दी गई...

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को ‘आधार’ कार्ड के संबंध में दायर की गई 31 याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला पहचान पत्र है। इसमें ‘भारतीय विशिष्टï पहचान पत्र प्राधिकरण’ द्वारा दी गई 12 अंकों की एक विशिष्टï संख्या छपी होती है। 

यह संख्या भारत में कहीं भी व्यक्ति की पहचान और पते का प्रमाण मानी जाती है। यह पहचान कार्ड विभिन्न कल्याणकारी सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने, बैंक खाता खोलने, पैन कार्ड बनवाने, मोबाइल सिम लेने, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसैंस आदि बनवाने के लिए अनिवार्य कर दिया गया था और इसे आई.डी. तथा एड्रैस के प्रमाण के रूप में मान्यता दी गई थी। जहां सरकार का  ‘आधार’ के सम्बन्ध में कहना है कि इससे लोग बिना किसी गड़बड़ी और जालसाजी के सरकारी योजनाओं और अन्य सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं वहीं इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले इससे सहमत नहीं हैं। 

इसी कारण केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘आधार’ योजना संबंधी कानून को इसे वित्त विधेयक के रूप में पारित करवाने के विरुद्ध तथा आधार नंबर की अनिवार्यता को निजता के अधिकार का उल्लंघन बता कर इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में 31 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें एक याचिकाकत्र्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज के.एस. पुत्तू स्वामी भी हैं। याचिकाओं पर 38 दिनों की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था जो सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान  न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने, जिसमें  न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ व न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल थे, बुधवार को आधार कार्ड पर अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। 

पीठ द्वारा सुनाए गए मत-विभाजित फैसले में ‘आधार’ को संवैधानिक रूप से तो वैध करार दिया गया परन्तु आधार अनिवार्य करने सहित कुछ प्रावधानों को रद्द भी कर दिया गया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘आधार’ नंबर को पूरी तरह असंवैधानिक और वित्त विधेयक की तरह पास करवाने को संविधान से धोखा करार दिया जबकि 3 जजों ने कहा कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है। आधार से जुड़े शुरूआती फैसले जस्टिस ए.के. सीकरी ने सुनाए जिसमें कहा गया कि आधार कहां जरूरी व कहां जरूरी नहीं है। इसके अनुसार : 

बैंक अकाऊंट व मोबाइल नंबर को आधार से जोडऩे की जरूरत नहीं। सी.बी.एस.ई., यू.जी.सी., एन.ई.ई.टी. (नीट) व स्कूल-कालेज दाखिले के लिए आधार नंबर की मांग नहीं कर सकते। किसी भी बच्चे को आधार के बिना सरकारी योजनाओं का लाभ देने से इंकार नहीं किया जा सकता। अन्य पहचान पत्रों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। निजी कम्पनियां आधार नंबर नहीं मांग सकतीं। निजी कम्पनियों को आधार के आंकड़े एकत्र करने की अनुमति देने वाली आधार कानून की धारा 54 को भी समाप्त कर दिया गया है। आयकर रिटर्न दाखिल करने व पैन कार्ड को आधार से जोडऩा जरूरी है। 

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है कि‘‘यह आम आदमी को राहत देने वाला एक ऐतिहासिक फैसला है। अब प्राइवेट कम्पनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं। सर्वोच्च न्यायालय ने बैंक और टैलीकॉम क्षेत्र में आधार को असंवैधानिक करार दिया है।’’ निश्चय ही सर्वोच्च न्यायालय के उक्त फैसले से आधार कार्ड संबंधी भ्रांतियां दूर हुई हैं और लोगों को किसी सीमा तक राहत भी मिली है जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय साधुवाद का पात्र है।—विजय कुमार

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