पाबंदियों से नहीं सुलझेगी उत्तर कोरिया की समस्या: चीन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Sep, 2017 12:53 AM

north koreas problem will not settle with restrictions china

उत्तरी कोरिया पर अमरीका तथा मित्र देश निर्ममतापूर्वक अपने नागरिकों का दमन और बेरहमी से परमाणु ...

उत्तरी कोरिया पर अमरीका तथा मित्र देश निर्ममतापूर्वक अपने नागरिकों का दमन और बेरहमी से परमाणु हथियारों का विकास एवं परीक्षण करने के आरोप लगा रहे हैं। अपने परमाणु कार्यक्रम की शृंखला में ही उत्तरी कोरिया ने गत 3 सितम्बर को अपने छठे परीक्षण में हाईड्रोजन बम का विस्फोट किया जो उसके द्वारा किया गया अब तक का सबसे शक्तिशाली धमाका माना जाता है। यह हीरोशिमा पर गिराए गए बम से 10 गुणा ज्यादा शक्तिशाली था। 

सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि उत्तर कोरिया के अब तक के पांच परीक्षणों के मुकाबले रविवार का परीक्षण सबसे ज्यादा ताकतवर था। इस हाईड्रोजन बम को लम्बी दूरी की मिसाइलों के जरिए दागा जा सकता है जिसके दायरे में अमरीका के शहर भी आएंगे। पिछले एक वर्ष के दौरान उत्तरी कोरिया ने परमाणु परीक्षणों के अलावा अनेक मिसाइल भी दागे हैं जिससे यह सिद्ध हो गया है कि वह प्रक्षेपास्त्र विकसित करने का लक्ष्य पा चुका है। उत्तरी कोरिया की ऐसी मानवघाती कार्रवाइयों के चलते उसे ‘दुष्ट देश’ और ‘सबसे बड़ा तात्कालिक खतरा’ जैसे नामों से पुकारा जाने लगा है और उसकी इन्हीं हरकतों से समूचा विश्व उससे खतरा महसूस कर रहा है। 

इस बीच जहां ट्रम्प की धमकियों और चेतावनियों से बेपरवाह उत्तरी कोरिया ने इलैक्ट्रो मैगनेटिक इम्पल्स (ई.एम.पी.) के हमले द्वारा अमरीका के बिजली ग्रिड को ठप्प करके उसकी बिजली गुल करने की धमकी दे डाली है। उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर अमरीका और सोवियतों ने कोरिया को दो भागों में बांट दिया था और 1948 में इस देश की दो अलग-अलग सरकारें बन गईं और एकीकरण की वार्ता विफल रही। 1950-53 की कोरियाई लड़ाई ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया। उत्तरी कोरिया के पहले नेता किम इल सुंग थे जो एक कम्युनिस्ट तथा एक दलीय शासन के मुखिया और वर्तमान शासक किम-जोंग-उन के दादा थे। 

आर्थिक दृष्टि से यह विश्व के निर्धनतम देशों में से एक है। इसकी अर्थव्यवस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है। इसके नागरिकों की बाहरी मीडिया तक कोई पहुंच नहीं है और सिवाय कुछ विशेष सुविधा प्राप्त लोगों के यहां के लोगों को देश से बाहर जाने की अनुमति भी नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, जापान और अमरीका के बीच हुई वार्ता से शुरू में कुछ आशा उत्पन्न हुई थी और प्योंगयांग ने सहायता और राजनीतिक रियायतों के बदले में अपना परमाणु कार्यक्रम त्यागने की बात कही थी जिसमें योंगब्यून में प्लूटोनियम निर्माण फैसिलिटी को समाप्त करना भी शामिल था मगर बाद में बात बिगड़ गई और अमरीका ने कोरिया पर अपने पूर्ण परमाणु कार्यक्रम का खुलासा न करने का आरोप लगाया। इससे प्योंगयांग ने इंकार किया और बाद में परमाणु परीक्षण कर डाला। इस प्रकार 2009 के बाद उत्तरी कोरिया के साथ कोई सार्थक बातचीत नहीं हो पाई है और न ही इस समय वह बातचीत करने के मूड में है। 

इस पृष्ठभूमि में जहां डोनाल्ड ट्रम्प उत्तरी कोरिया पर अधिक कठोर प्रतिबंध लगाने की सोच रहे हैं वहीं इस विषय में वह अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से बात करने पर भी विचार कर रहे हैं और अभी तक वह इस सिलसिले में जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के राष्ट्रपतियों से चर्चा कर भी चुके हैं। इस बीच संयुक्त राष्ट्र की तरह कुछ देशों ने पहले ही उत्तर कोरिया पर कुछ प्रतिबंध लगाकर उसके शस्त्र कार्यक्रम और विदेशों में काम करने पर रोक लगाने की कोशिश की है। उत्तरी कोरिया को खाद्य सामग्री की सहायता में भी कमी की गई है लेकिन इन पगों से उत्तरी कोरिया को सैन्य मोर्चे पर रोकने की मित्र देशों की कोशिशें कामयाब होती दिखाई नहीं दे रहीं। 

इस संबंध में बेशक यह माना जाता है कि उत्तरी कोरिया का अन्य सभी देशों की तुलना में चीन के साथ सर्वाधिक व्यापार होता है जोकि इसके कुल व्यापार का 97 प्रतिशत है और अतीत में चीनी शासकों के कोरिया के वर्तमान शासक किम-जोंग-उन के पिता के साथ बहुत अच्छे संबंध होने के नाते सभी देशों में से चीन ही उत्तरी कोरिया को आर्थिक प्रतिबंधों द्वारा पीड़ा पहुंचाने में सर्वाधिक सक्षम है परंतु जानकारों का कहना है कि चीन द्वारा भी उत्तरी कोरिया पर प्रतिबंध लगाने से इस समस्या का हल संभव नहीं है। उत्तरी कोरिया पर विभिन्न प्रतिबंध लगाने का मतलब इसकी जनता की ही समस्याओं में और वृद्धि करने के तुल्य होगा क्योंकि प्रतिबंधों का सीधा और तात्कालिक प्रभाव तो उन्हीं पर पड़ेगा। अत: फिलहाल कहना मुश्किल है कि निकट भविष्य में उत्तरी कोरिया और विश्व के देशों के बीच बढ़ रहा टकराव क्या रूप लेगा!

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