अब तमिलनाडु की ‘अन्नाद्रमुक में घमासान’ ‘वर्चस्व की लड़ाई मारामारी तक पहुंची

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2022 03:48 AM

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देश में क्षेत्रीय दलों की हालत खस्ता होती जा रही है। बिहार में जनता दल (यू) और लोजपा, उत्तर प्रदेश में सपा और पंजाब में शिअद भी क्षरण की ओर बढ़ रही हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना भी

देश में क्षेत्रीय दलों की हालत खस्ता होती जा रही है। बिहार में जनता दल (यू) और लोजपा, उत्तर प्रदेश में सपा और पंजाब में शिअद भी क्षरण की ओर बढ़ रही हैं। हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना भी बिखर गई है और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक अब भी इसी दिशा में बढ़ रही है।

उल्लेखनीय है कि स्व. मुख्यमंत्री जयललिता के देहांत के बाद से अन्नाद्रमुक में वर्चस्व की लड़ाई जारी है तो दूसरी ओर अब उनकी सहेली तथा अन्नाद्रमुक से निष्कासित पूर्व महासचिव शशिकला को पार्टी में वापस लाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जहां जयललिता के भरोसेमंद रहे पूर्व मुख्यमंत्री ‘पन्नीरसेल्वम’ शशिकला को दोबारा पार्टी में लाने को प्रयत्नशील हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री ‘पलानीस्वामी’ उनकी पार्टी में वापसी के घोर विरुद्ध हैं। 

कुछ समय पूर्व जब धेनी जिले की पार्टी इकाई ने ‘पलानीस्वामी’ के विरुद्ध जाते हुए एक प्रस्ताव पारित करके उन सबको पार्टी में वापस लाने की बात कही थी, जिन्हें पार्टी से निकाल दिया गया है, तो ‘पलानीस्वामी’ ने कहा था कि उस स्थिति में वह ‘पन्नीरसेल्वम’ को धकेल कर एक ओर कर देंगे। जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक में पार्टी संचालन व सत्ता का संतुलन बनाए रखने के लिए ‘दोहरा नेतृत्व प्रणाली’ कायम की गई थी, जिसके तहत ‘पन्नीरसेल्वम’ को समन्वयक व ‘पलानीस्वामी’ को सह समन्वयक बनाया गया था। 

इसे समाप्त करने के लिए ‘पलानीस्वामी’ ने पार्टी की कार्यकारी समिति और आम परिषद की 11 जुलाई को बैठक बुलाई थी जिस पर रोक लगाने के लिए ‘पन्नीरसेल्वम’ गुट ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसे मद्रास हाईकोर्ट द्वारा रद्द करने के बाद पार्टी कार्यालय के अंदर और बाहर दोनों धड़ों द्वारा भारी तोड़-फोड़ और ङ्क्षहसा की गई, जिसके बाद राज्य की द्रमुक सरकार ने पार्टी का मुख्यालय सील कर दिया। बाद में एक मैरिज पैलेस में पार्टी ने अपनी बैठक में दोहरा नेतृत्व प्रणाली समाप्त करके ‘पलानीस्वामी’ को सर्वसम्मति से अपना अंतरिम महासचिव चुनकर उन्हें पार्टी चलाने के लिए अधिकृत करने के साथ ही ‘पन्नीरसेल्वम’ तथा उनके समर्थकों को पार्टी से निकाल दिया। 

इस आशय के पारित प्रस्ताव में ‘पन्नीरसेल्वम’ पर पार्टी विरोधी गतिविधियों और राज्य की द्रमुक सरकार से सांठ-गांठ व उसके नेताओं से मिलकर अन्नाद्रमुक को कमजोर करने का आरोप लगाया गया है। प्रस्ताव में ‘पन्नीरसेल्वम’ पर इससे पहले 23 जून को बुलाई जाने वाली पिछली आम परिषद की बैठक में बाधा डालने के लिए पुलिस से सम्पर्क करने का आरोप भी लगाया गया है। एक अन्य प्रस्ताव में अगले 4 महीनों के अंदर पार्टी महासचिव चुनने के लिए संगठनात्मक चुनाव करवाने का फैसला किया गया। 

उल्लेखनीय है कि पार्टी में सर्वाधिक शक्तिशाली समझे जाने वाले महासचिव पद पर कई दशकों तक जयललिता काबिज रही थीं और उनकी मृत्यु के बाद उनकी निकटतम सहेली शशिकला को पार्टी की अंतरिम महासचिव बनाया गया था, जिन्हें अब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। 

‘पन्नीरसेल्वम’ ने अपने निष्कासन को अवैध करार देते हुए  ‘पलानीस्वामी’ को पार्टी से निकालने की घोषणा कर दी है और कहा, ‘‘मुझे 1.5 करोड़ पार्टी वर्करों ने समन्वयक चुना है। लिहाजा न ही ‘पलानीस्वामी’ को और न ही पार्टी के दूसरे नेताओं को मुझे पार्टी से निकालने का अधिकार है।’’ प्रेक्षकों के अनुसार इस घटनाक्रम से अन्नाद्रमुक को हानि और द्रमुक को लाभ पहुंचेगा। दक्षिण भारत में अन्नाद्रमुक के सहारे पैर जमाने का प्रयास कर रही भाजपा इस सारे घटनाक्रम पर गहरी नजर रखे हुए है। 

पार्टी पर नियंत्रण के लिए शुरू हुई इस जंग के बीच अनेक वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि भगवा पार्टी से रिश्ता बनाने का अन्नाद्रमुक को कोई लाभ नहीं होगा और पार्टी काडर की बहुसंख्या इसके विरुद्ध है। अब सबकी नजर शशिकला के अगले कदम पर है। भाजपा पिछले चुनावों के समय शशिकला और उनके भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरण के साथ अन्नाद्रमुक का समझौता करवाने के पक्ष में थी परन्तु ‘पलानीस्वामी’ ने ऐसा नहीं होने दिया। बहरहाल, अब अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों की लड़ाई चुनाव आयोग और बैंकों तक पहुंच गई है और दोनों पक्ष अपना-अपना दावा पेश करने में जुट गए हैं। 

प्रेक्षकों के अनुसार अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों के झगड़े में द्रमुक ही लाभ में रहने वाली है और शायद भाजपा को भी राज्य की राजनीति में थोड़ी-बहुत जगह मिल जाए। कहना कठिन है कि अन्नाद्रमुक की यह लड़ाई कहां पहुंच कर समाप्त होगी परंतु इस लड़ाई ने दिसम्बर 1987 की याद दिला दी है जब एम.जी.रामचंद्रन की मौत के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई थी। इनमें से एक धड़े का नेतृत्व एम.जी.आर. की पत्नी जानकी और दूसरे धड़े का नेतृत्व एम.जी.आर. की अनेक फिल्मों की हीरोइन तथा पार्टी की प्रचार सचिव जयललिता कर रही थी और इसमें अंतत: जयललिता की ही जीत हुई थी।—विजय कुमार 

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