Edited By ,Updated: 23 Apr, 2019 04:22 AM
हालांकि लोगों को सस्ती स्तरीय शिक्षा और चिकित्सा, लगातार बिजली और स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना हमारी सरकारों का दायित्व है परंतु इन सभी क्षेत्रों में राज्य और केंद्र की सरकारें विफल ही सिद्ध हो रही हैं। बेहद महंगे होने के कारण जहां निजी अस्पतालों में...
हालांकि लोगों को सस्ती स्तरीय शिक्षा और चिकित्सा, लगातार बिजली और स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना हमारी सरकारों का दायित्व है परंतु इन सभी क्षेत्रों में राज्य और केंद्र की सरकारें विफल ही सिद्ध हो रही हैं। बेहद महंगे होने के कारण जहां निजी अस्पतालों में इलाज करवा पाना आम आदमी के वश से बाहर की बात है, वहीं संसाधनों और डाक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे सरकारी अस्पतालों में जाने पर गंभीर रोगों से पीड़ितों को तारीख पर तारीख ही मिलती है।
देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली में लोगों को इलाज के लिए बेहतर सुविधाएं मिलने की आशा की जाती है परन्तु यहां के अस्पतालों, चाहे वे केन्द्र सरकार द्वारा संचालित हों या दिल्ली सरकार या निगम द्वारा, की स्थिति तो शेष देश से भी बुरी प्रतीत होती है। आप चाहे ‘एम्स’, राम मनोहर लोहिया (आर.एम.एल.) अस्पताल या किसी अन्य सरकारी अस्पताल में चले जाएं वहां देश-विदेश से इलाज के लिए आए रोगियों की भीड़ देख कर आपको अपना दुख कम लगने लगेगा जहां भारी संख्या में आए रोगी इलाज की प्रतीक्षा में बैठे नजर आते हैं।
‘एम्स’ में दिल के आप्रेशन के लिए आए एक रोगी को 13 जनवरी, 2021 की तारीख दी गई है। केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत लाभपात्र यह रोगी अब अपने आप्रेशन की तिथि बदलवाने के लिए प्रयत्नशील है। अन्य सरकारी अस्पतालों में भी गंभीर बीमार रोगियों को भी 6 महीने से 2 वर्ष तक की तारीख दी जा रही है। एक महिला को आर.एम.एल. अस्पताल ने 6 महीने बाद आने को कहा है। जी.बी. पंत अस्पताल, जी.टी.बी. अस्पताल, बाबा साहब अम्बेदकर अस्पताल आदि की भी यही स्थिति है।
इंस्टीच्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज आदि चिकित्सा संस्थान भी संसाधनों एवं स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं जिसका खमियाजा इलाज के लिए देशभर से यहां आने वाले रोगियों को भुगतना पड़ रहा है। जब देश की राजधानी के अस्पतालों का यह हाल है तो शेष देश में चिकित्सा सुविधाओं का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।—विजय कुमार