‘एक देश एक चुनाव’ भारत में अभी व्यावहारिक नहीं

Edited By ,Updated: 20 Jun, 2019 02:52 AM

one country one election  is not practical in india right now

देश में समय-समय पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने की चर्चा उठती रही है और अब एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ योजना के अंतर्गत इसकी चर्चा शुरू की है और उन्होंने इस बारे 19 जून को विभिन्न राजनीतिक दलों के...

देश में समय-समय पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने की चर्चा उठती रही है और अब एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ योजना के अंतर्गत इसकी चर्चा शुरू की है और उन्होंने इस बारे 19 जून को विभिन्न राजनीतिक दलों के लोकसभा व राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले अध्यक्षों की एक बैठक भी बुलाई। जहां कुछ दलों के नेता इसमें शामिल हुए वहीं कुछ दलों कांग्रेस, द्रमुक, बसपा, टी.एम.सी., सपा आदि के नेताओं ने इसमें भाग नहीं लिया। 

मायावती के अनुसार, ‘‘यह ज्वलंत समस्याओं, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी व बढ़ती हिंसा की ओर से देश का ध्यान बंटाने का प्रयास व छलावा मात्र है।’’ इसी प्रकार ममता बनर्जी ने इस मुद्दे को बहुत गंभीर बताते हुए कहा,  ‘‘इतने कम समय में सभी दलों की बैठक बुला कर इस मसले से न्याय नहीं किया जा सकता अत: इस बैठक से पहले इस पर कानूनी सलाह ली जाए तथा एक श्वेतपत्र जारी किया जाए जिसमें सभी दलों के विचार शामिल हों।’’ 

भाकपा के महासचिव एस. सुधाकर रैड्डïी के अनुसार ‘‘यह भाजपा का ‘फैंसी आइडिया’ है। यदि कोई राज्य सरकार किसी कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी तब वहां तो उपचुनाव होगा ही। लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें अगले चुनाव तक इंतजार करने के लिए कहा जा सकता है।’’ माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के अनुसार,‘‘एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में छेड़छाड़ की जाएगी और राज्यों में केंद्र सरकार का दखल बढ़ेगा जिससे संघीय व्यवस्था प्रभावित होगी। लोकसभा तथा विधानसभा का कार्यकाल घटाना या बढ़ाना असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक होगा।’’ 

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने इसे बहुत आकर्षक विचार बताया परंतु कहा कि ‘‘विधायिकाओं का कार्यकाल निर्धारित करने के लिए संविधान में संशोधन किए बिना इसे अमल में नहीं लाया जा सकता।’’उनके अनुसार, ‘‘इस योजना को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा अविश्वास प्रस्ताव और संबंधित मुद्दों से जुड़े संवैधानिक प्रावधान हैं जिनका एकमात्र उपाय संविधान संशोधन ही है।’’ ‘‘इसे लागू करने के लिए संक्रमण कालीन प्रावधानों की आवश्यकता भी पड़ सकती है क्योंकि कुछ सदनों के (कार्यकाल) अढ़ाई वर्ष तो कुछ के साढ़े चार वर्ष बचे होंगे। ऐसे में चुनाव की सांझा तारीख के लिए सदनों का कार्यकाल बढ़ाने के लिए एक प्रावधान की आवश्यकता हो सकती है।’’ 

जहां श्री कृष्णमूर्ति ने यह योजना लागू करने के लिए संवैधानिक आवश्यकताओं की बात कही है वहीं इतने बड़े देश में एक साथ चुनावों का प्रबंध करना किसी भी दृष्टिï से व्यावहारिक नहीं क्योंकि यहां तो चुनावी हिंसा से निपटने और इन्हें सुचारू रूप से सम्पन्न करवाने के लिए कई-कई चरणों में करवाना पड़ता है जैसे कि हाल ही के लोकसभा के चुनाव भी 7 चरणों में करवाए गए।—विजय कुमार 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!