Edited By Pardeep,Updated: 08 Apr, 2018 02:59 AM
पिछले कुछ समय से ऐसा कई बार हुआ है कि हमारे बड़े-छोटे नेतागण बिना सोचे-समझे उलट-पुलट बयान देकर लगातार अनावश्यक विवाद पैदा करते आ रहे हैं तथा लोग उन पर उंगलियां उठा रहे हैं। नेताओं की ऐसी ही अवांछित बयानबाजी के कारण इन दिनों विभिन्न राज्यों की...
पिछले कुछ समय से ऐसा कई बार हुआ है कि हमारे बड़े-छोटे नेतागण बिना सोचे-समझे उलट-पुलट बयान देकर लगातार अनावश्यक विवाद पैदा करते आ रहे हैं तथा लोग उन पर उंगलियां उठा रहे हैं।
नेताओं की ऐसी ही अवांछित बयानबाजी के कारण इन दिनों विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं और संसद में बेचैनी व्याप्त है जिस कारण जनता के हित से जुड़े इन दोनों ही महत्वपूर्ण मंचों पर सुचारू रूप से काम नहीं हो रहा। संसद का बजट अधिवेशन विरोधी दलों के हंगामे के कारण न चलने के दृष्टिगत जब संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने यह घोषणा कर दी कि राजग के सांसद संसद सत्र में कामकाज न होने वाले 23 दिनों का वेतन नहीं लेंगे तो न सिर्फ राजग के चंद गठबंधन सहयोगियों शिव सेना और रालोसपा बल्कि भाजपा के लोगों ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया।
भाजपा सांसद सुब्रह्मïण्यम स्वामी ने इस पर अपनी ही पार्टी के नेता पर पलट वार करते हुए कहा कि ‘‘मैं रोजाना संसद में जाता हूं अगर वहां कामकाज नहीं होता तो यह मेरी गलती नहीं है। मैं राष्ट्रपति का प्रतिनिधि हूं। जब तक वह नहीं कहते, मैं कैसे कह सकता हूं कि मैं वेतन नहीं लूंगा।’’ इसी प्रकार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 6 अप्रैल को मुंबई में पार्टी के 39वें स्थापना दिवस समारोह में भाषण करते हुए 2019 के चुनावों के लिए भाजपा के विरुद्ध लामबंद हो रहे विरोधी दलों की तुलना सांपों, नेवलों, कुत्तों, बिल्लियों से करके विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘2019 के लिए काऊंटडाऊन शुरू हो गया है तथा विपक्षी एकता की कोशिशें हो रही हैं लेकिन जब बाढ़ आती है तो सब कुछ बह जाता है...केवल वट वृक्ष ही बचा रहता है और उफनते पानी से अपनी जान बचाने के लिए वट वृक्ष पर सांप, नेवले, कुत्ते, बिल्लियां चढ़ जाते हैं।’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की तुलना बाढ़ से करते हुए अमित शाह ने कहा, ‘‘उनके आगे सब पेड़ गिर गए हैं तथा इन जानवरों की भांति मोदी की बाढ़ के विरुद्ध राजनीतिक दल एक साथ आ रहे हैं।’’
लेकिन बाद में स्पष्टीकरण देते हुए अमित शाह ने कहा कि ‘‘नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के भय से वे पार्टियां भी इकट्ठी हो रही हैं जिनमें कोई वैचारिक समानता नहीं है, जैसे कि सांप और नेवला।’’ ‘‘इसी प्रकार सपा और बसपा, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस, चंद्र बाबू नायडू (की तेदेपा) और कांग्रेस में कोई समानता नहीं है और न ही कोई बात सांझी है परंतु इसके बावजूद ये अगले चुनावों में भाजपा को टक्कर देने के लिए इकट्ठी होने की कोशिश कर रही हैं।’’ अमित शाह के इस बयान को लेकर विरोधी दलों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। कांग्रेस ने कहा है कि ‘‘अमित शाह की टिप्पणी निंदनीय है जो उनकी विचारधारा को व्यक्त करती है। उन्होंने राजनीतिक बयानबाजी को न्यूनतम स्तर तक पहुंचा दिया है। यह शर्मनाक है। हम उनसे और उम्मीद क्या कर सकते हैं। यह उनके डी.एन.ए. में ही है।’’
जहां इस बयान के लिए विरोधी दल अमित शाह की आलोचना कर रहे हैं वहीं यह भी एक संयोग ही है कि 6 अप्रैल को ही केंद्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने राजनीतिज्ञों के आचरण पर सही टिप्पणी की है। उन्होंने कहा, ‘‘देश के राजनीतिज्ञों के संबंध में यह आम धारणा बन गई है कि उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है और इस कारण उनके प्रति विश्वास का संकट पैदा हो गया है। राजनीतिज्ञों के बारे में यह आम धारणा है कि वे झूठ बोले बिना सफल नहीं हो सकते। मैं राजनीति में हूं, मैं जानता हूं कि राजनीतिज्ञों के लिए विश्वास का संकट पैदा हो गया है।’’ आज जिस प्रकार उलटे-पुलटे बयान देकर राजनीतिज्ञ अनावश्यक विवाद खड़े कर रहे हैं तथा देश जिस प्रकार के राजनीतिक वातावरण में से गुजर रहा है उसे देखते हुए राजनाथ सिंह जी की टिप्पणी बिल्कुल उचित है तथा सही अर्थों में उन्होंने जनता की भावनाओं को उचित अभिव्यक्ति दी है। जितनी जल्दी सभी दलों के नेतागण अनावश्यक बयानबाजी को त्याग कर अपनी कथनी और करनी में एकरूपता लाएंगे, उतना ही देश का, समाज का, नेताओं का और पार्टियों का भला होगा।—विजय कुमार