पाक सूचना मंत्री ‘फवाद चौधरी’ ने किया अपनी ही ‘सरकार को बेनकाब’

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2021 03:39 AM

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पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी अपनी सरकार की करतूतें उजागर करते रहते हैं। गत वर्ष 29 अक्तूबर को एक बयान में उन्होंने पुलवामा हमले में अपनी ही सरकार का हाथ होने का खुलासा

पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी अपनी सरकार की करतूतें उजागर करते रहते हैं। गत वर्ष 29 अक्तूबर को एक बयान में उन्होंने पुलवामा हमले में अपनी ही सरकार का हाथ होने का खुलासा करके उसे बेनकाब किया था। उल्लेखनीय है कि पाक समर्थित आतंकवादी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद की ओर से 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में करवाए गए आत्मघाती हमले में सी.आर.पी.एफ. के 40 जवान शहीद हो गए थे। 

इन दिनों जबकि पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरवाद और उग्रवाद जोरों पर है और इसे लेकर प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, फवाद चौधरी ने एक बार फिर अपनी सरकार की कारगुजारी पर प्रश्रचिन्ह लगाते हुए 18 नवम्बर को इस्लामाबाद में आयोजित एक गोष्ठी के दौरान पाकिस्तान में उग्रवाद पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए स्वीकार किया कि : 

‘‘हमें भारत और अमरीका से कोई खतरा नहीं है। हम आज जिस सबसे बड़े खतरे का सामना कर रहे हैं वह हमारे देश के अंदर अर्थात पाकिस्तान में ही मौजूद है। हमें सबसे बड़ा खतरा इस्लामिक कट्टरपंथियों से है।’’ 

‘‘देश में कभी इस कदर धार्मिक उग्रवाद नहीं देखा गया था, जैसी स्थिति आज है। पाकिस्तान में स्कूलों और कालेजों के छात्र-छात्राओं में धार्मिक उग्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा 1980 और 1990 के दशकों में देश में अध्यापकों को एक साजिश के अंतर्गत नियुक्त किया गया था ताकि वे छात्र-छात्राओं को उग्रवाद की शिक्षा दे सकें।’’
‘‘स्कूल, कालेजों के छात्र-छात्राओं के दिमाग कुंद कर दिए गए। वहां पढऩे वाले बच्चे अपने ही देश में हुई उग्रवाद की कई घटनाओं में शामिल रहे हैं। पाकिस्तान आज धार्मिक उग्रवाद के गंभीर खतरे से जूझ रहा है। भिन्न विचार वाले लोगों को काफिर घोषित कर दिया गया है।’’

फिर उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा कि, ‘‘किसी व्यक्ति से भिन्न विचार रखने वाला कोई व्यक्ति गलत कैसे हो सकता है? यदि विपरीत विचार वाले व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाता तो समाज में सकारात्मक बदलाव कैसे लाया जा सकता है?’’ फवाद चौधरी ने अपनी सरकार पर दोषारोपण करते हुए कहा, ‘‘देश में उग्रवाद पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदम काफी नहीं हैं। न तो केंद्र सरकार और न ही राज्यों की सरकारें इस संकट का सामना करने को तैयार हैं। उग्रवादी संगठन ‘तहरीक-ए-लब्बैक’ के साथ विवाद के दौरान सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। यदि सत्ता कमजोर होती है तो ङ्क्षहसक समूह ताकतवर हो जाते हैं। यह एक सच्चाई है।’’ 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की सड़कों पर हुए ङ्क्षहसक प्रदर्शन के बाद पाकिस्तान सरकार को ‘तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान’ (टी.एल.पी.) के मुखिया ‘साद रिजवी’ को जेल से रिहा करने को विवश होना पड़ा। समझा जाता है कि पाकिस्तान सरकार और टी.एल.पी. के बीच गुप्त समझौते के अंतर्गत ऐसा किया गया। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि ‘‘पाकिस्तान में विद्वान अपनी बात कहने से डरते हैं क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा का भरोसा नहीं। देश में उग्रवाद अथवा जेहाद जैसी बातें कट्टरता को बढ़ावा देती हैं।’’ फवाद चौधरी का उक्त बयान किसी टिप्पणी का मोहताज नहीं है जिन्होंने पाकिस्तान में उग्रवाद और जेहाद तथा विरोधी विचारों वाले लोगों के प्रति दमनकारी नीतियों को लेकर अपनी सरकार का असली चेहरा उजागर कर दिया है।—विजय कुमार 

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