अपनी ही सरकारों से नाराज विधायकों और नेताओं का सियासी घमासान

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2020 04:18 AM

political furore of legislators and leaders angry with their own governments

हालांकि किसी भी सरकार के सुचारू ढंग से संचालन के लिए सत्तारूढ़ दल के सदस्यों में तालमेल होना आवश्यक है परंतु ऐसा न होने से जनता के हित भी प्रभावित होते हैं जिस कारण इन दिनों पंजाब, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की  राज्य सरकारों की त्रुटिपूर्ण कारगुुजारी...

हालांकि किसी भी सरकार के सुचारू ढंग से संचालन के लिए सत्तारूढ़ दल के सदस्यों में तालमेल होना आवश्यक है परंतु ऐसा न होने से जनता के हित भी प्रभावित होते हैं जिस कारण इन दिनों पंजाब, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की  राज्य सरकारों की त्रुटिपूर्ण कारगुुजारी के विरुद्ध उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा आवाज उठाई जा रही है। पंजाब में कांग्रेस की अमरेंद्र सिंह नीत सरकार की कारगुजारी के विरुद्ध उनकी अपनी ही पार्टी के हरदयाल कम्बोज, मदन लाल जलालपुर, सुरजीत धीमान सहित लगभग आधा दर्जन विधायक एवं अन्य वरिष्ठ सदस्य लम्बे समय से उंगली उठाते आ रहे हैं। 

कुछ समय पूर्व पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कै. अमरेंद्र सिंह से मिलने का समय मांगा जो तीन दिन प्रयास करने पर भी उन्हें नहीं मिला और अब विधायक परगट सिंह ने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।  कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह को लिखे पत्र में परगट सिंह ने राज्य सरकार द्वारा भ्रष्टाचार, शराब एवं ट्रांसपोर्ट माफिया और नशों की बुराई पर रोक लगाने में विफल रहने और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई से हाथ पीछे खींचने, बादलों के विरुद्ध कार्रवाई न करने आदि पर चिंता व्यक्त की है। और अब आम लोगों में कांग्रेस के प्रति बदल रही धारणा सुधारने की जरूरत पर बल देते हुए 19 फरवरी को परगट सिंह ने कैप्टन अमरेंद्र सिंह से भेंट करके न सिर्फ उन्हें सरकार की 3 वर्षों की कारगुजारी की खामियां गिनाईं बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को जनता से किए सभी वायदे हर हाल में पूरे करने के लिए सरकार तेजी से काम शुरू करे। 

इसी प्रकार मध्य प्रदेश में कांग्रेस का वनवास समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पार्टी के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुख्यमंत्री कमलनाथ से विवाद इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है और वह बार-बार कह रहे हैं कि :‘‘कमलनाथ सरकार द्वारा पार्टी के वचन पत्र में किए गए वायदों को पूरा नहीं करने पर उन्हें पूरा कराने के लिए मुझे सड़क पर उतरना ही होगा क्योंकि एक जनसेवक होने के नाते जनता के मुद्दों के लिए लडऩा मेरा धर्म है।’’ सेवाएं नियमित करने के लिए लम्बे समय से आंदोलन कर रहे अतिथि शिक्षकों के कार्यक्रम में सिंधिया ने कहा, ‘‘यदि वचन पत्र में किया गया वायदा पूरा न हुआ तो आपके साथ सड़कों पर हम उतरेंगे। ङ्क्षचता मत करें। आपकी ढाल मैं बनूंगा और तलवार भी।’’ 

सिंधिया के भाषण से आंदोलनकारी शिक्षकों के हौसले बुलंद हो गए हैं वहीं कमलनाथ ने सड़क पर उतरने की उनकी धमकी के जवाब में कहा है, ‘‘(उतरना है) तो उतर जाएं।’’ जहां कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा राज्य सरकार पर किए गए हमले को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है तो दूसरी ओर राजनीतिक गलियारों में इस तरह की अटकलबाजियां भी लगाई जाने लगी हैं कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने पिता की तरह नई पार्टी बनाएगे। राज्य में एक महिला नेता ने पोस्टर जारी करके लिखा है, ‘‘मैं महाराज साहब से अनुरोध करती हूं कि बड़े महाराज माधव राव सिंधिया की पार्टी (मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस) को पुनर्जीवित करें।’’ 

पंजाब और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकारों की भांति कर्नाटक की भाजपा सरकार भी अपने भीतर मचे घमासान से अछूती नहीं है। गत 6 फरवरी के मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा ने कांग्रेस से आए बागियों को तो मंत्री बना दिया परंतु मंत्री बनने की आस लगाए बैठे भाजपा के अनेक वरिष्ठ विधायकों को छोड़ दिया जिस पर पार्टी के लगभग 2 दर्जन नाराज भाजपा विधायकों ने येद्दियुरप्पा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। इन नाराज विधायकों ने आरोप लगाया है कि उनकी वर्षों की सेवा की अनदेखी करके कांग्रेस के बागियों को मंत्री पद से नवाजा गया है। नाराज भाजपा विधायकों का यह भी आरोप है कि येद्दियुरप्पा के बेटे बी.वाई. विजय इंद्र राज्य में ‘सुपर चीफ मिनिस्टर’ की तरह काम कर रहे हैं। 

राज्य में येद्दियुरप्पा की बढ़ती उम्र को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है और विरोधियों का कहना है कि येद्दियुरप्पा 77 वर्ष के हो गए हैं जबकि भाजपा की परम्परा के अनुसार 75 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को कोई पद नहीं दिया जा सकता। अत: उन्हें मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहना चाहिए। तीनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के सदस्यों द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा की सरकारों की छवि और सार्वजनिक हित से जुड़े हुए हैं अत: सत्ताधारियों को इनकी उपेक्षा करने या इन्हें दबाने की कोशिश करने की बजाय मिल-बैठ कर इनका समाधान करना चाहिए तभी ये सही अर्थों में जनहितकारी सरकारें कही जा सकेंगी।—विजय कुमार 

Related Story

Trending Topics

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!