उत्तर प्रदेश ‘पुलिस हत्याकांड’ से राजनीतिज्ञों-अपराधियों का गठबंधन हुआ उजागर

Edited By ,Updated: 07 Jul, 2020 03:09 AM

politicians criminals combine exposed in uttar pradesh police massacre

उत्तर प्रदेश के इतिहास में 2-3 जुलाई की रात को एक काला अध्याय जुड़ गया जब कानपुर के बिकरू गांव में गैंगस्टर ‘विकास दुबे’ को पकडऩे गई पुलिस टीम को घात लगाए बैठे बदमाशों ने चारों ओर से घेर कर गोलियों से भून दिया जिससे 8 पुलिस कर्मी शहीद हो गए। इस घटना...

उत्तर प्रदेश के इतिहास में 2-3 जुलाई की रात को एक काला अध्याय जुड़ गया जब कानपुर के बिकरू गांव में गैंगस्टर ‘विकास दुबे’ को पकडऩे गई पुलिस टीम को घात लगाए बैठे बदमाशों ने चारों ओर से घेर कर गोलियों से भून दिया जिससे 8 पुलिस कर्मी शहीद हो गए।

इस घटना से मचे बवाल के बीच उत्तर प्रदेश पुलिस ने आनन-फानन में कार्रवाई करते हुए गांव में 20 फुट ऊंची चारदीवारी से घिरा बंकर की तरह बना ‘विकास दुबे’ का आलीशान मकान ढहाने के साथ ही मुखबिरी के शक में चौबेपुर के थाना प्रभारी विनय तिवारी को निलम्बित और गिरफ्तार करने व तीन अन्यों को निलम्बित करने के अलावा गांव से लगभग 100 लोगों को हिरासत में लेकर पुलिस की 25 टीमें ‘विकास दुबे’ को ढूंढने के लिए विभिन्न राज्यों को रवाना कर दी हैं। 

* ‘विकास दुबे’ के राजनीतिक संपर्क इतने मजबूत थे कि उसके विरुद्ध 71 फौजदारी मामले लंबित होने के बावजूद उसका नाम उत्तर प्रदेश के ‘मोस्ट वांटेड’ अपराधियों की सूची में शामिल नहीं था।
बताया जाता है कि उसके पास एक लाल रंग की डायरी थी जिसमें उसने अपने खास अधिकारियों, नेताओं और उनसे जुड़े लोगों का ब्यौरा लिख रखा है। 

* ‘विकास दुबे’ ने 19 वर्ष पूर्व 2001 में भाजपा के शासनकाल में शिवली पुलिस थाने में घुस कर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की 25 सिपाहियों की मौजूदगी में हत्या की थी परंतु अदालत में सभी गवाही देने से मुकर गए। जब इस मामले में नामजद विकास को 2006 में निचली अदालत ने बरी कर दिया तो उत्तर प्रदेश में उस समय सत्तारूढ़ मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उसके विरुद्ध उच्च अदालत में पुनर्विचार याचिका ही दायर नहीं की। इससे उसका हौसला और बढ़ गया और उसने अपने गिरोह को बढ़ाना शुरू कर दिया। स्थानीय राजनीतिज्ञ सत्ता में बने रहने और चुनावों में जीतने के लिए उससे सहायता मांगने आने लगे और उसे खुश करने की कोशिश करते रहते। 

* घटना में घायल बिकरू पुलिस थाने के एस.ओ. कौशलेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार ‘विकास दुबे’ को पकडऩे गई पुलिस टीम न ही हथियारों और न ही गोला-बारूद से लैस थी और न ही उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि उन्हें ‘एनकाऊंटर’ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। ‘विकास दुबे’ के प्रत्येक व्यक्ति के पास आधुनिक हथियार थे और कम से कम 15-20 लोग पुलिस पर गोलियां चला रहे थे। 

* 5 जुलाई को कल्याणपुर में गिरफ्तार किए गए ‘विकास दुबे’ के साथी दया शंकर अग्निहोत्री के अनुसार 2-3 जुलाई की रात को बिकरू गांव में पुलिस कार्रवाई से पहले ही चौबेपुर थाने से किसी ने फोन करके ‘विकास दुबे’ को पुलिस द्वारा दी जाने वाली दबिश की जानकारी दे दी थी जिसके बाद ‘विकास दुबे’ ने पुलिस से सीधी टक्कर लेने के लिए अपने साथियों को बुला लिया। जांच में यह भी पता चला कि चौबेपुर पुलिस थाने में तैनात किसी सिपाही ने मुठभेड़ से पहले चौबेपुर स्थित शिवली सब-स्टेशन पर फोन करके मुरम्मत के बहाने गांव की बिजली भी कटवा दी थी। गांव में बिजली न होने के कारण पुलिस कर्मी मुकाबले के दौरान बदमाशों को ठीक तरह से देख ही नहीं पाए। 

इस कांड से जहां दुर्दांत अपराधी गिरोह के विरुद्ध संघर्षरत हमारे पुलिस बलों की साधनहीनता और लाचारगी सिद्ध हो गई है, वहीं इस घटना ने अपराधी तत्वों के प्रति कानून व्यवस्था की कमजोरियों और राजनीतिज्ञों तथा अपराधियों के आपसी रिश्ते और निजी स्वार्थों के कारण राजनीतिज्ञों द्वारा अपराधी तत्वों को संरक्षण दिए जाने की कुप्रवृत्ति भी उजागर कर दी है।—विजय कुमार 

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