प्रदूषण कोई मौसमी समस्या नहीं

Edited By Pardeep,Updated: 26 Nov, 2018 03:55 AM

pollution is not a seasonal problem

‘‘दिल्ली साल भर प्रदूषित रहती है... हम इस पर चर्चा अक्तूबर-नवम्बर तक ही सीमित नहीं रख सकते जब राजधानी सर्वाधिक प्रदूषित हो जाती है।’’ ये शब्द पर्यावरणविद् विमलेंदू झा के हैं। उनके अनुसार ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (जी.आर.ए.पी.) प्रदूषण नियंत्रण...

‘‘दिल्ली साल भर प्रदूषित रहती है... हम इस पर चर्चा अक्तूबर-नवम्बर तक ही सीमित नहीं रख सकते जब राजधानी सर्वाधिक प्रदूषित हो जाती है।’’ ये शब्द पर्यावरणविद् विमलेंदू झा के हैं। उनके अनुसार ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (जी.आर.ए.पी.) प्रदूषण नियंत्रण के लिए अंतिम समय में उठाया गया कदम है जिसका कोई दीर्घकालीन असर होने वाला नहीं है। प्रदूषण पर काबू पाने के लिए अंतिम समय में किए जाने वाले प्रयासों से बात नहीं बनेगी। 

उनकी इन बातों से हर कोई सहमत होगा। ऐसी बातें सुनने के बाद सभी दिल्ली वासी प्रदूषण नियंत्रण के लिए कोई कारगर नीति तथा कार्रवाई देखना चाहेंगे। गत तीन वर्षों से हर बार सॢदयां आते ही अखबारें, मीडिया तथा लोग प्रदूषण के बारे में खूब बातें करते हैं और फिर जैसे इसे भुला ही देते हैं। वास्तव में भारत में किसी फिल्म के काल्पनिक चरित्र या मांस अथवा धर्म को लेकर लोगों को एकजुट करना अधिक सरल है, किन्तु अत्यधिक प्रदूषण की वजह से छोटे-छोटे बच्चों के दिल, दिमाग और फेफड़ों को हो रहे नुक्सान के विरुद्ध कोई सड़कों पर प्रदर्शन करता नजर नहीं आता है। 

यहां तक कि खुद की कुशलता और सेहत के लिए भी इस समस्या पर विचार करने, इसका विरोध या इससे निपटने के लिए किसी पुख्ता तथा वास्तविक योजना लागू करने की मांग को लेकर किसी का अग्रह नहीं हुआ। दीवाली से पहले तो पटाखों पर पाबंदी को लेकर लोग खुल कर बोल रहे थे कि सर्वोच्च न्यायालय किस तरह लोगों की धार्मिक आस्था तथा अधिकारों में दखल दे रहा है परंतु दीवाली के बाद जब सरकारी आंकड़ों में ही सैंट्रल दिल्ली में प्रदूषण स्तर 300 पी.एम. 2.5 तथा उत्तर दिल्ली में 550 पी.एम. 2.5 दिखने लगा तो वास्तव में प्रदूषण का स्तर इससे भी कहीं अधिक सैंट्रल दिल्ली में 600 से ऊपर तथा उत्तर दिल्ली में 1052 था। 

ऐसे आंकड़ों का कोई लाभ नहीं जब लोगों के लिए हवा में सांस लेना ही दूभर हो चुका हो। वाहनों का धुआं 41 प्रतिशत प्रदूषण  के लिए जिम्मेदार है और पहले से ही वाहनों से हो रहे अत्यधिक प्रदूषण की समस्या में हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश में पराली जलने से और बढ़ौतरी हो रही है। हालांकि, अक्तूबर के अंत तक निर्माण गतिविधियों, कोयला जलाने वाली फैक्टरियों पर रोक जैसे सरकारी कदम उठाए जा रहे थे परंतु ये केवल अस्थायी उपाय हैं।

शनिवार को सैंट्रल दिल्ली में पी.एम. 2.5 का स्तर 350 तथा उत्तर दिल्ली में 180 से 200 तक था परंतु फिर भी प्रदूषण के स्तर को बेहद खतरनाक माना जा रहा है क्योंकि 2.5 पाॢटकल्स के अलावा पार्टिकल 10 माइक्रोमीटर्स और उद्योगों तथा वाहनों द्वारा उत्सर्जित होने वाली विभिन्न जहरीली गैसों तथा ‘सट’ के बारे में तो बात कम ही होती है। फाइन पार्टिकल्स तथा ‘सट’ सबसे जानलेवा वायु प्रदूषण हैं क्योंकि वे फेफड़ों तथा खून की गहराई में प्रवेश करके डी.एन.ए. को स्थायी नुक्सान पहुंचाने, हार्ट अटैक, श्वास समस्याओं तथा अकाल मृत्यु का कारण बन सकते हैं। 

दुनिया भर में वायु गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाली संस्था ‘एयर विजुअल’ के आंकड़ों के अनुसार गत तीन सप्ताह से नई दिल्ली सूची में टॉप पर है। दुख की बात है कि केन्द्र अथवा राज्य सरकार की ओर से किसी भी अल्प अथवा दीर्घकालीन पुख्ता कदमों के अभाव में पड़ोसी राज्यों में पराली लगातार जलाई जा रही है और जलाए जा रहे खेतों का आकार भी बहुत बड़ा है। ऐसे में दिल्ली के करोड़ों पीड़ित इससे बचने और जिंदा रहने के लिए क्या कुछ कर रहे हैं। फेस मास्क एक बड़ा बिजनैस बन चुका है जो कुछ पार्टिकल्स को फिल्टर कर सकते हैं परंतु जहरीली गैसों का क्या? यह सोच कर कि इनसे हवा साफ करने में मदद मिल सकती है, वे एयर प्यूरीफायर्स पर पैसा खर्च कर रहे हैं।

वास्तव में बी.बी.सी. की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च में सरकार ने अधिकारियों तथा प्रधानमंत्री की खातिर कुल 140 एयर प्यूरीफायर खरीदे थे। गत वर्ष प्रधानमंत्री आवास के आस-पास टैंकरों से पानी का छिड़काव किया गया था। परंतु अच्छे एयर प्यूरीफायर भी केवल बंद कमरों में ही काम करते हैं और दरवाजों-खिड़कियों के खुलते ही भीतरी हवा का हाल बाहर की प्रदूषित हवा जैसा ही हो जाता है। अब प्रश्न उठता है कि ‘क्या आप हर वक्त ऐसे कमरे में गुजारा कर सकते हैं जो हमेशा पूरी तरह बंद रहे?’ परंतु क्या ऐसे ही अप्रमाणित उपायों से हम इस अति गम्भीर समस्या का हल निकालेंगे? 

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