युवाओं में अंतर्जातीय विवाहों के प्रति बढ़ रहा  ‘प्रशंसनीय रुझान’

Edited By Pardeep,Updated: 17 Oct, 2018 04:13 AM

praised trend  growing towards intermarriage marriages among youth

चूंकि अधिक से अधिक युवा वर्ग जाति के बंधनों से परे अपनी व्यक्तिगत पसंद के अनुसार विवाह करने में दिलचस्पी लेने लगा है, इसलिए आजकल अंतर्जातीय विवाहों का प्रचलन विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बढ़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे राष्ट्रहित में...

चूंकि अधिक से अधिक युवा वर्ग जाति के बंधनों से परे अपनी व्यक्तिगत पसंद के अनुसार विवाह करने में दिलचस्पी लेने लगा है, इसलिए आजकल अंतर्जातीय विवाहों का प्रचलन विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बढ़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे राष्ट्रहित में मानते हुए मान्यता दे दी है। हालांकि विवाह जैसे निजी विषय के साथ धन संबंधी मामले को जोडऩा कुछ अटपटा सा लगता है परंतु युवाओं को अंतर्जातीय विवाहों के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों की सरकारें उन्हें रोजगार अथवा आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं। 

केंद्र सरकार ने ऐसे अंतर्जातीय विवाह के लिए 2.5 लाख रुपए देने का निर्णय किया है जिसमें एक दलित शामिल हो। बंगाल सरकार अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़ों को 50,000 रुपए देती है जबकि तमिलनाडु में ऐसा करने वाले जोड़ों को सरकारी नौकरी पाने में मदद दी जाती है। पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, हिमाचल, पुड्डुचेरी, छत्तीसगढ़ और चंडीगढ़ में भी यह योजना लागू है तथा इसमें महाराष्ट्र सबसे आगे है। 

जहां तक हरियाणा सरकार का संबंध है, राज्य में ‘मुख्यमंत्री सामाजिक समरसता अंतर्जातीय विवाह शगुन योजना’ लागू है। इसके अंतर्गत अंतर्जातीय विवाह करवाने वाले जोड़ों को पहले 1.01 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी जिसे अब बढ़ा कर 2.5 लाख रुपए कर दिया गया है। पति या पत्नी में से एक को अनिवार्य रूप से अनुसूचित जाति का होना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप राज्य के करनाल जिले में इस वर्ष अंतर्जातीय विवाहों में काफी वृद्धि देखने को मिली है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले 6 महीनों में जिला कल्याण कार्यालय में 90 ऐसे जोड़ों ने अपने नाम पंजीकृत करवाए जबकि 2017-18 में यह संख्या 76 और 2016-17 में 47 थी। 

जिला कल्याण अधिकारी श्री सुरेंद्र कुमार फुलिया के अनुसार लगभग 3 मास पूर्व राज्य सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि 1.01 लाख से बढ़ा कर 2.5 लाख रुपए करने के बाद प्रोत्साहन राशि के लिए आवेदन करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इस योजना का उद्देश्य साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ाना और जाति संबंधी भेदभाव समाप्त करना है। पात्र जोड़े विवाह के एक वर्ष के भीतर प्रोत्साहन राशि के लिए ‘वैल्फेयर आफ शैड्यूल कास्ट एंड बैकवर्ड क्लासिज विभाग’ की वैबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। प्रोत्साहन राशि सिर्फ प्रथम विवाह के लिए दम्पति के संयुक्त खाते में तीन वर्ष के फिक्स डिपाजिट के रूप में दी जाएगी। 

अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़े भी इस बात को महसूस करते हैं कि यह योजना विभिन्न समुदायों के बीच बंधनों को मजबूत करने के मामले में सफल रही है। एक जोड़े के अनुसार ‘‘निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा पैदा किए हुए जाति के बंधन किसी को भी लाभ नहीं पहुंचाते तथा इन बंधनों का युवाओं पर ही सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है।’’ समाज कल्याण विभाग के एक अधिकारी ने इस योजना की लोकप्रियता का श्रेय लड़कियों में बढ़ रही साक्षरता को दिया है, ‘‘लड़कियों के उच्च कक्षाओं में दाखिला लेने के साथ यह रुझान तेजी पकड़ रहा है परंतु अधिकांश मामलों में वर अथवा वधू में से किसी एक पक्ष से माता-पिता ऐसे विवाहों में इस भय से शामिल नहीं होते कि ऐसा करने से उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया जाएगा।’’ 

बहरहाल, इस प्रकार की छोटी-मोटी अड़चनों के बावजूद अंतर्जातीय विवाहों के रुझान का जोर पकडऩा एक अच्छा संकेत है। देश में साम्प्रदायिक एकता इसी प्रकार के रुझानों से मजबूत होगी और देश तरक्की करेगा। वैसे चिकित्सीय दृष्टिï से भी इसके अनेक लाभ हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अलग-अलग जाति के लोगों के बीच विवाह से अच्छे एवं अधिक स्वस्थ तथा जन्मजात बीमारी से मुक्त बच्चे पैदा होने की आशा होती है जबकि एक जाति या नस्ल में विवाह से कम स्वस्थ बच्चे पैदा होते हैं। आशा करनी चाहिए कि देश और स्वस्थ समाज के हित में यह रुझान गति पकड़ेगा जिसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को अंतर्जातीय विवाह करने वाले जोड़ों के लिए विभिन्न योजनाएं लागू करके उन्हें और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।—विजय कुमार  

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