‘लद्दाख यात्रा’ पर जाकर प्रधानमंत्री ने चीन तक अपना ‘संदेश’ पहुंचाया

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2020 03:34 AM

prime minister conveying his message to china by going to ladakh yatra

एक ओर चीन और भारत के बीच सीमा विवाद और भारतीय क्षेत्रों के अतिक्रमण को लेकर बातचीत जारी है तो दूसरी ओर चीनी शासकों ने अपना भारत विरोधी एजैंडा भी जारी रखा हुआ है। चीन ने न सिर्फ एल.ए

एक ओर चीन और भारत के बीच सीमा विवाद और भारतीय क्षेत्रों के अतिक्रमण को लेकर बातचीत जारी है तो दूसरी ओर चीनी शासकों ने अपना भारत विरोधी एजैंडा भी जारी रखा हुआ है। चीन ने न सिर्फ एल.ए.सी. पर 20 हजार सैनिक तैनात कर दिए हैं बल्कि जमीन से हवा में मार करने वाली एच.क्यू. 16 और एच.क्यू. 9 मिसाइलें भी तैनात कर दी हैं। 

यही नहीं जहां चीन ने अपने विस्तारवादी एजैंडा के तहत रूस के व्लादिवोस्तोक शहर पर भी अपना दावा जता दिया है वहीं दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने घनिष्ठ सहयोगी म्यांमार के साथ विश्वासघात करते हुए वहां सक्रिय विद्रोही गिरोहों को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करना शुरू कर दिया है जिसके विरुद्ध म्यांमार सरकार ने चीन से रोष व्यक्त किया है। इस प्रकार के हालात में जहां मोदी की रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ 2 जुलाई को फोन पर बातचीत के बाद रक्षा मंत्रालय ने रूस से 33 फाइटरजैट खरीदने के निर्णय की घोषणा की है, वहीं लद्दाख में स्पैशल फोर्सेज की तैनाती भी कर दी है ताकि यदि चीन सीधे तरीके से न माने तो उसके विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक के विकल्प पर भी विचार किया जा सके। 

जहां विभिन्न क्षेत्रों में चीन को झटका देने की भारत सरकार द्वारा तैयारी की जा रही है वहीं चीन को साफ संदेश देते हुए 3 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक लद्दाख पहुंच गए। चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ जनरल बिपन रावत और सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे भी उनके साथ थे। प्रधानमंत्री ने इस यात्रा में जहां अग्रिम पंक्ति पर तैनात जवानों से बातचीत करके उनका हौसला बढ़ाया वहीं परोक्ष रूप से यह कह कर चीन की ‘पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी’ को साफ संदेश भी दे दिया कि ‘‘यह विस्तारवाद का नहीं, विकासवाद का युग है।’’ उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत सरकार अपने जवानों के साथ खड़ी है और किसी भी हालत में उनकी पीठ लगने नहीं देगी। 

इस बीच चीन के उकसाने पर भारत विरोधी निर्णय ले रहे और तीन भारतीय इलाकों लिपिंयाधुरा, लिपुलेख व कालापानी पर दावा करने पर नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली अपनी ही पार्टी के निशाने पर आ गए हैं और उनसे त्यागपत्र की मांग तेज हो गई है जिस पर नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी शनिवार को निर्णय लेगी।—विजय कुमार 

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