‘भारत में विदेशी कम्पनियों को प्रोत्साहन के लिए उन्हें संरक्षण देना जरूरी’

Edited By ,Updated: 16 Dec, 2020 04:44 AM

protection required to encourage foreign companies in india

उद्योग जगत में बढ़ती चीन की बादशाहत को चुनौती देने, अमरीका के साथ चीन के ट्रेड वार बढऩे और उसके बाद कोरोना वायरस महामारी के चलते अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा चीन में अपने कारखाने और कारोबार  बंद करके अन्य एशियाई देशों का रुख करने की बातें कुछ

उद्योग जगत में बढ़ती चीन की बादशाहत को चुनौती देने, अमरीका के साथ चीन के ट्रेड वार बढऩे और उसके बाद कोरोना वायरस महामारी के चलते अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा चीन में अपने कारखाने और कारोबार  बंद करके अन्य एशियाई देशों का रुख करने की बातें कुछ समय से सुनाई देती आ रही हैं। विशेष रूप से वे कम्पनियां जो दुनिया भर में बिकने वाले टी.वी. से लेकर स्मार्टफोन जैसे अपने उत्पादों को चीन में कम लागत की वजह से बनवाती रही हैं, उनके अब भारत का रुख करने की सम्भावनाएं भी अधिक देखी जाने लगी हैं। आंकड़े भी यही दर्शाते हैं कि गत कुछ वर्षों के दौरान इन उत्पादों के निर्माण में भारत का हिस्सा लगातार बढ़ा है। 

स्मार्टफोन तथा कम्प्यूटर बनाने वाली अग्रणी कम्पनी ‘एप्पल’ भारत में कुछ ‘आईफोन’ मॉडल्स पहले से बना रही है और ऐसा कहा जा रहा है कि कम्पनी अपना ज्यादातर बिजनैस चीन से भारत में शिफ्ट करना चाहती है। वहीं ‘सैमसंग’ भी भारत में फोन बनाती है। कम्पनी ने नोएडा में दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल बनाने वाली फैक्टरी भी लगाई है। जून महीने में ही कानून एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने घोषणा की थी कि भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश बन गया है। उन्होंने बताया था कि भारत में अब तक 300 मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लग चुके हैं। उनके अनुसार भारत में 330 मिलियन मोबाइल हैंडसैट्स बनाए जा चुके हैं। 

केन्द्र सरकार ने देश में इलैक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में तेजी लाने के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा भी की हुई है। परंतु गत 12 दिसम्बर को कर्नाटक के कोलार में ‘एप्पल’ के ‘आईफोन’ मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में मैनेजमैंट द्वारा कई महीनों से वेतन न दिए जाने के कारण कर्मचारियों द्वारा की गई तोडफ़ोड़ इस बात का प्रमाण है कि हमारी सरकारें इस अहम मुद्दे को कितने हल्के में लेती हैं। 

उल्लेखनीय है कि यह प्लांट मोदी सरकार की विदेशी कम्पनियों को भारत में आकॢषत करने की पहली बड़ी सफलता के रूप में भी पेश किया जाता रहा है। इसे ताइवान की ‘विस्ट्रॉन कार्पोरेशन’ चलाती है। कम्पनी के अनुसार तोडफ़ोड़ तथा लूटपाट के चलते कम्पनी को 437.40 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ है। यहां 10,000 कर्मचारी काम करते हैं जिनमें से 80 प्रतिशत अस्थायी हैं। कम्पनी ने अपने बयान में कहा है कि तोडफ़ोड़ में ऑफिस के उपकरणों, मोबाइल फोन तथा मशीनों को हुए नुक्सान से 412.5 करोड़ रुपए का घाटा हुआ जबकि ऑफिस के इंफ्रास्ट्रक्चर को 10 करोड़, कार और गोल्फ कार्ट्स को 60 लाख रुपए का नुक्सान पहुंचा है। तोडफ़ोड़ से स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट्स को 1.5 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ है। बताया जा रहा है कि 5000 कॉन्ट्रैक्ट पर आए मजदूरों और 2000 अज्ञात आरोपियों ने इस घटना को अंजाम दिया। 

पुलिस के अनुसार हजारों वर्कर नाइट शिफ्ट पूरी करने के बाद प्लांट से बाहर निकल रहे थे कि अचानक से वे तोडफ़ोड़ करने लगे। उन्होंने रिसैप्शन और असैम्बली यूनिट को नुक्सान पहुंचाया और कुछ गाडिय़ों में आग भी लगा दी। हजारों आईफोन भी चुरा लिए गए। यहां तक कि सबसे पहले मौके पर पहुंची पुलिस टीम पर भी हमला किया गया।

कहा जा रहा है कि कोरोना के चलते वेतन कटने और समय पर न मिलने के कारण कर्मचारियों में नाराजगी थी परंतु सवाल उठता है कि कोरोना के कारण वेतन न दे पाने की समस्या तो अन्य कम्पनियों में भी है। अत: कर्मचारियों ने तोडफ़ोड़ व लूटपाट की बजाय मैनेजमैंट से बातचीत का रास्ता क्यों नहीं अपनाया और अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया!  इस समस्या को इतना बड़ा रूप लेने क्यों दिया गया? समय रहते इस तरह के मुद्दों को हल करने के लिए कोई पुख्ता कदम क्यों नहीं उठाए गए? अब दोषियों के विरुद्ध किस तरह की कार्रवाई की जाएगी और कम्पनी को हुए नुक्सान की भरपाई कौन करेगा?

कर्नाटक में हाल के दिनों में कर्मचारियों के असंतोष से जुड़ी यह एकमात्र घटना नहीं है। ‘टोयोटा किर्लोस्कर मोटर्स’ में 10 नवम्बर से 3500 कर्मचारी हड़ताल पर हैं तथा कर्नाटक रोड ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के 1 लाख कर्मचारियों ने भी 11 दिसम्बर को राज्यव्यापी हड़ताल की थी जिससे राज्य में 20,000 बसों के पहिए थम गए थे। पुलिस ने ‘विस्ट्रॉन कार्पोरेशन’ के प्लांट में हुई तोडफ़ोड़ पर छानबीन शुरू की है पर यदि ऐसी गम्भीर घटनाएं होंगी तो भला कितनी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपना निर्माण शुरू करने की हिम्मत जुटा पाएंगी? 

ऐसे में जहां यह पता लगाना अत्यंत आवश्यक है कि इस घटना के पीछे किन तत्वों का हाथ है, वहीं भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा तुरंत कठोर दंड प्रावधानों वाले कानून की व्यवस्था करना भी जरूरी है। ऐसा न करने पर विश्व की बड़ी कम्पनियां भारत में आने से कतराने लगेंगी जिससे भारत की साख को भारी धक्का लग सकता है। यदि भारत को निर्माण क्षेत्र में अग्रणी बनना है तो कई ऐसी बातें हैं जिनकी ओर ध्यान देना जरूरी है। सबसे पहले तो कम्पनियों को इस बात का भरोसा दिलाना भी बाकी है कि काम करने के लिए उन्हें यहां एक सुरक्षित माहौल मिलेगा और कानून-व्यवस्था का सख्ती से पालन होगा और इसके साथ ही कर्मियों के अधिकारों को भी सुरक्षित करने की व्यवस्था करनी होगी।

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