Edited By ,Updated: 19 Apr, 2016 12:53 AM
इस वर्ष मौसम वैज्ञानिकों ने सामान्य से अधिक गर्मी पडऩे की भविष्यवाणी की है और देश के कुछ हिस्सों में...
इस वर्ष मौसम वैज्ञानिकों ने सामान्य से अधिक गर्मी पडऩे की भविष्यवाणी की है और देश के कुछ हिस्सों में तो मौसम की शुरूआत में ही गर्मी से 200 के लगभग मौतें हो चुकी हैं तथा कम से कम 10 राज्य सूखे की लपेट में हैं। सैंट्रल ग्राऊंड वाटर बोर्ड (सी.जी.डब्ल्यू.बी.) के भूगर्भ वैज्ञानिक श्री शंशाक शेखर के अनुसार,‘‘महाराष्टï्र के लातूर में बोरवैलों द्वारा सीमा से अधिक पानी निकाल लेने के कारण अब वहां बोरवैल भी जवाब दे गए हैं।’’
‘‘लिहाजा अब वहां भूगर्भ डाटा और रिमोट सैंसिंग उपकरणों की सहायता से भूजल का पता लगकर बोरवैल लगाने की नौबत आ गई है लेकिन बीच में चट्टïानें होने के कारण इसमें भी सफलता मिलना संदिग्ध है।’’ वास्तव में लगातार 2 वर्षों से सूखा ग्रस्त चले आ रहे महाराष्ट तथा अन्य सूखा ग्रस्त राज्यों में पानी की स्थिति बहुत खराब है तथा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में भी भविष्य में भारी जलसंकट पैदा हो जाने की आशंका है।
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इस समय 40 वर्षों के सबसे भयावह सूखे से जूझ रहा है। पानी के झगड़े ङ्क्षहसक रूप धारण कर रहे हैं तथा इससे सामाजिक सद्भाव भी समाप्त हो रहा है। नदी-नाले सूखने से जानवर दम तोड़ रहे हैं। जानकारों के अनुसार अगले तीन महीनों में स्थिति और खराब होने वाली है। उक्त राज्यों द्वारा पानी के इस्तेमाल के विश£ेषण से यह ङ्क्षचताजनक तथ्य उजागर हुआ है कि वहां प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में लगातार कमी आ रही है और यदि यही हालत रही तो इन राज्यों में भी महाराष्ट जैसी स्थिति उत्पन्न होने में अब बहुत अधिक समय नहीं लगेगा।
सैंट्रल ग्राऊंड वाटर बोर्ड के जायजे के अनुसार ये सभी राज्य प्रतिवर्ष ‘रीचार्ज’ होने वाले पानी की तुलना में कहीं अधिक मात्रा में भू-जल का इस्तेमाल करके अपने आप को गंभीर जलसंकट की ओर धकेल रहे हैं। शंशाक शेखर के अनुसार, ‘‘पंजाब और हरियाणा में कृषि के लिए पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल गहरी ङ्क्षचता का विषय है और इसके साथ ही पंजाब में भू-जल का दुरुपयोग रोकने के लिए किसानों को मुफ्त बिजली देने का सिलसिला भी तत्काल बंद करने की आवश्यकता है।’’
‘‘हमारे यहां पानी की सर्वाधिक खपत कृषि क्षेत्र में ही होती है। अत: इसके लिए ड्रिप इरिगेशन व सिं्प्रकलरों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।’’ उक्त राज्यों में ही नहीं, हिमाचल प्रदेश में भी स्थिति ङ्क्षचताजनक बनती जा रही है। हिमाचल की राजधानी शिमला तथा अन्य अनेक स्थानों के अलावा जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी पानी की कमी महसूस हो रही है।
हरियाणा में कमी वाले कुछ स्थानों पर पानी की ‘वैंङ्क्षडग’ मशीनें लगाने का प्रस्ताव है जहां 25 पैसे प्रति लीटर की दर से पानी दिया जाएगा। अभी तक तो हरियाणा के लोग लड़के व लड़कियों की संख्या में भारी अंतर की समस्या से ही जूझ रहे थे पर अब पानी की भारी तंगी के चलते दूसरे इलाकों के लोगों ने राज्य के कुछ हिस्सों में अपनी बेटियों का विवाह करना भी बंद कर दिया है। भिवानी जिले के मोरखा गांव की महिलाओं को भी पानी के लिए कई मील का सफर सिर पर घड़े उठाकर तय करना पड़ता है। इसी प्रकार बख्तावरपुरा गांव में बाहरी लोग अपनी इसी समस्या के कारण वहां बेटियां नहीं देना चाहते।
वे नहीं चाहते कि उनकी बेटियां अपनी सारी जिंदगी दूरवर्ती इलाकों से पानी ढोने में ही बिता दें। लोगों का कहना है कि भला जानबूझ कर कोई ऐसे इलाके में अपनी बेटी को क्यों ब्याहना चाहेगा। कुल मिलाकर हमारी अपनी लापरवाही, निजी स्वार्थों और जानकारी के अभाव तथा सरकार की उदासीनता से जहां हमने देश के वायुमंडल को जहरीला कर दिया है वहीं हमने पानी को भी नहीं बख्शा और इसका हद से ज्यादा दुरुपयोग करके समस्या को और बढ़ाया है। प्रकृति के इस अनमोल तोहफे को इस प्रकार बर्बाद करना एक चेतावनी है कि यदि अभी भी हम न संभले तो वह दिन दूर नहीं जब लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए मरने-मारने पर उतारू हो जाएंगे।
—विजय कुमार