Edited By ,Updated: 13 Jul, 2019 03:44 AM
लोकसभा चुनावों में बम्पर सफलता से उत्साहित भाजपा नेतृत्व जहां देश में अपने साथ अढ़ाई करोड़ नए सदस्य जोडऩे के लिए अभियान चला रहा है वहीं बड़ी संख्या में अपने दल छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की दूसरे दलों के छोटे-बड़े नेताओं में होड़ सी मची हुई...
लोकसभा चुनावों में बम्पर सफलता से उत्साहित भाजपा नेतृत्व जहां देश में अपने साथ अढ़ाई करोड़ नए सदस्य जोडऩे के लिए अभियान चला रहा है वहीं बड़ी संख्या में अपने दल छोड़ कर भाजपा में शामिल होने की दूसरे दलों के छोटे-बड़े नेताओं में होड़ सी मची हुई है।
बेशक भाजपा नेतृत्व बांहें फैला कर दल बदलुओं का स्वागत कर रहा है परंतु पार्टी के एक वर्ग में इसके विरुद्ध नाराजगी के स्वर भी उभरने शुरू हो गए हैं और गोवा में कांग्रेस के 10 दल बदलू विधायकों द्वारा भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस में मचे कोहराम के बीच गोवा में भाजपा के अनेक वरिष्ठï व युवा नेताओं ने, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर के नजदीकी नेता भी शामिल हैं, (उच्च) नेतृत्व द्वारा भाजपा के ‘कांग्रेसीकरण’ पर नाराजगी जाहिर की है।
1980 तथा 90 के दशक में गोवा में भाजपा को स्थापित करने में पूर्व मुख्यमंत्रियों मनोहर पर्रिकर और लक्ष्मीकांत पर्सेकर तथा वर्तमान केंद्रीय मंत्री और उत्तरी गोवा से सांसद श्रीपाद नाइक के साथ मिल कर काम करने वाले व पर्रिकर सरकार में पर्यावरण मंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष रह चुके राजेंद्र अर्लेकर के अनुसार :
‘‘जो कुछ भी हुआ है, वह ठीक नहीं है। यह हमारी उस पार्टी के सिद्धांतों और संस्कृति के अनुरूप नहीं है जिसकी हमने स्थापना की थी। हम देखेंगे कि इसमें सुधार के लिए क्या किया जा सकता है। मैं यह मामला पार्टी अध्यक्ष के साथ उठाऊंगा।’’ एक अन्य भाजपा नेता व मनोहर पर्रिकर के साथी गिरिराज पई वर्णेकर के अनुसार,‘‘गोवा भाजपा को विधायक तो मिल गए हैं पर इसने असंख्य कार्यकत्र्ताओं का विश्वास खो दिया है फिर भी हम बेहतर गोवा के लिए संघर्ष करते रहेंगे भले ही इसका अर्थ अपनी ही पार्टी से लडऩा क्यों न हो।’’ पुराने ही नहीं, वर्तमान पीढ़ी के नेताओं में भी पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर नाराजगी व्याप्त है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पाॢरकर के पुत्र उत्पल पाॢरकर ने कहा है कि ‘‘आज पार्टी जिस रास्ते पर चल पड़ी है, यह वह रास्ता नहीं है जिसका सपना मेरे पिता ने देखा था। विश्वास का वह रास्ता जो मेरे पिता की राजनीति से बना, 17 मार्च को उनकी मौत के साथ ही समाप्त हो गया।’’
विरोधी दल तो पहले ही भाजपा को ‘शिकारी पार्टी’ कहने लगे हैं, अब दल बदली के विरुद्ध भाजपा के भीतर से ही उठ रही आवाजों पर पार्टी नेतृत्व को ध्यान देना चाहिए ताकि उन पर दल बदली को बढ़ावा देने जैसे आरोप न लगें। इसके साथ ही जैसा कि हमने 12 जुलाई के सम्पादकीय में लिखा था, ऐसा कानून भी बनना चाहिए कि जो उम्मीदवार जिस पार्टी से चुना जाए वह अपना कार्यकाल समाप्त होने तक उसी पार्टी में रहे और दल न बदल सके ताकि लोकतंत्र को बचाया जा सके।—विजय कुमार