राजस्थान सरकार का ‘मीडिया को परेशान करने वाला अध्यादेश’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 01:36 AM

rajasthan governments ordinance to disturb media

राजस्थान की भाजपा सरकार ने गत मास एक अध्यादेश जारी किया जो लोक सेवकों, जजों और मैजिस्ट्रेटों के विरुद्ध उनकी ड्यूटी के निष्पादन के दौरान किए गए कृत्यों संबंधी आरोपों की जांच और उसकी मंजूरी के बिना रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोकता है। इस अध्यादेश...

राजस्थान की भाजपा सरकार ने गत मास एक अध्यादेश जारी किया जो लोक सेवकों, जजों और मैजिस्ट्रेटों के विरुद्ध उनकी ड्यूटी के निष्पादन के दौरान किए गए कृत्यों संबंधी आरोपों की जांच और उसकी मंजूरी के बिना रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोकता है।

इस अध्यादेश द्वारा लोक सेवकों को पुलिस जांच से क्रियात्मक रूप से बचा लिया गया है तथा इससे भी एक कदम आगे जाते हुए लोगों और मीडिया को जांच संबंधी अनुमति मिलने तक संबंधित अधिकारी की पहचान उजागर करने से भी रोका गया है। अनुमति की प्रतीक्षा कर रहे लोक सेवकों के नाम, चित्र और विवरण के प्रकाशन, मुद्रण और प्रचार करने पर प्रतिबंध के उल्लंघन का दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए अध्यादेश की धारा 5 के अंतर्गत 2 वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। 

इस अध्यादेश के प्रकाश में आते ही राज्य की राजनीति में उबाल आ गया है। कांग्रेस ने इसके पीछे बदनीयती का आरोप लगाते हुए कहा है कि गले तक भ्रष्टाचार में डूबी भाजपा सरकार अपने अपराधी और भ्रष्ट अधिकारियों को बचाना चाहती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के अनुसार इस अध्यादेश द्वारा गलत काम करने वाले सरकारी अधिकारियों को सुरक्षा प्राप्त हो जाएगी और अन्य को भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का प्रोत्साहन मिलेगा। 23 अक्तूबर को राजस्थान विधानसभा के वर्तमान सत्र में गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने विपक्ष और भाजपा के एक वरिष्ठï विधायक के भारी विरोध और वाक्आऊट के बीच उक्त ‘दंड विधियां राजस्थान संशोधन विधेयक-2017’ सदन में पेश किया। 

हालांकि श्री कटारिया और संसदीय कार्यमंत्री राजेंद्र राठौर ने विधेयक का विरोध कर रहे सदस्यों को आश्वासन दिया कि चर्चा के दौरान उनकी शंकाओं का समाधान किया जाएगा। इसके बावजूद कांग्रेस, नैशनल पीपुल्स पार्टी और भाजपा के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवारी ने विधेयक के विरोध में सदन से वाक्आऊट किया। इस बीच राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं ने मुंह और कानों पर काली पट्टिïयां बांध कर विधेयक को काले कानून की संज्ञा देने वाले नारे लिखी तख्तियां हाथ में लेकर जयपुर में मार्च निकाला। कांग्रेस दंड विधियां (राजस्थान संशोधन विधेयक) 2017 को काला कानून बताते हुए इसे वापस लेने के लिए राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन राज्यपाल को देने वाली थी। 

इस अवसर पर वरिष्ठï कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने बजाज नगर थाने के बाहर संवाददाताओं से कहा कि दंड विधि राजस्थान संशोधन विधेयक 2017 का कांग्रेस सदन के भीतर और बाहर विरोध करेगी और किसी भी हालत में इसे पारित नहीं होने देगी। जहां राजस्थान सरकार ने दंड विधि (राजस्थान संशोधन विधेयक) 2017 के चौतरफा विरोध पर कहा है कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार की मंशा मीडिया पर अंकुश लगाने की नहीं है तथा सरकार यह विधेयक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लाई है वहीं दंड विधि राजस्थान संशोधन अध्यादेश 2017 को लेकर राजस्थान सरकार की परेशानी 23 अक्तूबर को उस समय बढ़ गई जब इसे राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती भी दे दी गई। 

यह अध्यादेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध है और एडीटर्स गिल्ड ने भी राजस्थान सरकार से उस हानिकारक अध्यादेश को वापस लेने की मांग कर दी है जो लोक सेवकों, न्यायाधीशों और मैजिस्ट्रेटों के विरुद्ध आरोपों पर उसकी स्वीकृति के बिना रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोकता है। गिल्ड ने एक बयान में कहा है कि यह अध्यादेश मीडिया को परेशान करने वाला एक खतरनाक यंत्र है और ऐसा लगता है कि राज्य सरकार का पिछले महीने जारी अध्यादेश प्रकटत: प्राथमिकी से न्यायपालिका और नौकरशाही की रक्षा करने के लिए लाया गया है। यह लोकहित के मामलों की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों को जेल में बंद करने तक की निरंकुश ताकत देता है।

इस समय जबकि भाजपा नेतृत्व हिमाचल और गुजरात में 2-2 चुनावी मोर्चों पर उलझा हुआ है राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने यह विवादास्पद अध्यादेश लाकर पार्टी नेतृत्व को एक और विवाद में उलझा दिया है।—विजय कुमार

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