देश के जर्जर सरकारी स्कूलों को आइना दिखाता राजस्थान (बांसवाड़ा) का एक सरकारी स्कूल

Edited By ,Updated: 09 Mar, 2016 01:44 AM

rajasthan mirror to show the country s dilapidated public schools banswara a government school

हम बार-बार लिखते रहे हैं कि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा, चिकित्सा, लगातार बिजली और स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

हम बार-बार लिखते रहे हैं कि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा, चिकित्सा, लगातार बिजली और स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। पूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम का भी कहना था कि देश को आगे ले जाने के लिए नीचे के स्तर से ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है पर केंद्र व राज्य  सरकारें दोनों ही यह जिम्मेदारी निभाने में बुरी तरह असफल रही हैं। 

 
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश सहित देश के अधिकांश राज्यों के सरकारी अस्पतालों की भांति ही सरकारी स्कूलों की दशा भी अत्यंत खराब है। 
 
सरकारी स्कूलों में अध्यापकों तथा अन्य स्टाफ, बिजली, पीने के पानी, शौचालयों का अभाव और गंदगी की एक जैसी शिकायतें हैं, उनमें बुनियादी सुविधाओं का भी भारी अभाव है। अधिकांश इमारतें जर्जर हालत में हैं जो किसी भी समय बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती हैं। 
 
पंजाब के चंद सरकारी स्कूलों में भी बुनियादी ढांचे का इस कदर अभाव है कि अनेक स्कूलों में एक-एक कमरे में 50-50 बच्चे ठूंसे जा रहे हैं। विदेशों में नौकरी करने के मोह के कारण 1200 से अधिक सरकारी अध्यापक लम्बी छुट्टियों पर हैं जो सभी विदेशों में बस गए हैं। 
 
600 के लगभग अनुपस्थित चले आ रहे अध्यापकों की सेवाएं समाप्त भी की गई हैं। राज्य में अध्यापकों के 20,000 से अधिक पद खाली हैं। कुछ स्थानों पर तो स्कूल बंद रहने के कारण वहां लोगों ने अवैध कब्जे तक कर लिए हैं। हिमाचल के 84 सरकारी प्राइमरी स्कूलों में किसी भी छात्र का दाखिला न होने के कारण वे निष्क्रिय हो गए हैं। इसके अलावा प्रदेश के 451 प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की संख्या 5 से कम और 900 स्कूलों में 10 से भी कम है। 
 
प्रदेश में 68 मिडल स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या 5 से कम और 130 मिडल स्कूलों में 10 से भी कम है, 982 स्कूलों में एक अध्यापक ही पढ़ा रहा है तथा 17 स्कूल 1-1 छात्र के लिए चलाए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के अनेक क्षेत्रों के बच्चे स्कूल निकट न होने के कारण क्रियात्मक रूप से शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। हरियाणा में 104 स्कूल ऐसे हैं जिनमें कोई छात्र नहीं है। यू.पी. के स्कूलों का भी बुरा हाल है। 
 
गत वर्ष 18 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राइमरी शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और विधायकों के बच्चों के दाखिले सरकारी स्कूलों में करवाने के आदेश दिए थे। मान्य न्यायाधीशों का कहना था कि ऐसा करने से उनका ध्यान सरकारी स्कूलों की बुरी हालत की ओर जाएगा तथा वे इसे सुधारने को विवश होंगे परंतु वे इस आदेश का पालन करने को तैयार नहीं क्योंकि वे सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर की वास्तविकता अच्छी तरह जानते हैं। 
 
ऐसी स्थिति में राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बजवाना गांव का उच्च माध्यमिक विद्यालय एक उदाहरण के रूप में उभरा है। इस स्कूल की दशा सुधारने के मामले में सरकार की उदासीनता से जब गांव वाले निराश हो गए तो उन्होंने स्वयं इसकी दशा सुधारने का बीड़ा उठाया और कुछ एन.जी.ओज की सहायता से यहां पहली से लेकर दसवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को महंगे प्राइवेट स्कूलों से भी अधिक सुविधाएं उपलब्ध करवाईं। 
 
स्कूल की हर कक्षा में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हुए हैं, बायोमीट्रिक प्रणाली से हाजिरी लगाई जाती है। बिजली चली जाने पर कम्प्यूटर बंद न हों, अत: इनवर्टर व जैनरेटर भी लगाए गए हैं। स्कूल की अपनी कम्प्यूटर लैब, वैबसाइट और हर कक्षा में ‘व्हाइट बोर्ड’ की व्यवस्था है। 
 
कुछ समय पूर्व पंजाब के शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने भी राज्य के सरकारी स्कूलों के खराब परिणाम देने वाले अध्यापकों की ‘क्लास’ लगाई थी परंतु बांसवाड़ा स्कूल के अध्यापकों ने ऐसा कुछ किए बिना ही शत-प्रतिशत परिणाम दिया है जो उनकी लगन और अपने कत्र्तव्य के प्रति निष्ठा तथा गांव वासियों द्वारा शिक्षा के प्रति जागरूकता एवं प्रयासों का परिणाम है। अत: यदि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, यू.पी. आदि राज्यों के अधिकारी उक्त स्कूल का दौरा करके अपने अधीनस्थ स्कूलों में उनके किए हुए उपाय अपनाएं तो इन स्कूलों की दशा सुधरने में देर नहीं लगेगी। 
 

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