‘श्री राम मंदिर निर्माण’ के लिए ‘भूमि पूजन’‘करोड़ों रामभक्तों की आस्था शीर्ष पर’

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2020 02:48 AM

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कोरोना संक्रमण के चलते सुरक्षा संबंधी तमाम सावधानियों के बीच 5 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अवधपुरी अयोध्या में श्री राम के भव्य एवं विशाल मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन सम्पन किया। अयोध्या से वनवास के लिए जाते समय श्री राम सरयू नदी

कोरोना संक्रमण के चलते सुरक्षा संबंधी तमाम सावधानियों के बीच 5 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अवधपुरी अयोध्या में श्री राम के भव्य एवं विशाल मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन सम्पन किया। अयोध्या से वनवास के लिए जाते समय श्री राम सरयू नदी पार करके गए थे और वनवास की समाप्ति पर सरयू नदी पार करके ही अयोध्या लौटे थे। अयोध्या के किनारे स्थित यही सरयू नदी अवधपुरी में रामलला के भव्य मंदिर के शिलान्यास की साक्षी बनी है। 

भूमि पूजन समारोह में भारत से प्रमुख 36 सम्प्रदायों के 135 संत-महात्माओं तथा अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों सहित 175 के लगभग लोगों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित थे।

मंदिर निर्माण का सपना साकार होने की खुशी में समस्त भारत और विश्व के अनेक भागों में राम भक्तों ने ‘राम चरित मानस’ सहित पाठ और हवन यज्ञों का आयोजन किया तथा दीपमाला की गई। अनेक स्थानों पर लोगों को एक-दूसरे को बधाई देते हुए, साधु-संतों के साथ राम धुन पर नाचते-गाते हुए, डफली और डमरू बजाते हुए तबले की थाप पर नाचते देखा गया। अयोध्या पहुंचने पर श्री मोदी सबसे पहले हनुमानगढ़ी गए। फिर रामलला के दर्शन और दिव्य वृक्ष पारिजात का पौधा लगाने के बाद प्रधानमंत्री ने राम मंदिर भूमि पूजन स्थल पर पहुंच कर उन शिलाओं की पूजा की जो राम मंदिर की नींव में रखी जाएंगी। 

इस अवसर पर बोलते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘अवधपुरी को सप्त पुरियों में से एक माना जाता है और आज  वह पल आ ही गया जिसकी प्रतीक्षा में कई पीढिय़ां चली गईं और लोगों ने असंख्य बलिदान दिए।’’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने पूर्व संघ प्रमुख श्री बाला साहब देवरस, अशोक सिंघल तथा श्री लाल कृष्ण अडवानी आदि को याद करते हुए कहा ‘‘लम्बे संघर्ष के बाद अपनी संकल्पपूर्ति की शुरूआत का आनंद हमें मिल रहा है और सबसे बड़ा आनंद यह है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो प्रयास हो रहे हैं उसकी आज शुरूआत हो रही है।’’ 

‘श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र’ के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा, ‘‘हमारे सामने यही प्रश्र आता था कि कब बनेगा राम मंदिर? करोड़ों हिंदुओं की आकांक्षा की पूर्ति के लिए आज सभी लोग तन, मन और धन अर्पण करने को तैयार हैं। अब तो यही कामना है कि जल्दी से जल्दी निर्माण पूरा हो जाए ताकि लोगों की भावना पूरी हो।’’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘जय सिया राम’ के उद्घोष से भाषण आरंभ करते हुए कहा, ‘‘आज सरयू के किनारे भारत एक स्वॢणम इतिहास रच रहा है। टूटना और फिर खड़ा होना सदियों से जारी इस क्रम से राम जन्म भूमि आज मुक्त हुई है। पूरा देश रोमांचित और हर मन ‘दीप मय’ है। वर्षों से टैंट के नीचे रह रहे रामलला के लिए भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा।’’ 

‘‘कई देशों के लोग स्वयं को श्री राम से जुड़ा हुआ मानते हैं और उनका वंदन करते हैं। सर्वाधिक मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में ‘कांकाबिन रामायण’, ‘स्वर्णदीप रामायण’, ‘योगेश्वर रामायण’ जैसी कई अनूठी रामायण हैं और राम आज भी वहां पूजनीय हैं। कम्बोडिया में ‘रमके रामायण’, तमिल में ‘कम्ब रामायण’, तेलगू में ‘रघुनाथ और रंगनाथ रामायण’, कश्मीर में ‘रामावतार चरित’, मलयालम में ‘राम चरितम’, बांगला में ‘कृतिवास रामायण’ है तथा गुरु गोङ्क्षबद सिंह ने ‘गोविंद रामायण’ लिखी है।’’ ‘‘थाईलैंड, मलेशिया और  ईरान में भी राम कथाओं का विवरण मिलेगा। नेपाल और श्रीलंका के साथ तो राम का आत्मीय संबंध जुड़ा हुआ है। श्री राम भारत की मर्यादा हैं और श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।’’ 

हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके कहा था कि, ‘‘बाबरी मस्जिद थी और रहेगी।’’ इसके जवाब में बाबरी मस्जिद प्रकरण में मुस्लिम पक्षकार रहे स्व. हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी ने कहा है कि, ‘‘6 दिसम्बर 1992 से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है और अब उसे याद करने का कोई लाभ नहीं है। राम नगरी अयोध्या तथा देश में हिन्दू-मुस्लिम का कोई विवाद नहीं है, अत: अब इसको लेकर राजनीति बंद हो।’’निश्चित ही 500 वर्ष बाद आज राम मंदिर के पुनॢनर्माण के लिए शिला पूजन सम्पन्ïन होने से सबमें हर्ष की लहर है। ऐसे में जब हम अतीत में झांक कर देखते हैं तो मन में प्रश्न उठता है कि आखिर इस घटनाक्रम के पीछे दोष किसका है? 

निश्चित रूप से इसके लिए मुगल नहीं बल्कि हमारी आपसी फूट और सत्ता के लिए उनके आगे आत्मसमर्पण और धर्म परिवर्तन जैसी तुष्टीकरण की नीति जिम्मेदार है। पहले हम मुगलों की अधीनता में रहे और फिर अंग्रेज़ों के साथ मिल गए। जब महात्मा गांधी ने देखा कि युद्ध करके अंग्रेज़ों पर विजय नहीं प्राप्त की जा सकती तो उन्होंने अहिंसा का मार्ग अपनाया और भूख हड़तालें और सत्याग्रह जैसे अहिंसक उपायों से देश को एकजुट करके स्वतंत्र करवाया। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला भी हिंसा से नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से ही रामलला विराजमान के पक्ष में हुआ जिसका परिणाम आज मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के रूप में निकला है। अत: निश्चित ही यह सत्य और अहिंसा की जीत है।—विजय कुमार

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