यौन शोषण के विरुद्ध क्रांति घर से शुरू हो

Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Oct, 2017 12:29 AM

revolution against sexual abuse begins at home

1970 के दशक में बॉलीवुड ने हो सकता है हॉलीवुड कल्चर से काफी कुछ खुले दिल से लिया हो परंतु हॉलीवुड की अभिनेत्रियों का आंदोलन भारत की आम महिलाओं में एक ईको देखता है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इस परिदृश्य के लिए सोशल मीडिया धन्यवाद का अधिकारी है। फेसबुक...

1970 के दशक में बॉलीवुड ने हो सकता है हॉलीवुड कल्चर से काफी कुछ खुले दिल से लिया हो परंतु हॉलीवुड की अभिनेत्रियों का आंदोलन भारत की आम महिलाओं में एक ईको देखता है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इस परिदृश्य के लिए सोशल मीडिया धन्यवाद का अधिकारी है। 

फेसबुक तथा ट्विटर पर गत 15 अक्तूबर को शुरू हुए ...मी टू...अभियान में, जिसमें हॉलीवुड निर्माता हार्वे वेनस्टीन के विरुद्ध यौन शोषण के दोष लगे थे, की प्रतिक्रिया स्वरूप 24 घंटों से भी कम समय में अनेक अभिनेत्रियों ने आगे आकर इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें हार्वे द्वारा परेशान किया गया था। सोशल मीडिया पर विश्व भर से जीवन के सभी क्षेत्रों से संबंध रखने वाली महिलाओं ने आगे आकर कार्यस्थलों पर परेशान किए जाने के उदाहरण अनुभव सांझे किए। 

भारत में जे.एन.यू. और बी.एच.यू. तथा ‘पिंजरातोड़ अभियान’ से संबंध रखने वाली अनेक युवा छात्राओं ने आगे आकर अपने प्रोफैसरों और अध्यापकों द्वारा उन्हें परेशान किए जाने की कहानियां सुनाईं। यह तथ्य है कि  इन लड़कियों ने यौन शोषण के विरुद्ध मौन संस्कृति को नकारते हुए सामने आने का साहस किया जो कि अकारण  ही भारत में ईव टीजिंग कहा जाता है। सम्भवत: समाज अभी भी यह स्वीकार करने से इंकार करता है कि इस तरह का शोषण गम्भीर मामला नहीं है। हालांकि 1950 में भारतीय महिलाओं को हमारे संविधान ने वैधानिक रूप से समान अधिकार प्रदान किए हैं परंतु कानून की व्याख्या तथा इसे दिए जाने वाले अमली रूप में अभी भी बहुत अंतर है। यहां तक कि हमारे अनेक सांसदों के ऐसे बयान देखने को मिलते हैं जिनमें महिलाओं के अधिकारों के बारे में अप्रासंगिक बातें कही गई होती हैं। यहां तक कि गम्भीर हिंसा और बलात्कार के संबंध में अनुचित परिधान या सूर्यास्त के बाद घर से बाहर निकलने, मोबाइल फोन रखने जैसे कारण बताए जाते हैं। 

हमारे पहले सांसद भी इससे बहुत भिन्न नहीं थे। मई 1958 में जब पहली बार महिलाओं से छेड़़छाड़ करने वालों को 15 वर्ष कैद या 10 हजार रुपए जुर्माना प्रस्तावित करने वाला विधेयक वोटिंग के लिए पेश किया गया था तो दोनों ही सदनों ने दृढ़तापूर्वक इसके विरुद्ध मतदान किया था। फिर अप्रैल 1960 में महिलाओं को सड़कों पर छेड़छाड़ करने वाले पुरुषों के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाने वाला निवारक नजरबंदी कानून भी सिरे नहीं चढ़ पाया। सम्भवत: 2012 के निर्भया केस ने भारतीय महिलाओं के वैधानिक अधिकारों के लिए जो कुछ किया वैसा ही अमरीकी महिलाओं के लिए एक घरेलू परिचारिका हैस्टर वा के केस ने किया था। 

फिलाडेल्फिया में हैस्टर के मालिक ने उससे बलात्कार किया और उसके गर्भवती हो जाने के बाद उसे नौकरी से निकाल दिया था। उसके मालिक को अंतत: गिरफ्तार नहीं किया गया था और जब हैस्टर का गर्भस्थ शिशु ठंड के कारण सड़क पर मर गया तो उस पर शिशु हत्या का केस चलाया गया था तो महिलाएं पहली बार अमरीका में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संगठित हुईं। इसके बावजूद आज के समाज में यह एक अपवाद स्वरूप केस ही प्रतीत होता है। लेकिन सच्चाई यही है कि बलात्कार जैसे चरम मामलों में अनेक महिलाओं को न्याय मिलना कठिन होता है और कार्यस्थल पर छेड़छाड़ के मामलों में हाई प्रोफाइल केसों में भी ऐसा कम ही हो पाता है तथा ऐसे मामलों को उंगलियों पर ही गिना जा सकता है। 

हालांकि सोशल मीडिया पर इन दिनों जारी बहस मीडिया तथा युवाओं का ध्यान आकर्षित कर रही है लेकिन यह किसी क्रांति को जन्म नहीं दे रही और न ही अपराध करने वालों के विरुद्ध नकारात्मक भावनाओं को उभार रही है। सिर्फ महिलाओं के संबंध में सहानुभूति की एक लहर दिखाई देती है। हालांकि फेसबुक या ट्विटर जैसा सोशल मीडिया ऐसा मंच नहीं है जहां क्रांतियां सफल हो सकें ज्यादा से ज्यादा ये कुछ हलचल पैदा कर सकते हैं। लिहाजा कुल मिलाकर यह हमारे समाज के लिए बेहतर होगा कि पहले हम अपने घरों में ही क्रांति लाएं जिसका मार्गदर्शन माता-पिता करें और अपने बच्चों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं। 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!