बिहार में ‘सत्तारूढ़ और विपक्षी’‘दोनों में असंतोष के बढ़ते स्वर’

Edited By ,Updated: 12 Sep, 2020 04:20 AM

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चुनाव आयोग द्वारा 29 नवम्बर तक बिहार में समूची चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न करवा देने की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दलों ने राज्य में  चुनावी गतिविधियां तेज कर दी हैं। 7 सितम्बर को सत्तारूढ़ जद (यू) के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश

चुनाव आयोग द्वारा 29 नवम्बर तक बिहार में समूची चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न करवा देने की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दलों ने राज्य में चुनावी गतिविधियां तेज कर दी हैं। 7 सितम्बर को सत्तारूढ़ जद (यू) के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा चुनाव अभियान शुरू करने के बाद श्री नरेंद्र मोदी ने 10 सितम्बर को उनकी तारीफ के साथ भोजपुरी में अपने वीडियो संबोधन द्वारा ‘राजग’ का चुनावी बिगुल बजा दिया है परंतु सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों ही गठबंधनों में असंतोष के स्वर तेजी से उभर रहे हैं। 

जब से ‘लोजपा’ की कमान चिराग पासवान के हाथ में गई है, तभी से वह नीतीश कुमार की जद (यू) सरकार पर निशाना साध रहे हैं। दोनों दलों में ऊल-जलूल बयानबाजी शुरू हो जाने से राजग के इन दो महत्वपूर्ण गठबंधन सहयोगियों में तनाव बढ़ता जा रहा है। हाल ही में जीतन राम मांझी की ‘हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा’ (हम) के राजग में शामिल होने के बाद चिराग पासवान भड़क उठे हैं। इसके लिए वह नीतीश को जिम्मेदार मान रहे हैं। अत: ऐसे कयास भी लगाए जा रहे थे कि ‘लोजपा’ इन चुनावों में अलग रास्ता चुन सकती है। 

जद (यू) और लोजपा के बीच सीटों के बंटवारे पर भी विवाद है। चिराग पासवान की पार्टी ‘लोजपा’ 43 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है लेकिन नीतीश कुमार की जद (यू) उसे 30 से अधिक सीटें नहीं देना चाहती क्योंकि 2015 के चुनाव में ‘लोजपा’ सिर्फ 2 सीटें ही जीत सकी थी। यही नहीं जद (यू) का कहना है कि राजग में शामिल प्रत्येक दल को नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करना होगा। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी कहा है कि बिहार के चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे परंतु  ‘लोजपा’ इस पर सहमत नहीं है। 

‘लोजपा’ का कहना है कि ‘‘राज्य के लोग मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को लेकर उत्साहित नहीं हैं और उनके विरुद्ध लोगों में रोष व्याप्त है अत: चिराग पासवान इस संबंध में जो चाहे निर्णय ले सकते हैं।’’ हाल ही में ‘लोजपा’ संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी प्रमुख चिराग पासवान को यह अधिकार दिया गया कि यदि जरूरत पड़े तो लोजपा को जद (यू) के विरुद्ध प्रत्याशी उतारने से भी परहेज नहीं करना चाहिए। इसके जवाब में जहां ‘राजग’ में शामिल होने के बाद से जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के नेता लगातार ‘लोजपा’ के नेताओं पर निशाना साध रहे हैं वहीं जीतन राम मांझी ने कहा है कि ‘‘लोजपा यदि जद (यू) के विरुद्ध प्रत्याशी उतारेगी तो हम भी ‘लोजपा’ के विरुद्ध अपने प्रत्याशी उतारेंगे।’’ 

यही नहीं नीतीश कुमार की जद (यू) और चिराग पासवान की ‘लोजपा’ स्वयं को गठबंधन सहयोगी नहीं मानते। अत: भाजपा के लिए इस मामले से निपटना काफी कठिन हो गया है। हालांकि भाजपा में आर.के. सिंह और संजय पासवान आदि चंद वरिष्ठ नेताओं का तो यहां तक कहना था कि पार्टी अपने बूते पर चुनाव लड़ कर विजय प्राप्त करने में सक्षम है परंतु भाजपाध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने नीतीश के ही नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात कह कर यह मुद्दा समाप्त कर दिया है। सत्तारूढ़ गठबंधन की भांति ही लालू प्रसाद यादव के ‘राजद’ नीत ‘महागठबंधन’ को भी झटके पर झटके लग रहे हैं और पिछले अढ़ाई महीनों में लालू की पार्टी के 12 नेता नीतीश कुमार के जद (यू) में चले गए हैं। और अब 32 वर्षों से ‘राजद’ से जुड़े और इसके संस्थापक सदस्य तथा उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने 10 सितम्बर को पार्टी से त्यागपत्र देकर इसे झटका दे दिया है। 

लालू के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव के उस बयान से भी रघुवंश प्रसाद सिंह नाराज बताए जाते हैं जिसमें तेज प्रताप ने उन्हें‘एक लोटा पानी’ कहा था। अत: अपने 2 पंक्तियों के त्यागपत्र में रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा है कि ‘‘मैं 32 वर्षों तक आपके पीछे खड़ा रहा लेकिन अब नहीं।’’ लालू के साथी जीतन राम मांझी ने तो उन्हें छोड़ा ही, लालू के बड़े बेटे और महुआ से विधायक तेज प्रताप यादव की ‘परित्यक्त’ पत्नी ऐश्वर्य राय भी तेज प्रताप के विरुद्ध चुनाव लडऩे की सोच रही है। उल्लेखनीय है कि पटना की एक पारिवारिक अदालत में तेज प्रताप और ऐश्वर्य के तलाक का मुकद्दमा चल रहा है। हाल ही में ‘राजद’ छोड़ कर जद (यू) में शामिल हुए ऐश्वर्य के पिता चंद्रिका राय ने तेज प्रताप यादव को ‘भगौड़ा’ बताते हुए कहा है कि ‘‘मेरी बेटी जहां से भी चाहेगी चुनाव लड़ेगी, मैं उसे रोकूंगा नहीं।’’ 

चंद्रिका राय ने कहा कि ‘‘दोनों भाई (तेज प्रताप व तेजस्वी यादव) अपने लिए सुरक्षित सीटें ढूंढ रहे हैं पर कोई सुरक्षित सीट उन्हें नहीं मिलेगी।’’ गठबंधन सहयोगी कांग्रेस, भाकपा, माकपा और रालोसपा आदि के साथ सीटों के बंटवारे पर भी महागठबंधन में सहमति नहीं बन पा रही है। इस तरह के घटनाक्रम के बीच भाजपा को अलविदा कह कर ‘यूनाइटिड डैमोक्रेटिक अलायंस’ बनाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बिहार की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा करके बिहार की राजनीति में हलचल बढ़ा दी है। 

बहरहाल अब बिहार में कोरोना संक्रमण के दौरान चुनाव लडऩे वाले सभी राजनीतिक दल नए-नए चुनावी नारे गढऩे के अलावा अपने नेताओं के चित्रों और पार्टी के नारों वाले रंग-बिरंगे मास्क लोगों में बांटने की तैयारी कर रहे हैं।कुल मिलाकर हमेशा की तरह इन चुनावों में भी नए-नए समीकरण और नए-नए गठबंधन बनने शुरू हो चुके हैं लेकिन यह तो अभी शुरूआत मात्र है, ‘आगे-आगे देखिए होता है क्या’।—विजय कुमार 

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