असम  द्वारा विधेयक पारित माता-पिता की देखभाल न करने पर कटेगा सरकारी कर्मचारियों का वेतन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Sep, 2017 12:47 AM

salary of government employees will not be taken care of parents

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जब बुढ़ापे में बुजुर्गों को...

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जब बुढ़ापे में बुजुर्गों को बच्चोँ के सहारे की सर्वाधिक जरूरत होती है, अधिकांश संतानें बुजुर्गों से उनकी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखïवा कर अपने माता-पिता की ओर से आंखें फेर कर उन्हें अकेला छोड़ देती हैं

इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने ब"ाों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने ‘जीवन की संध्या’ में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं।

संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा रोकने और उनकी ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था।

इसके अंतर्गत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा सेवारत सरकारी कर्मचारियों के वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान किया गया था।

कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसे कानून बनाए हैं। संसद ने भी ‘अभिभावक और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ द्वारा बुजुर्गों की देखभाल न करने पर & मास तक कैद का प्रावधान किया  है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है।

अब इसी सिलसिले में असम विधानसभा ने सर्वसम्मति से 15 सितम्बर को एक विधेयक पारित करके राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए अपने माता-पिता एवं दिव्यांग भाई-बहनों, जिनकी आय का कोई स्रोत न हो, की देखभाल करना अनिवार्य कर दिया है।

‘द असम इम्प्लाइज पेरैंट्स रिस्पोंसिबिलिटी एंड नॉम्र्स फॉर एकाऊंटेबिलिटी एंड मॉनिटरिंग बिल 2017’ द्वारा सरकारी कर्मचारियों के लिए तत्काल प्रभाव से अपने ऊपर आश्रित माता-पिता और दिव्यांग परिजनों की देखभाल अनिवार्य कर दी गई है।

विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करने की स्थिति में कर्मचारी के माता-पिता या दिव्यांग भाई-बहन द्वारा कर्मचारी के विभागाध्यक्ष को जहां वह सेवारत है, शिकायत करने का अधिकार दिया गया है।

विभागाध्यक्ष द्वारा किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने का दोषी पाए जाने पर उसके वेतन में से 15 प्रतिशत राशि काट कर पीड़ित माता-पिता अथवा भाई-बहन के खाते में जमा करवाने का प्रावधान किया गया है।

असम के वित्त मंत्री श्री हिमंता विश्वा शर्मा के अनुसार यह विधेयक संतानों द्वारा अपने आश्रित माता-पिता की उपेक्षा की बढ़ रही शिकायतों के दृष्टिïगत  पारित किया गया है। ऐसे उदाहरण भी सामने हैं जिनमें अभिभावक वृद्धाश्रमों में रहने को विवश हैं और ब"ो उनकी देखभाल नहीं कर रहे।

उन्होंने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य राज्य कर्मचारियों के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि उनके द्वारा अपने माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहनों की अनदेखी न की जाए और सरकारी कर्मचारियों के आश्रित माता-पिता एवं दिव्यांग परिजनों को अपने ब"ाों या भाई-बहनों की लापरवाही की वजह से जीवन की संध्या वृद्धाश्रमों में बिताने के लिए विवश न होना पड़े।

वित्त मंत्री ने बाद में कहा कि सांसदों, विधायकों, सार्वजनिक उपक्रमों और असम में संचालित निजी कम्पनियों के कर्मचारियों के लिए भी एक ऐसा ही विधेयक पेश किया जाएगा।

बुजुर्गों की देखभाल की दिशा में असम सरकार का यह पग सराहनीय है परंतु अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जहां ऐसा कोई कानून नहीं है। अत: उन राज्यों में भी ऐसे कानून जल्द लागू करना आवश्यक है। —विजय कुमार 

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