‘पंचायतों को सक्रिय और मजबूत’ करने के लिए ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ अभियान

Edited By Pardeep,Updated: 13 Jul, 2018 02:55 AM

save the object to make panchayats active and strong punjab save campaign

भारत के गांव आज गुटबाजी तथा गांवों की पंचायतें राजनीति की शिकार होकर रह गई हैं जिससे गांवों का विकास अवरुद्ध हो गया है। पंजाब में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है जिसे देखते हुए राज्य की अनेक जत्थेबंदियों तथा समाज सेवा में जुटे प्रबुद्ध लोगों ने पिछले...

भारत के गांव आज गुटबाजी तथा गांवों की पंचायतें राजनीति की शिकार होकर रह गई हैं जिससे गांवों का विकास अवरुद्ध हो गया है। पंजाब में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है जिसे देखते हुए राज्य की अनेक जत्थेबंदियों तथा समाज सेवा में जुटे प्रबुद्ध लोगों ने पिछले कुछ वर्षों से ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ संस्था बनाकर जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों को लेकर अभियान आरंभ कर रखा है। 

इसी शृंखला में ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ संस्था ने 2017 के राज्य विधानसभा के चुनावों के दौरान खेती, शिक्षा, स्वास्थ्य, चुनाव सुधार आदि मुद्दों पर सभी प्रमुख दलों के नेताओं को सांझे मंच पर बुला कर एक संवाद कराने का प्रयास किया। संस्था महसूस करती है कि वोट की राजनीति के कारण गांवों का भाईचारा पूर्णत: टूट चुका है। अपने आप से भी टूट चुके लोगों के कारण आत्महत्याएं, विदेश जाने के लोभ और नशों के सेवन से होने वाली घटनाएं थम नहीं रहीं। ऐसे मौके पर लोगों को शक्तिशाली बनाने का सपना दिखाए बिना किसी सार्थक अभियान को टिकाऊ बनाना असंभव सा हो गया है। 

‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ संस्था के अनुसार ग्रामीण भाईचारे में पंचायत अभी भी एक संवैधानिक संस्था है।  24 अप्रैल 1993 को अधिसूचित 73वें संवैधानिक शोध के अनुसार बने पंजाब पंचायती राज कानून 1994 की धारा 3 के अंतर्गत स्थापित ग्राम सभा को धारा 4 के अंतर्गत कार्रवाई की विधि व अधिकार तो दिए गए हैं पर वे वास्तव में लागू नहीं किए गए। इससे भी महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसी कानून के अनुसार ग्राम सभा गांव की पार्लियामैंट की तरह है। जून तथा दिसम्बर महीनों के दौरान लगातार 2 बार ग्राम सभा का इजलास न बुलाने वाला सरपंच अपने आप निलंबित हो जाता है परंतु पंजाब में ऐसा नहीं हो रहा। 

यदि ग्रामों में सभाएं विधान के अनुसार होने लगें तो सभी योजनाओं के लाभपात्रों की पहचान का काम भी इस इकट्ठ में होने का कानूनी अधिकार इस्तेमाल किया जाएगा। भाई-भतीजावाद तथा अनधिकृत लाभ लेने वालों पर रोक लगेगी, भ्रष्टाचार रुकेगा और मनमानी बंद होगी। ‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ संस्था के नेताओं का कहना है कि मनरेगा जैसी योजना भी इसके बिना सही रूप में लागू नहीं हो सकी क्योंकि इसके लाभपात्रों की पहचान और उसका लेबर बजट भी ग्राम सभा ने ही पारित करना होता है जो नहीं हो रहा। यह भी कानूनी प्रावधान है कि यदि सरपंच सभा नहीं बुलाता तो गांव के 20 प्रतिशत मतदाता स्वयं हस्ताक्षर करके भी ग्राम सभा बुलाने की मांग कर सकते हैं जो उसे बुलानी ही पड़ेगी या वे स्वयं भी ग्राम सभा बुला सकते हैं। इस प्रावधान का प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है। 

सितम्बर महीने में पंजाब में पंचायतों, ब्लाक समिति और जिला परिषद के फिर चुनाव आ रहे हैं। संस्था का मानना है कि गांवों में सरपंच, पार्टियों के नहीं बल्कि पार्टी बाजी से ऊपर उठ कर गांव के सरपंच बनें। इसके लिए सर्वसम्मति हो अथवा वोट भी डाले जाएं तो इसमें नशों का वितरण या पैसे का खेल बनाने के विरुद्ध प्रचार अभियान भी छेड़ा जाए। पार्टियों के ऊपर यह दबाव भी डाला जाए कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव वे पार्टियों के चुनाव निशानों पर न लड़ें। ऐसा होने की सूरत में लोगों के बीच एकता होगी और समस्याओं से लडऩे की क्षमता भी बढ़ेगी। कानून के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं को 29 विभाग तबदील किए जाने चाहिए थे जो नहीं किए गए तथा सरकारों ने इस बारे अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। 

‘पिंड बचाओ, पंजाब बचाओ’ संस्था अगले दो महीनों के दौरान इस मुद्दे को सब के सहयोग से पंजाब में उभारना चाहती है क्योंकि पंचायतें लोकतंत्र की पहली सीढ़ी हैं और यह निॢववाद सत्य है कि यदि पंचायतें मजबूत होंगी तभी देश में ऊपर के स्तरों पर लोकतंत्र मजबूत होगा। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि अधिक परिपक्व और प्रबुद्ध लोग इस अभियान के साथ जुड़ें और पंचायतों को मजबूत करके देश में लोकतंत्र को मजबूत करने में अपना सहयोग दें।—विजय कुमार 

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