अलगाववादी नेता ‘गिलानी’ ने दिया ‘हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा’

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2020 04:00 AM

separatist leader gilani resigns from hurriyat conference

पाकिस्तानी शासकों ने शुरू से ही अपने पाले आतंकियों और अलगाववादियों के जरिए कश्मीर में अशांतिफैलाना, दंगे करवाना, आतंकवाद भड़काना व बगावत के लिए लोगों को उकसाना जारी रखा हुआ है। इन अलगाववादियों को पाकिस्तान से आर्थिक मदद मिलती है और सरकार...

पाकिस्तानी शासकों ने शुरू से ही अपने पाले आतंकियों और अलगाववादियों के जरिए कश्मीर में अशांति फैलाना, दंगे करवाना, आतंकवाद भड़काना व बगावत के लिए लोगों को उकसाना जारी रखा हुआ है। इन अलगाववादियों को पाकिस्तान से आर्थिक मदद मिलती है और सरकार भी इनकी सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च करती रही है। ये स्वयं तो आलीशान मकानों में ठाठ से जीवन बिताते हैं और इनके बच्चे देश के दूसरे हिस्सों तथा विदेशों में सुरक्षित रह रहे हैं। ये घाटी से बाहर ही विवाह, शिक्षा-दीक्षा एवं इलाज आदि करवाते हैं। पत्थरबाजी वहां सक्रिय पाक समर्थक अलगाववादियों की देन है तथा घाटी में अशांति फैलाने के लिए जरूरतमंद युवाओं को 100-150 रुपए दिहाड़ी देकर उनसे पत्थरबाजी करवाने के आरोप भी इन पर लगते रहे हैं। 

इन्हीं में से एक हैं ‘हुर्रियत कांफ्रैंस’ के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी जिन्होंने 70 के दशक के आरंभ में जमीयत-ए-इस्लामी के संस्थापक सदस्य के तौर पर ही लोगों को यह कह कर बहकाना शुरू कर दिया था कि ‘‘इस्लाम को ‘हिन्दू भारत’ से बचाने के लिए कश्मीर की आजादी जरूरी है।’’ अपने इस हथकंडे की वजह से वह पाकिस्तान के निकट आते चले गए और धीरे-धीरे कश्मीर में भारत के विरुद्ध ‘जेहाद’ पर उतर आए। चर्चा है कि गिलानी दक्षिण दिल्ली में ‘खिरकी एक्सटैंशन हाऊस’ में कथित रूप से कई वर्षों तक पाकिस्तानी उच्चायुक्तों से मिलते रहे और उनसे मदद भी लेते रहे। 

2 शादियों से गिलानी के 6 बच्चे (2 बेटे तथा 4 बेटियां) हैं। बड़ा बेटा नईम और उनकी पत्नी दोनों डाक्टर हैं। वे पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में प्रैक्टिस करते थे लेकिन 2010 में भारत लौट आए। छोटा बेटा नसीम श्रीनगर में कृषि यूनिवर्सिटी में काम करता है। इनका एक पोता भारत में निजी विमान सेवा में नौकर है व दूसरे पोते भारत के प्रमुख स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इन्होंने पी.ओ.के. में भी हुर्रियत का ढांचा खड़ा किया और वहां अपनी पसंद के लोगों को नियुक्त किया परन्तु पाकिस्तान को उनका ऐसा करना पसंद नहीं आया क्योंकि पी.ओ.के. में इनके प्रतिनिधियों के विरुद्ध आर्थिक अनियमितताओं आदि के आरोप लगने लगे थे। 

कुछ समय से हुर्रियत कांफ्रैंस में गिलानी का विरोध बढ़ रहा था तथा कुछ समय से इनका कोई बयान भी नहीं आया और अब अचानक 29 जून को हुर्रियत से त्यागपत्र देने की घोषणा करके सबको हैरान कर दिया। काफी समय से संगठन में भी असहज महसूस कर रहे गिलानी ने संगठन के विभिन्न घटकों की आलोचना करते हुए त्यागपत्र में लिखा है कि वह गत वर्ष 5 अगस्त को केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए हुर्रियत के नेताओं को संगठित करने में विफल रहे। 

किसी का नाम लिए बिना उन्होंने हुर्रियत के नेतृत्व के एक वर्ग पर केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और प्रदेश को दो हिस्सों में बांटने के मामले में अपनी जिम्मेदारी से भागने का आरोप लगाया। बहरहाल अब जबकि पाकिस्तानी शासकों ने यह देख लिया है कि गिलानी की अब उनके लिए कोई उपयोगिता नहीं रह गई है तो उन्होंने गिलानी को ‘यूज एंड थ्रो’ पालिसी के अंतर्गत किनारे लगा दिया है। 

चर्चा है कि गिलानी ने पाकिस्तान की गुप्तचर एजैंसी आई.एस.आई. के कहने पर रावलपिंडी के रहने वाले ‘अब्दुल्ला गिलानी’ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है जो पाकिस्तान में रह कर भारत में हुर्रियत की गतिविधियां चलाएगा। अगर ऐसा होता है तो अब सारे आदेश सीधे पाकिस्तान से आएंगे। बारामूला में जन्मा अब्दुल्ला गिलानी आई.एस.आई. के काफी नजदीक बताया जाता है। वह 2000 में पी.ओ.के. चला गया था और तब से वहीं है। उसकी तीन पत्नियां हैं जिनमें से दो पाकिस्तानी हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार गिलानी कश्मीर घाटी में अप्रासंगिक हो चुके हैं और अलग-थलग पड़ चुके हैं। 

हुर्रियत के एक नेता नईम खान ने तो मई, 2017 में एक पत्रकार से बातचीत में कथित रूप से यहां तक कहा था कि ‘‘अगर गिलानी की मौत हो जाती है तो उनके जनाजे में उनके परिवार के अलावा और कोई भी कश्मीरी शामिल नहीं होगा।’’ जो भी हो, साथियों द्वारा साथ छोड़ जाने, पाकिस्तान द्वारा हर तरह की मदद से हाथ खींच लेने, केंद्र सरकार द्वारा सिक्योरिटी वापस ले लेने, संतानों द्वारा भारत में अन्य सुरक्षित स्थानों पर सैटल हो जाने और उम्र अधिक हो जाने के बाद गिलानी के समक्ष हुर्रियत से त्यागपत्र दे देना ही एकमात्र विकल्प बचा होगा जिस कारण संभवत: उन्होंने ऐसा करना ही बेहतर समझा।—विजय कुमार

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