Edited By ,Updated: 16 Jan, 2019 03:52 AM
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वालीे एक एन.जी.ओ. ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार भारत में गत 10 वर्षों में अवयस्कों के विरुद्ध अपराधों में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है तथा यहां हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध...
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वालीे एक एन.जी.ओ. ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार भारत में गत 10 वर्षों में अवयस्कों के विरुद्ध अपराधों में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है तथा यहां हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार हो रहा है।
देश की राजधानी होने के नाते उम्मीद की जाती है कि लोगों के लिए दिल्ली देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक सुरक्षित होगी परंतु स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है। गत वर्ष यहां ‘प्रोटैक्शन आफ चिल्ड्रन फ्रॅाम सैक्सुअल ऑफैंसेज एक्ट’ (पोक्सो) के अंतर्गत बच्चों के विरुद्ध यौन अपराध के दर्ज हुए मामलों में वर्ष 2017 की तुलना में दो गुणा वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2017 में जहां यह संख्या 88 थी वहीं 2018 में 30 नवम्बर तक यह संख्या 165 का आंकड़ा पार कर चुकी थी। इसका अर्थ यह है कि वर्ष की समाप्ति तक तो यह संख्या और भी बढ़ गई होगी।
उल्लेखनीय है कि इस कानून के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के अवयस्क लड़के-लड़कियां आते हैं तथा इसके दायरे में बलात्कार, यौन शोषण और उत्पीडऩ आदि को शामिल किया गया है। पुलिस के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत मामलों में बच्चे अपनी जान-पहचान वालों के जुल्म के ही शिकार हुए। अधिकांश मामलों में अपराध करने वाला पीड़ित परिवार का परिचित होने के कारण पीड़ित और उसके परिवार के लिए ऐसे मामलों की पुलिस में रिपोर्ट करवाना कुछ कठिन हो जाता है।
हालांकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि इसने बच्चों के विरुद्ध अपराध रोकने के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं परंतु इस बारे माता-पिता को भी सतर्कता बरतने, बच्चों को किसी के प्रलोभन में न आने, अच्छे-बुरे स्पर्श बारे समझाने और ऐसे अपराधों में पकड़े गए दोषियों के विरुद्ध त्वरित कानूनी कार्रवाई करते हुए उन्हें शिक्षाप्रद व कठोरतम दंड देने की आवश्यकता है।—विजय कुमार