Edited By ,Updated: 19 Nov, 2019 12:08 AM
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा बड़ी तेजी से सफलता की सीढिय़ां चढ़ी और एक समय देश के 20 से अधिक राज्यों पर इसका तथा सहयोगी दलों का शासन स्थापित हो गया। परंतु भाजपा की सहयोगी दलों से दूरी बढऩे तथा भाजपा के भीतर भी असंतोष के कारण शीघ्र ही भाजपा की बढ़त...
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा बड़ी तेजी से सफलता की सीढिय़ां चढ़ी और एक समय देश के 20 से अधिक राज्यों पर इसका तथा सहयोगी दलों का शासन स्थापित हो गया। परंतु भाजपा की सहयोगी दलों से दूरी बढऩे तथा भाजपा के भीतर भी असंतोष के कारण शीघ्र ही भाजपा की बढ़त को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हुई पराजयों और हाल ही में सम्पन्न महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनावों में आशानुरूप प्रदर्शन न कर पाने के कारण ब्रेक लगना शुरू हो गया परंतु अब भी इनका शासन 16 राज्यों में है।
हरियाणा के चुनावों में भाजपा द्वारा खड़े किए गए 12 मंत्रियों में से 8 को हार का मुंह देखना पड़ा तथा इसे अपनी धुरविरोधी ‘जजपा’ से गठबंधन करके सरकार बनाने के लिए विवश होना पड़ा जिसे मजबूती प्रदान करना अब दोनों की जिम्मेदारी है।
उधर महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा परंतु सत्ता की भागीदारी के प्रश्न पर दोनों दलों में ठन जाने से न सिर्फ दोनों दलों का 30 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया बल्कि किसी भी दल के सरकार बनाने में सफल न होने पर वहां राष्ट्रपति शासन लग गया है। इस समय शिवसेना के अलावा भाजपा के अनेक गठबंधन सहयोगी इससे नाराज चल रहे हैं। नीतीश कुमार ने भाजपा से दूरी का संकेत देते हुए कहा है कि राजग के साथ उसका गठबंधन सिर्फ बिहार तक ही सीमित है।
झारखंड में ‘आजसू’ और ‘लोजपा’ के अलावा असम में ‘आसू’, उत्तर प्रदेश में ‘अपना दल’ और केरल में ‘केरल जन पक्षम’ सहित अन्य अनेक छोटी पाॢटयां इससे नाराज चल रही हैं तथा पिछले दिनों तो झारखंड में ‘आजसू’ और ‘लोजपा’ ने भाजपा से अलग होकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे की घोषणा भी कर दी थी।
ऐसे में एक ओर जहां महाराष्ट्र में लोकतांत्रिक सरकार का गठन अधर में लटका हुआ है और राकांपा, शिवसेना तथा कांग्रेस द्वारा भाजपा को सत्ता में न आने देने और अपनी सरकार बनाने के लिए माथापच्ची की जा रही है, वहीं भाजपा नेतृत्व ने अपने नाराज गठबंधन सहयोगियों के प्रति नर्म रवैया अपनाने के संकेत देने के अलावा उन्हें राजी करने के प्रयास शुरू किए हैं।
इसीलिए भाजपा हाईकमान ने केंद्रीय मंत्रियों और प्रवक्ताओं को शिवसेना नेताओं उद्धव ठाकरे, उनके पुत्र आदित्य ठाकरे तथा पार्टी के अन्य नेताओं पर निजी हमले न करने के निर्देश दिए हैं। झारखंड में भी नाराज गठबंधन सहयोगियों ‘लोजपा’ और ‘आजसू’ की नाराजगी दूर करने के लिए अमित शाह ने खुद पहल करते हुए आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो को दिल्ली बुलाकर उन्हें मनाने की कोशिश की है जिस पर आजसू ने 10 सीटों पर ही चुनाव लडऩे पर सहमति व्यक्त कर दी है। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास (भाजपा) के शासन में भाजपा कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा होने के कारण नाराज होकर घर बैठे भाजपा कार्यकत्र्ताओं को मनाने की कवायद भी शुरू हो गई है।
इस बीच भाजपा से नाराज चल रहे ‘लोजपा’ के प्रमुख चिराग पासवान ने 17 नवम्बर को नई दिल्ली में हुई गठबंधन की बैठक में कहा, ‘‘सहयोगी दलों में बेहतर तालमेल होना चाहिए जिसके लिए राजग को एक संयोजक नियुक्त करने की जरूरत है।’’ जद (यू) पहले ही यह मांग उठा चुका है।
सहयोगी दलों की नाराजगी को भांपते हुए ही उक्त बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाराज दलोंं को मनाने की आवश्यकता जताते हुए कहा : ‘‘हम परिवार हैं। हम लोग मिल कर लोगों के लिए काम करते हैं। हमें बड़ा जनादेश मिला है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए।’’ शिव सेना का नाम लिए बिना उन्होंने कहा, ‘‘विचारधारा एक न होने के बावजूद हम एक समान सोचने वाले लोग हैं। अनेक छोटे-छोटे विवादों से हमें परेशान नहीं होना चाहिए और आपसी तालमेल के लिए समन्वय कमेटी बनानी चाहिए।’’
हम तो बार-बार लिखते आ रहे हैं कि भाजपा को अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना चाहिए। भाजपा नेतृत्व इस सलाह पर गंभीरतापूर्वक मनन करे और जितनी जल्दी यह समन्वय समिति बनाई जा सके उतना ही अच्छा होगा। जैसा कि हमने 14 नवम्बर के सम्पादकीय ‘आखिर भाजपा अपने सहयोगी दलों को क्यों नहीं संभाल पा रही’ में लिखा था : ‘‘भाजपा व सहयोगी दलों में बढ़ रही दूरी निश्चय ही भाजपा के हित में नहीं है। अत: जितनी जल्दी भाजपा नेतृत्व सहयोगी दलों के साथ आपस में मिल-बैठकर मतभेद दूर कर सके इसके तथा सहयोगी दलों के लिए उतना ही अच्छा होगा। भाजपा नेतृत्व को मानना होगा कि इस तरह पुराने साथी खोना पार्टी और राजग को कमजोर ही करेगा।’’—विजय कुमार