हड़ताल...हड़ताल...हड़ताल सरकार खामोश और जनता बेहाल

Edited By Pardeep,Updated: 03 Jun, 2018 02:21 AM

strike government silent and public unhealthy

भारत में सरकारी कर्मचारी तथा अन्य लोग अपनी मांगें मनवाने के लिए प्रदर्शन, हड़ताल, भूख-हड़ताल, अनशन, आमरण अनशन आदि तरीके अपनाते हैं। आज जबकि भारत में लोगों में विभिन्न मुद्दों को लेकर भारी रोष व्याप्त है, यहां अपनी मांगें मनवाने व समस्याएं हल करवाने...

भारत में सरकारी कर्मचारी तथा अन्य लोग अपनी मांगें मनवाने के लिए प्रदर्शन, हड़ताल, भूख-हड़ताल, अनशन, आमरण अनशन आदि तरीके अपनाते हैं। आज जबकि भारत में लोगों में विभिन्न मुद्दों को लेकर भारी रोष व्याप्त है, यहां अपनी मांगें मनवाने व समस्याएं हल करवाने के लिए हड़तालों के रुझान में भारी वृद्धि हो गई है जिसके चंद उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

18 मई से वेतन विसंगति दूर करने व अन्य मांगों को लेकर हड़ताल कर रही छत्तीसगढ़ की 607 नर्सों को राजधानी रायपुर में पुलिस ने 1 जून को गिरफ्तार कर लिया। इस हड़ताल के कारण एक पखवाड़े से सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हैं। 19 मई को मुम्बई के जे.जे. अस्पताल में एक रैजीडैंट डाक्टर की पिटाई को लेकर डाक्टरों ने हड़ताल कर दी जो 4 दिनों तक जारी रही। 

24 मई से मध्य प्रदेश के बैतूल व शिवपुरी में अपनी विभिन्न मांगों को लेकर वन कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं और 1 जून को आंधी, तूफान तथा वर्षा के बावजूद उन्होंने अपना धरना-प्रदर्शन जारी रखा हुआ है। भोपाल में पंचायत के रोजगार सहायक और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन वृद्धि की मांग को लेकर देश में ग्रामीण डाक सेवकों की हड़ताल भी जारी है। 

30-31 मई को वेतन में वृद्धि व अन्य मांगों को लेकर बैंक कर्मचारियों के 9 संगठनों की संयुक्त संस्था यूनाइटिड फोरम आफ बैंकिंग यूनियनों के आह्वïान पर सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग 10 लाख बैंक कर्मचारियों की हड़ताल से लगभग 430 अरब रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ। सरकारी बैंकों के ए.टी.एम. खाली हो गए तथा 80 लाख चैकों की अदायगी लटक गई। और अब स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करवाने, किसानों की आमदनी बढ़ाने तथा अन्य मांगों को लेकर राष्ट्रीय किसान महासंघ के बैनर तले 130 किसान संगठनों ने 1 जून से 10 जून तक मध्य प्रदेश सहित देश के 22 राज्यों में ‘गांव बंद आंदोलन’ शुरू कर दिया है। 

अनेक स्थानों पर किसानों ने रेहडिय़ां पलट दीं और तोड़-फोड़ की। मध्य प्रदेश में कई इलाकों में हाई अलर्ट घोषित किया गया। झाबुआ में धारा 144 व मंदसौर में पूरे शहर में पुलिस तैनात कर दी गई। उत्तर प्रदेश के आगरा में किसानों ने टोल प्लाजा पर कब्जा कर लिया व तोड़-फोड़ की। किसानों ने पंजाब-हरियाणा समेत अनेक राज्यों में सब्जियों और दूध को सड़कों पर फैला दिया और शहरों को इन वस्तुओं की सप्लाई रोक दी। अहमदाबाद, नासिक आदि में भी सब्जियों व दूध की आपूर्ति बाधित हुई। आंदोलन की शुरूआत होते ही देश में पहली बार हरियाणा के किसान 10 दिनों के लिए छुट्टी पर चले गए जिससे शहरों में दुकानों, शो-रूम व सुपर बाजार आदि को दूध तथा फल-सब्जियों की सप्लाई बंद हो जाने से इनकी कमी पैदा हो गई तथा कीमतों में भारी उछाल भी आ गया। 

किसानों के आंदोलन के कारण देश में कई जगह स्थिति तनावपूर्ण बन गई और यदि 10 दिनों तक यह आंदोलन जारी रहा तो शहरों में सब्जियों तथा खाद्य पदार्थों को लेकर संकट खड़ा हो सकता है। हड़ताल चाहे कम अवधि की हो या अधिक अवधि की, इससे सार्वजनिक सम्पत्ति का भारी नुक्सान और आम आदमी को तो परेशानी तथा असुविधा होती है परंतु सरकार पर इसका कोई असर नहीं होता। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सरकार देश में विभिन्न कारणों से आंदोलन कर रहे सरकारी कर्मचारियों और किसानों आदि की समस्याओं के निवारण के संबंध में गंभीरतापूर्वक विचार करके इन्हें जल्दी से जल्दी दूर करने की कोशिश करे ताकि देश का कामकाज भी सुचारू रूप से चले और आम लोगों को भी राहत मिले अन्यथा देश का वातावरण इसी तरह अशांत बना रहेगा।—विजय कुमार 

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