ऐसी हैं हमारी चंद पंचायतें बलात्कारियों के जुर्माने की रकम से दावत और पक्षी का अंडा टूटने पर झोंपड़ी में रहने की सजा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2018 11:39 PM

such are the punishments of a few panchayats to stay in a hut on the eve

हालांकि अधिकांश ‘पंचायतें’ अदालतों से बाहर आपस में मिल-बैठ कर झगड़े निपटाती हैं परंतु इसके बावजूद अभी भी कुछ ऐसी पंचायतें हैं  जो अच्छा काम करने वाली पंचायतों के लिए बदनामी और अपने तालिबानी निर्णयों के कारण आलोचना की पात्र बन रही...

हालांकि अधिकांश ‘पंचायतें’ अदालतों से बाहर आपस में मिल-बैठ कर झगड़े निपटाती हैं परंतु इसके बावजूद अभी भी कुछ ऐसी पंचायतें हैं  जो अच्छा काम करने वाली पंचायतों के लिए बदनामी और अपने तालिबानी निर्णयों के कारण आलोचना की पात्र बन रही हैं।

बलात्कारियों के साथ समझौता और उनके साथ रहने के लिए मजबूर करने, प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को अलग हो जाने, छोटी-सी भूल पर सामाजिक बहिष्कार और घर से बाहर झोंपड़ी में रहने के आदेश कुछ ऐसे ही तालिबानी निर्णय हैं जिनके लिए ऐसी पंचायतों की भारी आलोचना हुई है और अभी हाल ही में पंचायतों द्वारा सुनाए गए चंद ताजा तालिबानी निर्णय निम्र में दर्ज हैं :

29 जून को उत्तर प्रदेश में बुलंद शहर के हबीबपुर गांव में अलग-अलग समुदाय के युवक-युवती द्वारा कोर्ट मैरिज कर लेने पर गांव में पंचायत का आयोजन किया गया जिसके आदेश से विवाह करने वाले युवक के पिता को बेरहमी से पीटा गया। 
5 जुलाई को एक विवादास्पद निर्णय छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एक कबायली पंचायत ने बलात्कार की शिकार 3
लड़कियों के मामले में सुनाया  जिनमें से 2 नाबालिग बहनें थीं।

पीड़ित लड़कियों में से एक के पिता ने इस संबंध में शिकायत करने के लिए पुलिस के पास जाना चाहा तो पंचायत के सदस्य इस पर नाराज हो उठे। उन्होंने उसे पुलिस के पास जाने से रोक कर आपसी तौर पर बलात्कारियों के साथ समझौता करने के लिए मजबूर किया।

पंचायत में तीनों बलात्कारियों पर 10-10 हजार रुपए प्रत्येक के हिसाब से जुर्माना लगाया गया परंतु केस समाप्त करने के लिए बलात्कारियों से ली गई यह राशि भी पीड़ित परिवारों को देने की बजाय उस रकम से समूचे समुदाय को मांसाहारी दावत दे दी गई और बाकी बची रकम समुदाय के 45 लोगों ने आपस में बांट कर पीड़ित परिवारों के घावों पर नमक छिड़का।

10 जुलाई को प्रकाशित एक समाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक पंचायत ने मानवता की हदें पार करते हुए यौन शोषण की शिकार नाबालिग पीड़िता को उसका बलात्कार करने वाले के साथ ही रहने का फरमान सुना दिया परंतु शोषण के आरोपी युवक ने 15 दिन बाद ही किशोरी को घर से भगा दिया। मामले की खबर मीडिया में आने पर अब पुलिस ने जांच शुरू की है।

इसी प्रकार 12 जुलाई को राजस्थान के बूंदी जिले के हरिपुरा गांव के स्कूल में एक पांच वर्ष की बच्ची खुशबू से एक पक्षी का अंडा टूट जाने पर गांव वालों ने पंचायत बुला ली और खाप पंचायत ने बच्ची के सामाजिक बहिष्कार का आदेश सुनाते हुए उसे घर के बाहर एक झोंपड़ी में 3 दिन तक रहने और घर में न घुसने देने की सजा सुना दी।

जब बच्ची के पिता ने खाप के फैसले का विरोध किया तो खाप ने उसकी सजा को 3 दिन से बढ़ाकर 10 दिन करने के साथ-साथ बच्ची के परिजनों को गांव में पांच किलो नमकीन बांटने का आदेश भी सुना दिया। 

17 जुलाई को बिहार के बांका जिले के केडिया गांव में अंतर्जातीय विवाह करने पर गांव की पंचायत ने प्रेमी युगल को अलग होने का फरमान सुना दिया और वर पक्ष पर 70,000 रुपए जुर्माना लगा दिया। जुर्माने की रकम में से 50,000 रुपए कन्या पक्ष को दिए गए जबकि शेष रकम पंचों ने आपस में ही बांट ली।

निश्चय ही पंचायतों के उक्त कृत्य और फैसले अमानवीय और लज्जाजनक हैं। तुगलकी फरमानों को भी मात देने वाले इस तरह के फैसलों को लेकर ही खाप पंचायतें अक्सर सवालों के घेरे में रहती हैं।

ऐसी ही पंचायतों के कारण अच्छा काम करने वाली पंचायतों को प्रशंसा नहीं मिलती और उनके द्वारा किए जाने वाले अच्छे कार्य उपेक्षित ही रह जाते हैं। अत: प्रशासन को कड़ा स्टैंड लेते हुए इस प्रकार के तालिबानी निर्णय लेने वाली पंचायतों तथा इसके लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि पीड़ितों को न्याय और दोषियों को सजा मिले।     —विजय कुमार 
 

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