बिलावल भुट्टो (पाक विदेश मंत्री) का भारत से सम्बन्ध सुधारने का सुझाव!

Edited By ,Updated: 23 Jun, 2022 03:30 AM

suggestion of bilawal bhutto to improve relations with india

सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को बंगलादेश खोना पड़ा और 1972 में भारत तथा पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ, जिस पर इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर ...

सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को बंगलादेश खोना पड़ा और 1972 में भारत तथा पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ, जिस पर इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। भुट्टो के साथ उनकी बेटी बेनजीर भी आई थी जो बाद में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री भी बनीं। 

शिमला समझौते के अनुसार भुट्टो इस बात पर सहमत हुआ था कि दोनों देश आपसी समस्याओं को परस्पर वार्ता द्वारा ही सुलझाएंगे और उपमहाद्वीप में स्थायी मित्रता के लिए काम करेंगे। एक-दूसरे के विरुद्ध बल प्रयोग न करने, प्रादेशिक अखंडता की अवहेलना न करने और कश्मीर विवाद को अंतर्राष्ट्रीय रूप न देकर आपसी बातचीत द्वारा ही सुलझाने पर भी सहमति हुई थी। और अब जुल्फिकार अली भुट्टो के दोहते तथा बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो जो इस समय पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार में विदेश मंत्री हैं, ने भारत के साथ जुडऩे की जोरदार वकालत की है। 

16 जून को इस्लामाबाद में  एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा,‘‘भारत के साथ हमारे मुद्दे हैं। पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध और संघर्ष का लम्बा इतिहास रहा है परंतु भारत के साथ संबंध तोडऩे से देश के हितों की पूर्ति नहीं हो सकती क्योंकि इस्लामाबाद पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग और विस्थापित रहा है।’’

‘‘क्या भारत से रिश्ते तोडऩा पाकिस्तान के हितों की पूर्ति कर रहा है? चाहे वह कश्मीर पर हो, बढ़ते इस्लामाफोबिया का मुद्दा हो या भारत में हिन्दुत्व पर जोर देना हो? मैं पाकिस्तान के विदेश मंत्री के तौर पर अपने देश के प्रतिनिधि के रूप में न तो भारत सरकार से बात करता हूं और न भारतीयों से मिलता हूं क्या यह संवादहीनता पाकिस्तानी मकसद को हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है? मैं समझता हूं नहीं।’’ 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी भारत के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर रहे हैं तथा भारत के साथ वर्षों की शत्रुता और 3-3 युद्धों के बाद भी जब पाकिस्तान कुछ न पा सका तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 21 फरवरी, 1999 को श्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौर आमंत्रित करके आपसी मैत्री व शांति के लिए लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे। 

हालांकि तत्कालीन सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने न तो श्री वाजपेयी को सलामी दी और न ही नवाज शरीफ द्वारा श्री वाजपेयी के सम्मान में दिए भोज में शामिल हुआ परंतु उस यात्रा के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच आवागमन और व्यापार की शुरूआत हुई थी और दोनों ओर के लोगों की भाषा और संस्कृति एक जैसी होने के कारण संबंध सुधार की आशा बनी थी जो बाद के घटनाक्रमों के चलते कायम न रह सकी। यही नहीं, 10 अगस्त, 2014 को उन्होंने भारत के साथ अपने देश के खराब संबंधों पर सार्वजनिक रूप से खेद जताया था। 

राष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन, जिसमें विभिन्न मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रमुख दलों के नेता, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ और आई.एस.आई. प्रमुख लै. जनरल जहीर उल इस्लाम उपस्थित थे, को संबोधित करते हुए नवाज शरीफ ने कहा था कि, ‘‘हमारे देश ने पड़ोसियों के साथ संबंध बेहतर नहीं रखे। अब भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने का समय है।’’ यही नहीं 6 नवम्बर, 2015 को एक बार फिर उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन के साथ भेंट के दौरान कहा था कि, ‘‘भारत के साथ युद्ध कोई विकल्प नहीं है।’’ 

अब बिलावल भुट्टो ने भी नवाज शरीफ के भारत के प्रति विचारों को ही दोहराया है और बिलावल भुट्टो का ऐसा कहना सही भी है। अत: यदि वह अपने कथन के प्रति ईमानदार हैं तो उन्हें इसके लिए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, जो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई भी हैं, की सरकार पर दबाव डालना चाहिए। पाकिस्तान द्वारा भारत के साथ संबंध सामान्य करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में उसी का लाभ है और इसकी शुरुआत दोनों देशों के बीच 2019 से बंद पड़े व्यापारिक सम्बन्धों की बहाली से शुरू हो सकती है। अत: यदि पाकिस्तान की ओर से इस संबंध में कोई पेशकश आए तो उस पर हमारी सरकार को अवश्य विचार करना चाहिए क्योंकि हमारी सरकार का तो सदा ही पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने और इन्हें लगातार मजबूत करने का प्रयास रहा है। 

इसी सिलसिले में भारत द्वारा बंगलादेश और नेपाल के साथ रेल सेवा के विस्तार के अलावा नेपाल को विभिन्न विकास परियोजनाओं के निर्माण  एवं श्रीलंका को विभिन्न वस्तुओं के रूप में 2 अरब रुपए मूल्य की सहायता दी गई है। यदि बदहाली के शिकार पाकिस्तान से व्यापार में तेजी आ जाए तो इससे वहां महंगाई घटेगी तथा वहां के लोगों में भारत के प्रति सद्भावना पैदा होगी। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान द्वारा अपने पाले हुए आतंकियों के जरिए जम्मू-कश्मीर में की जाने वाली हिंसा पर भी रोक लग सकती है।—विजय कुमार

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