सुप्रीम कोर्ट का आदेश, संकट में टैलीकॉम इंडस्ट्री

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2020 12:41 AM

supreme court order telecom industry in crisis

सुप्रीम कोर्ट ने 1.47 लाख करोड़ रुपए के ‘एडजस्टेड ग्रॉस रैवेन्यू’ (ए.जी.आर.) बकाए को लेकर 14 फरवरी को दोनों टैलीकॉम कम्पनियों तथा टैलीकॉम विभाग को आड़े हाथों लिया। कोर्ट की 3 सदस्यीय बैंच का नेतृत्व कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने अदायगी न करने वाली

सुप्रीम कोर्ट ने 1.47 लाख करोड़ रुपए के ‘एडजस्टेड ग्रॉस रैवेन्यू’ (ए.जी.आर.) बकाए को लेकर 14 फरवरी को दोनों टैलीकॉम कम्पनियों तथा टैलीकॉम विभाग को आड़े हाथों लिया। कोर्ट की 3 सदस्यीय बैंच का नेतृत्व कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने अदायगी न करने वाली कम्पनियों के मैनेजिंग डायरैक्टरों तथा डायरैक्टरों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए हैं। न्यायालय का आदेश आते ही वोडाफोन-आईडिया तथा उन्हें ऋण देने के कारण जोखिम झेल रहे बैंकों के शेयर तेजी से गिरे।

35,500 करोड़ रुपए से अधिक बकाए वाली एयरटैल भारती ने 20 फरवरी तक 10,000 करोड़ रुपए तथा शेष रकम स्व-आकलन के बाद 17 मार्च तक अदा करने के बारे में टैलीकॉम विभाग को लिखा है परंतु नकदी की गम्भीर कमी से जूझ रही वोडाफोन-आईडिया के भविष्य पर तलवार लटक गई है जिस पर 53,000 करोड़ रुपए का बकाया है। कम्पनी के दो प्रोमोटरों वोडोफोन यू.के. तथा आदित्य बिरला ग्रुप का कहना है कि वे कम्पनी में और निवेश नहीं करेंगे। उनकी स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि कम्पनी के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला कह चुके हैं कि सरकार अथवा कोर्ट से राहत न मिली तो कम्पनी बंद करनी होगी।

पहला प्रश्न उठता है कि अरबों टैलीफोन उपभोक्ताओं वाला भारत विश्व के सबसे बड़े टैलीकॉम बाजारों में से एक है, तो भला टैलीकॉम कम्पनियां घाटे में क्यों हैं? टैलीकॉम इंडस्ट्री को पहला झटका पूर्व कैग चीफ विनोद राय की 1.76 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित हानि संबंधी रिपोर्ट से लगा था जिसके संबंध में 2019 में सरकार ने दावा किया था कि यह रिपोर्ट पूरी समझ के बिना पेश की गई थी।

परंतु टैलीकॉम इंडस्ट्री की वर्तमान तबाही के दो कारण रहे हैं। पहला तो यह कि कई सालों तक कॉल रेट कम होते रहे जबकि डाटा के दाम अधिक बने रहे। हालांकि, तीन साल पहले रिलायंस जियो की एंट्री के बाद यह स्थिति बदल गई। कम्पनी ने डाटा के दाम कम करते हुए वॉयस मार्कीट को डाटा मार्कीट में बदल डाला। इसने पहले से बाजार में मौजूद कम्पनियों को दबाव में डाल दिया जिन्हें नाममात्र मुनाफा अथवा हानि झेलनी पड़ी।

परंतु दूसरा बड़ा आसन्न कारण एडजस्टेड ग्रॉस रैवेन्यू (ए.जी.आर.) पर छिड़ी लड़ाई रही। सरल शब्दों में कहें तो ए.जी.आर. का मतलब यह है कि टैलीकॉम कम्पनियों को अपनी आय का एक हिस्सा सरकार के टैलीकॉम डिपार्टमैंट से बांटना पड़ता है। हालांकि, सरकार तथा टैलीकॉम कम्पनियों के बीच ए.जी.आर. की परिभाषा को लेकर 2005 से मतभेद रहे हैं। कम्पनियां चाहती थीं कि केवल टैलीकॉम से होने वाली आय को ही इसके अंतर्गत गिना जाए जबकि सरकार का कहना था कि इसमें गैर-टैलीकॉम आय जैसी सम्पत्तियों की बिक्री तथा डिपॉजिटों से होने वाली ब्याज की आय आदि भी शामिल होनी चाहिए।

परंतु हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार के पक्ष में फैसला दिया जिसका अर्थ था कि टैलीकॉम कम्पनियों को 900 बिलियन रुपए अदा करने होंगे। इसमें वोडाफोन-आईडिया का हिस्सा ही 390 बिलियन रुपए है। टैलीकॉम कम्पनियां यह प्रश्न कर रही हैं कि भला ये रुपए आएंगे कहां से? पहले ही अनेक कम्पनियां अपना बोरिया बिस्तरा समेट कर टैलीकॉम बाजार से निकल चुकी हैं जिसके बाद बाजार में एयरटैल, जियो, वोडाफोन ही निजी कम्पनियां बची हैं।

इस सप्ताह वोडाफोन के सी.ई.ओ. निक रीड ने चेतावनी दी कि कम्पनी की भारतीय इकाई असहयोगी नियमों तथा अत्यधिक करों के चलते भारी दबाव में है। वोडाफोन भारतीय निवेश को शून्य मान चुकी है। वोडाफोन पर गत 10 वर्षों के कर का बोझ भी है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि वोडाफोन भी भारत से निकलने का फैसला कर लेती है तो आगे से कोई भी कम्पनी भारत में कदम रखने से पहले दो बार अवश्य सोचने को विवश होगी। एक अन्य तथ्य है कि वोडाफोन के जाने के बाद बाजार में केवल दो कम्पनियां जियो तथा एयरटैल बचेंगी जो अर्थव्यवस्था, टैलीकॉम इंडस्ट्री तथा उपभोक्ताओं के लिए भी अच्छी बात नहीं होगी। - विजय कुमार

Related Story

Trending Topics

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!