Edited By Pardeep,Updated: 05 Jul, 2018 02:33 AM
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि उप-राज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारी हैं। उप-राज्यपाल दिल्ली के प्रशासक हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल...
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि उप-राज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारी हैं। उप-राज्यपाल दिल्ली के प्रशासक हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग में शुरू हुई अधिकारों की लड़ाई वर्तमान उप-राज्यपाल अनिल बैजल के कार्यकाल में भी जारी रही। इस मामले में 4 जुलाई को उप-राज्यपाल को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सीकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण पर आधारित 5 जजों की बैंच ने इस पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
इन्होंने सर्वसम्मति से कहा कि ‘‘असली ताकत मंत्रिपरिषद के पास है। निरंकुशता और अराजकता के लिए कोई जगह नहीं है। उप-राज्यपाल जिनकी नियुक्ति केंद्र करता है, ‘विघ्नकारक’ के रूप में काम नहीं कर सकते। सिर्फ 3 मुद्दों भूमि, कानून और पुलिस को छोड़ कर दिल्ली सरकार कानून बना सकती है। उप-राज्यपाल इसमें तकनीकी तरीके से बाधा नहीं डाल सकते। उप-राज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं। जनमत का महत्व है और इसे तकनीकी पहलुओं में नहीं उलझाया जा सकता।’’ ‘‘उप-राज्यपाल को यह भी महसूस करना चाहिए कि मंत्रिपरिषद के सभी फैसलों से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत किया जाना चाहिए परंतु इसका यह मतलब नहीं कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति भी आवश्यक हो।’’
न्यायालय ने इसके साथ ही दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल को आपसी तालमेल से काम करने की सलाह भी दी और कहा कि मंत्रिपरिषद की राय यदि उप-राज्यपाल की राय से मेल न खाए तो उसे राष्ट्रपति को संदर्भित किया जा सकता है। कुछ मामले केंद्र के पास भी जा सकते हैं। दोनों पक्षों को मिलकर काम करना होगा। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं। अत: सरकार जनता के प्रति जवाबदेह और इसे उपलब्ध होनी चाहिए। केंद्र तथा राज्य को सहयोग से काम करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अरविंद केजरीवाल ने लोकतंत्र और आम आदमी पार्टी (आप) की जीत बताया है तथा उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि अब दिल्ली सरकार को अपनी फाइलें उप-राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए नहीं भेजनी होंगी जिससे कामकाज बाधित नहीं होगा। इसके विपरीत भाजपा का कहना है कि ‘आप’ वास्तव में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी और यहां उसे झटका ही मिला है क्योंकि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली में केंद्र का दखल जारी रहेगा और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। बहरहाल ‘आप’ के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि अतीत में भी दिल्ली को अधिक अधिकार दिए जाने की मांग इसके अनेक पूर्व मुख्यमंत्रियों मदन लाल खुराना, सुषमा स्वराज और यहां तक कि शीला दीक्षित आदि द्वारा भी की जाती रही है। अत: अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘आम आदमी पार्टी’ की याचिका पर उक्त फैसला दिल्ली के अधिकार स्पष्टï करने के मामले में महत्वपूर्ण हैसियत रखता है जिससे निश्चय ही सरकार को निॢवघ्र काम करने में सहायता मिलेगी। अत: अब जबकि अपनी निष्पक्षता सिद्ध करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ‘आप’ के पक्ष में फैसला सुना दिया है तो दिल्ली सरकार के अधिकारों संबंधी सारी शंकाएं दूर हो जाने के बाद अब अरविंद केजरीवाल पर सारी जिम्मेदारी आ गई है और सुप्रीम कोर्ट ने यह इशारा करते हुए कि ‘गेंद अब आपके पाले में है’ कह कर संदेश दे दिया है कि ‘अब तुम काम करो।’—विजय कुमार