किसानों पर आंसू गैस और लाठीचार्ज सरकार ने कुछ मांगें मानीं

Edited By Pardeep,Updated: 03 Oct, 2018 03:59 AM

tear gas and lathi charge government on farmers accepted some demands

भारत गांवों का देश है और यहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग किसान हैं जो भारत की जीवन रेखा के समान हैं। ये देशवासियों के लिए अन्न उपलब्ध करवाने के अलावा देश के कुछ उद्योगों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध करवाते हैं। देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या...

भारत गांवों का देश है और यहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग किसान हैं जो भारत की जीवन रेखा के समान हैं। ये देशवासियों के लिए अन्न उपलब्ध करवाने के अलावा देश के कुछ उद्योगों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध करवाते हैं। 

देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारतीय किसानों पर निर्भर होने के बावजूद देश के अधिकांश किसानों की आॢथक दशा खराब है। अधिकांश किसान स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी अनिवार्य जीवनोपयोगी सुविधाओं से वंचित हैं। कम से कम 4.69 करोड़ किसान ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं व प्रत्येक किसान पर औसतन 3.20 लाख रुपए कर्ज है। एक ओर तो सरकार की गलत नीतियां किसानों को कर्जदार बनाती हैं व दूसरी ओर उन्हें उनकी फसलों का कम समर्थन मूल्य मिलने के कारण वे अपना मूल धन भी वापस नहीं पाते और आत्महत्याएं तक कर रहे हैं। किसानों की समस्या कितनी गंभीर है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले डेढ़ साल में किसान तीसरी बार अपनी मांगों पर बल देने के लिए सड़कों पर उतर पड़े हैं। 

2017 में मध्यप्रदेश में कर्ज माफी और अपनी फसल का सही दाम लेने आदि मांगों को लेकर कई दिन आंदोलन चला था जिसे दबाने के लिए पुलिस ने भारी बल प्रयोग किया और यहां तक कि मंदसौर जिले में पुलिस की फायरिंग से 6 किसानों की मृत्यु और अनेक घायल हो गए। पुलिस फायरिंग के बाद यह आंदोलन हिंसक हो गया तथा इसके विरोध में क्रोधित किसानों ने जगह-जगह तोड़-फोड़ की और कई वाहन जला डाले। 11 मार्च, 2018 को महाराष्ट्र के 30,000 किसान मुम्बई विधानसभा का घेराव करने पहुंचे। किसानों का कहना था कि महाराष्टï्र सरकार ने 2017 में किसानों के 34 हजार करोड़ रुपए के कर्ज की सशर्त माफी की घोषणा की थी जिसे पूरा नहीं किया गया और 2017 जून के बाद अकेले महाराष्टï्र में ही 1753 से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। और अब गत डेढ़ वर्षों में तीसरी बार भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले अपनी विभिन्न मांगों को लेकर 30,000 किसानों की क्रांति यात्रा ने 23 सितम्बर को हरिद्वार से दिल्ली के लिए कूच किया जिनकी मुख्य मांगों में : 

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट जल्द लागू करने, चीनी मिलों द्वारा बकाया गन्ने का भुगतान तुरंत करने और भुगतान में 14 दिन से अधिक देरी होने पर ब्याज देने, गन्ने का मूल्य 450 रुपए क्विंटल करने, 10 साल पुराने ट्रैक्टरों पर लगी रोक हटाने आदि की मांगें शामिल हैं। विभिन्न स्थानों से होती हुई यह क्रांति यात्रा 2 अक्तूबर को दिल्ली के प्रवेश द्वार पर पहुंच गई तथा पुलिस ने सोमवार सुबह को ही गाजीपुर और महाराजपुर बार्डर को सील करने के साथ भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात कर दिए थे। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की सीमा से दिल्ली आ रहे किसानों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े जिसमें कई किसान घायल हो गए। 

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले किसानों को जबरदस्ती रोका और पीटा गया तथा उन पर पानी की बौछारें छोड़ी गईं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस लाठीचार्ज की निंदा की है और कहा कि किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए दिल्ली में राजघाट पर आ रहे थे। हालांकि प्रशासन ने यू.पी. से दिल्ली में प्रवेश करने के सभी रास्ते बंद कर दिए थे, इसके बावजूद कुछ किसान बैरिकेडिंग तोड़ कर दिल्ली में घुस गए। इस बीच किसानों को मनाने की सरकार ने कोशिशें तेज कर दीं और मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत किसानों के बीच पहुंचे और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी किसानों के एक दल ने मुलाकात की। 

इस दौरान 7 मुद्दों पर सहमति बन गई तथा किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए 6 सदस्यीय कमेटी के गठन की घोषणा की गई क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों के दृष्टिïगत सरकार कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहती। सरकार ने किसानों के आंदोलन को प्रतिष्ठा का प्रश्र न बनाकर उनकी मांगें स्वीकार कर ली हैं जोकि अच्छी बात है। इससे किसानों की स्थिति में सुधार की आशा बनी है और एक अप्रिय घटनाक्रम टल गया है परंतु इसके साथ ही एक वर्ग का यह भी कहना है कि अभी गतिरोध बरकरार है। अत: कहना कठिन है कि तेजी से बदल रहा घटनाक्रम क्या रूप धारण करता है और कहीं पहले दो आंदोलनों की तरह यह आंदोलन भी निरर्थक ही तो नहीं चला जाएगा?—विजय कुमार 

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