बुजुर्गों की सम्पत्ति हड़पने वाले बच्चों को अब मिलेगी सजा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jul, 2017 11:12 PM

the children who grab the property of elderly will now get punishment

अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास अपनी पीड़ा व्यक्त करने आते रहते हैं जिनसे....

अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास अपनी पीड़ा व्यक्त करने आते रहते हैं जिनसे उनकी संतानों ने उनकी जमीन-जायदाद ïआदि अपने नाम लिखवा लेने के बाद उनकी ओर से आंखें फेर कर उन्हें बेसहारा छोड़ दिया है। 

हाल ही में 2 ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनसे एक बार फिर इस गलत रुझान की पुष्टि हुई। पहला मामला महाराष्ट्र के पुणे का है जहां एक सेवानिवृत्त बुजुर्ग ने दो मंजिला मकान बनवाया ताकि वह अतिरिक्त आमदनी के लिए ऊपर का हिस्सा किराए पर दे सकें परंतु बेटे ने धोखे से स्टाम्प पेपर पर उनके हस्ताक्षर लेकर उस हिस्से पर कब्जा कर लिया। इस बीच जब पिता बीमार पड़े तो बेटे ने न सिर्फ उनके इलाज में कोई सहयोग नहीं दिया बल्कि घर के निचले हिस्से पर भी कब्जा जमा लिया। इस पर पिता ने पुणे के अतिरिक्त जिलाधिकारी के पास शिकायत की तो फैसला उनके पक्ष में आने पर बेटे ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी जिस पर बम्बई हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति साधना जाधव ने पुणे अदालत का फैसला बहाल रखते हुए पिता के घर पर अवैध रूप से कब्जा करने वाले बेटे को घर खाली करने का आदेश देते हुए कहा:

‘‘बच्चे सिर्फ अपने माता-पिता की संपत्ति पर हक ही न जताएं, उनकी देखरेख की जिम्मेदारी भी उठाएं और यदि बेटा घर खाली नहीं करता तो माता-पिता पुलिस का भी सहयोग ले सकते हैं।’’ ‘‘यह मामला गिरते सामाजिक मूल्यों की ओर इशारा करता है, इसलिए सरकार को  ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक कल्याण एवं भरण-पोषण कानून -2007’ के प्रावधानों को सख्ती से लागू करना चाहिए।’’ 

इसी प्रकार के एक अन्य मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजन गुप्ता ने 29 जून को स्पष्ट किया कि: ‘‘जायदाद अपने नाम पर हस्तांतरित करवा लेने के बाद अपने माता-पिता को वहां से बाहर निकाल देने वाली संतान के नाम पर किया गया हस्तांतरण रद्द करके उसे दंडित किया जा सकता है और उसे 3 महीने जेल एवं 5000 रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है।’’ इस मामले में एक महिला ने, जिसे उसके बेटे ने धोखे से उसका 14 मरले का मकान हड़प कर घर से निकाल दिया था, जून 2014 में अपने बेटे के पक्ष में किए गए मकान का हस्तांतरण रद्द करने के लिए धर्मकोट के एस.डी.ओ. व मैंटेनैंस ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष के समक्ष अपील की थी। इस पर उन्होंने 18 दिसम्बर 2015 को यह आवेदन स्वीकार करके याचिकाकत्र्ता के पक्ष में किया गया हस्तांतरण रद्द करने का आदेश दिया था। 

‘माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक कल्याण एवं भरण-पोषण कानून -2007’ की धारा 23 का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति राजन गुप्ता ने कहा, ‘‘यदि अपने नाम सम्पत्ति हस्तांतरित करवाने वाला सम्पत्ति देने वाले को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करता तो इसे धोखे से प्राप्त सम्पत्ति माना जाएगा।’’ ‘‘इस स्थिति में कानून ने वरिष्ठ नागरिक को यह विकल्प दिया है कि वह इस हस्तांतरण को रद्द करवा सके। इस मामले में साबित हो गया है कि याचिकाकत्र्ता बेटे ने अपनी बुजुर्ग मां को गुमराह करके उसे धोखा देने के और मकान से बाहर निकालने के इरादे से ही मकान अपने नाम लिखवाया।’’ न्यायमूर्ति राजन गुप्ता ने पीड़िता के बेटे की याचिका रद्द करते हुए कहा : ‘‘आज वरिष्ठ नागरिकों को अपने जीवन की संध्या में बुनियादी सुविधाओं और उनकी शारीरिक जरूरतों से वंचित करने के लगातार बढ़ रहे मामले रोकने के लिए यह कानून बनाया गया है और ट्रिब्यूनल ने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उक्त आदेश दिया जिसे बहाल रखा जाता है।’’ 

पहले बम्बई हाईकोर्ट और अब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा संतानों द्वारा पीड़ित बुजुर्गों को उनकी सम्पत्ति लौटाने के आदेश एक मार्गदर्शक हैं जिनका पालन यदि सभी संबंधित अधिकारी कठोरतापूर्वक करवाएं तो संतानों द्वारा उपेक्षित बुजुर्गों की दशा में काफी सुधार हो सकता है। भारत में जहां बुजुर्गों को अतीत में सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, आज बुजुर्गों की यह दयनीय स्थिति परेशान करने वाली एवं भारतीय संस्कृति और संस्कारों के विपरीत है। मां की गोद में आंख खुली, जग देखा बाप के कंधे चढ़ कर, सेवा बड़ी न होगी कोई, इन दोनों की सेवा से बढ़ कर। —विजय कुमार 

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