‘औटार्की’ की देश को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी

Edited By Pardeep,Updated: 12 Aug, 2018 01:47 AM

the country of  autarky  will pay a heavy price

जब मैं 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं से बात करता हूं तो मैंने पाया कि उनका ध्यान आकर्षित करने और उन्हें खुश करने के लिए बेहतरीन तरीकों में से एक यह है कि उन्हें पुराने अच्छे दिनों में ‘एक ट्रंक काल बुक करवाने’  अथवा  ‘स्कूटर खरीदने’ बारे बताया जाए।...

जब मैं 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं से बात करता हूं तो मैंने पाया कि उनका ध्यान आकर्षित करने और उन्हें खुश करने के लिए बेहतरीन तरीकों में से एक यह है कि उन्हें पुराने अच्छे दिनों में ‘एक ट्रंक काल बुक करवाने’  अथवा  ‘स्कूटर खरीदने’ बारे बताया जाए। सुनने वाला निश्चित तौर पर इन निष्कर्षों पर पहुंचेगा: 
1. कि मैं कहानियां या अनुभव घड़ रहा हूं।
2. कि मुझे तकनीक बारे पता नहीं है।
3. कि मैं उसके दादा से अधिक उम्र का हूं जिनका निधन 10 वर्ष पहले हुआ है।
सच यह है कि कहानियों का प्रत्येक शब्द सच है। भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या (35 वर्ष से कम आयु की)को पता ही नहीं है कि हम ऐसे देश में रहते थे जहां प्रशासनिक आर्थिक नियम सरकार नियंत्रित थे, सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व था, लाइसैंसिंग प्रणाली, स्वै निर्भरता, करोंं की उच्च दरें तथा निजी क्षेत्र को संदेह से देखा जाता था (कृषि क्षेत्र के अलावा)। 

जब आत्मनिर्भरता (औटार्की) आई
ऐसा नहीं है कि हमारे नेता तथा नीति-निर्माता बेवकूफ थे। हमारे बहुत से नेता अत्यंत शिक्षित, नि:संदेह समझदार थे और नि:स्वार्थी, निर्भीक जीवन जीते थे। हमारे प्रशासक युवा पुरुषों तथा महिलाओं में से चुने जाते थे, जिन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा का अवसर मिला था और उनमें एक लाभदायक नागरिक (नौकरी की सुरक्षा के अलावा) बनने की वास्तविक इच्छा थी। फिर भी, जब तरक्की की गई तो यह दुखद रूप से धीमी थी, जिसमें जी.डी.पी. औसत रूप से लगभग 3.5 प्रतिशत की दर और प्रति व्यक्ति आय प्रति वर्ष 1.3 प्रतिशत की दर से स्वतंत्रता के लगभग 30 वर्षों बाद तक बढ़ती रही। 

इस तरह की आर्थिक व्यवस्था का एक नाम था-औटार्की (अर्थात आर्थिक प्रणाली के तौर पर आत्मनिर्भरता)। चीन ने 1978 में औटार्की को छोड़ दिया था तथा भारत ने 1991 में। औटार्की कभी भी मरेगी नहीं और गहरे दफन रहेगी। यह समय पर अपना सिर उठाने का रास्ता खोज लेती है और ऐसा दिखाई देता है कि यही अब भाजपा नीत राजग सरकार के अंतर्गत हो रहा है। बाजार मित्र तथा व्यवसाय मित्र होने में बहुत बड़ा अंतर होता है। अपने गठन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) आर्थिक राष्ट्रवाद, स्वदेशी तथा आत्मनिर्भरता का समर्थक रहा है। इसकी व्यापारिक इकाई, भारतीय मजदूर संघ विदेशी निवेश के खिलाफ है। इसके मुख्य संगठनों में से एक, स्वदेशी जागरण मंच निश्चित तौर पर औटार्किक नीतियों के पक्ष में है। 

अतीत की ओर वापसी 
हाल के महीनों में इस बात के सबूतों में वृद्धि हो रही है कि भाजपा उन औजारों को अपने  अति-राष्ट्रवाद की कहानी के एक हिस्से के तौर पर  फिर पुनर्जीवित कर रही है जिन्हें काफी समय पहले खारिज कर दिया गया था। हम कुछ उदाहरणों पर नजर डालते हैं : 

1. ‘बाजार’ का अस्तित्व सरकार निरपेक्ष होता है। बाजार आर्थिक कुशलता तथा स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करते हैं।  बाजारों पर कड़े  नियंत्रण नहीं होने चाहिएं और सरकार केवल चुनिंदा परिस्थितियों में ही उनमें दखलअंदाजी करे। यहां तक कि सामाजिक लोकतंत्र को अपनाने वाले देशों (जैसे की स्कैंडेनेवियन देश) ने भी यह पाया है कि बाजार अर्थव्यवस्था उनके आॢथक दर्शन के उपयुक्त है। बाजार अर्थव्यवस्था पर भाजपा की स्थिति संदेहपूर्ण है। जहां यह व्यवसाय मित्र होने का दावा करती है, इसने आयात स्थानापन्नता टैरिफ तथा गैर टैरिफ अवरोधों, गुणात्मक प्रतिबंधों, मूल्य नियंत्रण लाइसैंसों के गुणों को पुन: खोज लिया है। 2014 के मुकाबले आज अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए अधिक औजार लगाए गए हैं। प्रत्येक निर्णय किसी ‘हित समूह’ की लाबिंग के मद्देनजर लिया जाता है, जो आमतौर पर किसी व्यक्तिगत व्यावसायिक घराने के लिए होता है। 

2. व्यापार अप्रत्याशित वैश्विक विकास का पहिया होता है जैसा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से देखा गया है। करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर खींचा गया है। छोटे देश, जिन्हें किसी समय मामूली समझा जाता था (जैसे कि सिंगापुर, ताईवान), अब वे फल-फूल रहे हैं और उच्च आय वाले देशों  में शामिल हो गए हैं। देशों को मुक्त व्यापार की ओर धकेलने वाला द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय व्यापार समझौता था और 1995 से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.)। ऐसा दिखाई देता है कि भाजपा नीत सरकार को व्यापार समझौतों की उपयोगिता पर विश्वास नहीं है और भारत अब डब्ल्यू.टी.ओ. में एक ताकतवर आवाज नहीं रह गया है। इसका हालिया उदाहरण प्रस्तावित रीजनल काम्प्रीहैंसिव इकनामिक पार्टनरशिप की उपयोगिता की समीक्षा के लिए एक समिति की नियुक्ति की है जो अपने बीच व्यापार का विस्तार करने के लिए 10+6 देशों को जोड़ेगी। 

कीमत बड़ी होगी
3. भाजपा नीत सरकार पूर्वव्यापी करों को लागू करने का अपना जुनून छोडऩे को तैयार नहीं। 2014 में इसे जो चीज पहले करनी चाहिए थी वह यह कि आयकर कानून के तथाकथित वोडाफोन संशोधन को निरस्त कर देती। इसके विपरीत न केवल वोडाफोन पर कर की मांग जारी रखी गई बल्कि इसी तरह की पूर्वव्यापी मांगें भी अन्य लेन-देन के संबंध में उठाई गर्ईं। इसके अतिरिक्त सरकार लगभग हर महीने कर दरों के साथ छेड़छाड़ कर रही है जैसे कि कस्टम ड्यूटीज तथा जी.एस.टी. दरें (मूल पाप को सुधारने के लिए)। 

4. अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कदमों पर चलते हुए नरेन्द्र मोदी ने संरक्षणवादी नीतियों को अपने समर्थन का संकेत दिया है। संरक्षणवाद उपभोक्ताओं को नुक्सान पहुंचाएगा, मांग को दबाएगा तथा स्रोतों के गलत आबंटन का मार्ग प्रशस्त करेगा और निवेश बारे गलत निर्णय लिए जाएंगे। मुझे आश्चर्य है कि आयात में कमी लाने के तरीकों की पहचान करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। ई-कामर्स पर मसौदा नियम गड़बड़ आर्थिक सोच का नवीनतम उदाहरण है।

5. औटार्की केवल नौकरशाही के सशक्तिकरण द्वारा फल-फूल सकती है, विशेष कर अधिकारियों तथा जांच एजैंसियों के। भाजपा नीत सरकार ने केवल इतना ही किया है कि और अधिक अधिकारियों को असामान्य ताकतें (जैसे जांच, जब्ती तथा गिरफ्तारी) दी है और कानूनों का आपराधीकरण किया है। उदाहरण के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून गैर आपराधिक था, अब इसमें आपराधिक कानून की धारा है। नीति निर्माण में अराजकता थी-नोटबंदी तथा जी.एस.टी. को लागू करने में विफलता। अब अराजकता के साथ औटार्की भी शामिल हो गई है। मुझे डर है कि देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।-पी. चिदम्बरम

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