दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेल रही तानाशाह शासकों की मनमानियां

Edited By ,Updated: 15 Dec, 2020 04:37 AM

the dictates of dictator rulers pushing the world towards the third world war

जैसे-जैसे विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों में तानाशाही और स्वार्थलोलुपता बढ़ रही है, उसी अनुपात में लोगों में असंतोष व आक्रोश बढ़ रहा है। इससे विश्व में अशांति और हिंसा बढ़ रही है और ऐसा लग रहा है कि दुनिया एक और विश्व युद्ध की ओर ....

जैसे-जैसे विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों में तानाशाही और स्वार्थलोलुपता बढ़ रही है, उसी अनुपात में लोगों में असंतोष व आक्रोश बढ़ रहा है। इससे विश्व में अशांति और हिंसा बढ़ रही है और ऐसा लग रहा है कि दुनिया एक और विश्व युद्ध की ओर अग्रसर है। 

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश अमरीका में राष्ट्रपति ट्रम्प की नीतियों के विरुद्ध भारी रोष व्याप्त है। सबसे पहले ट्रम्प के कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त करने के अति आत्मविश्वास ने देश में कोरोना बढऩे दिया और इसके चलते लाखों लोग मारे गए। इसका खमियाजा ट्रम्प को चुनावों में बाइडेन के हाथों करारी हार के रूप में झेलना पड़ा और चुनाव नतीजों को चुनौती देने वाली ट्रम्प की याचिकाएं भी अदालत में खारिज हो चुकी हैं। इस हार के बाद ट्रम्प दूसरी बार दीवालिया होने की कगार पर पहुंच गए और अमरीका से पलायन की तैयारी में बताए जाते हैं। इस बीच जहां उनकी पत्नी मेलानिया द्वारा उनसे तलाक लेने की संभावना व्यक्त की जा रही है वहीं ट्रम्प ने अमरीका में अपने समर्थकों से दंगे भी करवाए। 

अमरीका के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश रूस भी राष्ट्रपति पुतिन की तानाशाही के चलते आंतरिक फूट की तरफ बढ़ रहा है। हालांकि रूस को पूर्व तानाशाह स्टालिन से मुक्ति मिलने के बाद गोर्बाच्योव ने देश में लोकतंत्र की बहाली की दिशा में कदम उठाए परन्तु वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन ने रूस के मुसलमानों को अलग-थलग करने की ठान ली है और यहां तक कह दिया है कि उन्हें मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आवश्यकता ही नहीं है। पुतिन की तानाशाही नीतियों के खिलाफ पिछले दिनों सुदूरवर्ती ‘खबरोव्स्क’ शहर के गवर्नर ‘सरगई फोर्गाल’ की गिरफ्तारी के विरुद्ध हजारों स्थानीय लोग पुतिन के इस्तीफे की मांग पर बल देने के लिए सड़कों पर उतर आए। रूस के पड़ोसी चीन में भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शिनजियांग प्रांत तथा अन्य स्थानों पर रहने वाले उइगर मुसलमानों पर अत्याचार जारी हैं और उनकी आबादी घटाने के लिए जब्री नसबंदी की जा रही है। 

यही नहीं, हांगकांग, शिनजियांग, वियतनाम, तिब्बत, मंगोलिया तथा ताईवान के लोगों पर चीन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध हाल ही में लंदन और टोक्यो में चीनी दूतावासों के बाहर प्रदर्शन किए गए। चीन ने तिब्बत पर भी कब्जा कर रखा है जिस कारण वहां भी चीन के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि चीन भारत के विरुद्ध जारी छद्म युद्ध के तहत पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश तथा श्रीलंका को भारी आॢथक सहायता देकर भारत के विरुद्ध लामबंद करने की कोशिश में भी जुट गया है। उत्तरी कोरिया में भी तानाशाह ‘किम-जोंग-उन’ की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध जनरोष भड़का हुआ है जिन्होंने तमाम लोकतांत्रिक अधिकारों को निलम्बित करते हुए अपनी बहन को देश की अगली सर्वेसर्वा बनाने का निर्णय कर रखा है जो देश के मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय ले रही हैं हालांकि उत्तर और दक्षिण कोरिया के लोगों की नस्ल एक ही है। 

एशिया में चीन का सबसे करीबी दोस्त पाकिस्तान भी इन दिनों भारी असंतोष का शिकार है तथा वहां आई.एस.आई. और सेना की मनमानियों के कारण इमरान खान की सरकार संकट में आ गई है। मजबूरी में इमरान को अपने विरोधी शेख रशीद अहमद को पाकिस्तान का गृह मंत्री बनाना पड़ा है जिसका कहना है कि पाकिस्तान के पास 100 और 250 ग्राम तक के एटम बम हैं जो भारत में किसी भी खास लक्ष्य को तबाह कर सकते हैं। वहां 11 विपक्षी दलों के गठबंधन ‘पाकिस्तान डैमोक्रेटिक मूवमैंट’ (पी.डी.एम.) ने सरकार के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर रखा है। इसी सिलसिले में गठबंधन द्वारा 13 दिसम्बर को पाकिस्तान में भारी प्रदर्शन किए गए और अब विपक्षी दलों ने इमरान सरकार के विरुद्ध लम्बे कूच का ऐलान कर दिया है। 13 दिसम्बर से ही पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गिलगित-बाल्तिस्तान में भी इमरान सरकार की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध भारी प्रदर्शन जारी हैं। 

भारत के साथ रोटी और बेटी के पुरातन काल के सम्बन्धों वाले नेपाल में भी सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों तथा प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के भारत विरोधी सुरों के विरुद्ध भारी रोष भड़का हुआ है। अन्य मांगों के अलावा वहां देश को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध प्रदर्शन जारी हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार विश्व में लोकतंत्र की स्थिति कमजोर हुई है और निरंकुश शासन या तानाशाही का समर्थन करने वाली ताकतों की संख्या में वृद्धि हुई है और इन घटनाओं के पीछे सरकारों की तानाशाही प्रवृत्ति का योगदान भी है। ऐसे में ये देश विश्व को टकराव की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसी आशंका है कि कहीं दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ न बढ़ जाए।-विजय कुमार 

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