शहरीकरण और नैतिक मूल्यों के क्षरण ने देश में बिगाड़ी बुजुर्गों की हालत

Edited By ,Updated: 22 Sep, 2020 03:19 AM

the erosion of moral values spoiled the condition of the elderly in the country

60-70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते अनेक लोगों का शरीर और स्मरणशक्ति कमजोर होने लगती है तथा उनकी कार्यक्षमता पहले जैसी नहीं रहती। लोग उन्हें ‘बुजुर्ग’ कहने लगते हैं तथा उन्हें पहले की तुलना में अपने परिजनों की मदद व सहारे की...

60-70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते अनेक लोगों का शरीर और स्मरणशक्ति कमजोर होने लगती है तथा उनकी कार्यक्षमता पहले जैसी नहीं रहती। लोग उन्हें ‘बुजुर्ग’ कहने लगते हैं तथा उन्हें पहले की तुलना में अपने परिजनों की मदद व सहारे की अधिक जरूरत महसूस होने लगती है। ऐसे में संतानों द्वारा अपने माता-पिता या अन्य बुजुर्गों से स्नेह और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है परंतु वास्तविकता इससे बहुत भिन्न है। आज भी भारत में बुजुर्गों के हितों की रक्षा करने वाले कानूनों की मौजूदगी के बावजूद विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में बुजुर्ग संतानों की उपेक्षा के शिकार हैं। 

भारतीय परिवारों में बुजुर्गों की स्थिति के बारे में हाल ही में ‘पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीच्यूट आफ मैडीकल एजुकेशन एंड रिसर्च’ चंडीगढ़ तथा ‘आल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ मैडीकल साइंसिज’ बङ्क्षठडा द्वारा करवाए  एक संयुक्त अध्ययन में बुजुर्गों की दशा बारे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं जिसके अनुसार : 

* वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों में पंजाब भी शामिल है जहां कुल जनसंख्या में से 10 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 60 वर्ष या अधिक है।
* तेजी से हुए सामाजिक, आॢथक बदलावों और कमजोर हो रहे पारिवारिक रिश्तों के चलते बुजुर्गों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है और वे अपने ही लोगों के हाथों दुव्र्यवहार के शिकार हो रहे हैं। 

* अध्ययन में शामिल 60 वर्ष से 86 वर्ष तक की आयु के 311 बुजुर्गों में से 24 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उन्हें पिछले 12 महीनों के अंदर अपने परिजनों की ओर से दुव्र्यवहार का सामना करना पड़ा है।
* 20 प्रतिशत से अधिक बुजुर्गों ने बताया कि उन्हें अपने परिवार में कम से कम किसी एक सदस्य से डर लगता है।
* 15 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उनके आस-पास रहने वाले किसी न किसी व्यक्ति ने उन्हें चोट पहुंचाने की कोशिश की।
* 21 प्रतिशत से अधिक बुजुर्गों ने कहा कि उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें नाम लेकर पुकारा या अपनी किसी हरकत से बुरा महसूस करवाया। 

* 46 प्रतिशत बुजुर्गों ने अपने साथ धक्का-मुक्की किए जाने या धमकियां देने तथा 20 प्रतिशत बुजुर्गों ने उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए विवश करने की शिकायत की।
* 39 प्रतिशत बुजुर्गों ने अत्यधिक चिंताग्रस्त रहने, 54 प्रतिशत ने अवसाद व 38.6 प्रतिशत ने अकेलेपन की पीड़ा की शिकायत की।
* अध्ययन के अनुसार हालिया वर्षों के दौरान लगातार बढ़ रहे शहरीकरण और पारंपरिक उच्च भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण तथा परिवारों का आकार बढऩे के साथ-साथ बुजुर्गों से दुव्र्यवहार बढ़ा है और सम्पत्ति पर अधिकार करने की लालसा का भी इसमें योगदान है। 

* अध्ययन में जो खास बात कही गई है उसके अनुसार एक साथ मैडीकल और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का शिकार हो जाने के कारण बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो गई है अत: उनके साथ किए जाने वाले दुव्र्यवहार का समय-समय पर जायजा लेते रहने की जरूरत है। 
बुजुर्गों की स्थिति के बारे में उक्त अध्ययन आंखें खोलने वाला है परंतु केवल पंजाब में ही नहीं लगभग समूचे देश में बुजुर्गों का ऐसा ही हाल है जो निम्र में दर्ज हाल ही के चंद उदाहरणों से स्पष्ट है :

* 27 अगस्त को हरियाणा में गोहाना के बरोदा थाना के गांव में रहने वाली 75 वर्षीय वृद्धा ने जायदाद के लोभी अपने बेटे और बहू पर उसे घर से निकाल देने का आरोप लगाया।
* 02 सितम्बर को राजस्थान के कोटा शहर में रोहित नामक एक युवक ने पहले तो अपनी मां से मारपीट की और फिर रात में अपने पिता मुकेश को लाठी से इतना पीटा कि उनकी मौत हो गई। 
* 07 सितम्बर को डेराबस्सी में एक युवक ने अपनी बुजुर्ग मां और बीमार भाई को मारपीट कर घर से निकाल दिया। 

* 09 सितम्बर को उत्तर प्रदेश में कानपुर के निकट डेरापुर थाना क्षेत्र के कोरवा गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग हरि शंकर ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई कि 20 अगस्त को उनके बेटे संदीप कुमार ने उन्हें बुरी तरह पीटकर घर से निकाल दिया तो वह खेत में झोंपड़ी बनाकर रहने लगे परंतु 9 सितम्बर को संदीप वहां भी आ धमका और उन्हें जला कर मारने की कोशिश की। 
* 13-14 सितम्बर की मध्य रात्रि को लुधियाना के हैदों गांव में एक पूर्व सैनिक की 70 वर्षीय विधवा को उनके गोद लिए बेटे ने नशे के लिए पैसे न देने के कारण मार डाला। 

इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें पर इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु अक्सर वे यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है।—विजय कुमार

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