दिग्गज नेताओं और सहयोगी दलों की उपेक्षा भाजपा के लिए नहीं उचित

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Oct, 2017 01:28 AM

the neglect of veteran leaders and allies is not appropriate for the bjp

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ और श्री वाजपेयी ने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया। श्री वाजपेयी ने...

1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ और श्री वाजपेयी ने राजग के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया। 

श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया परंतु उनके सक्रिय राजनीति से हटने के बाद न सिर्फ भाजपा के यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण शौरी जैसे अपने लोग नाराज हो गए बल्कि इसके कुछ गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए तथा शिवसेना जैसे पुराने और समविचारक सहयोगी इससे बुरी तरह नाराज हैं। एक ओर जहां भाजपा ‘मिशन 2019’ को सामने रख कर चुनाव प्रचार में अभी से जुट गई है तथा इसके नेताओं ने विभिन्न राज्यों का दौरा करने का सिलसिला भी प्रारम्भ कर दिया है तो दूसरी ओर इसके विजय अभियान को झटका लगना भी शुरू हो गया है जिसका प्रमाण गत दिवस नांदेड़ नगर निगम चुनावों और फिर गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव परिणामों में सामने आया। 

जहां नांदेड़-वाघाला नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा और शिवसेना दोनों को धूल चटाते हुए 81 में से 73 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया वहीं गुरदासपुर उप-चुनाव में भी कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने लगभग 1 लाख 93 हजार वोटों के अंतर से भारी जीत दर्ज करके भाजपा के विजय अभियान को ठेस पहुंचाई है। नांदेड़ चुनाव में अपनी हार से अविचलित शिव सेना ने 13 अक्तूबर को भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘‘भाजपा को मात्र 6 सीटों पर समेट कर इन नतीजों ने एक संदेश दिया है कि भगवा पार्टी को हराया जा सकता है।’’ 

शिव सेना ने पार्टी के मुख पत्र ‘सामना’ में एक सम्पादकीय में लिखा कि, ‘‘भाजपा ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस तथा उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने चुनाव प्रचार अभियान में भाग लिया था लेकिन उनका उसी तरह सफाया हुआ जिस तरह दिल्ली में ‘आप’ ने भाजपा का सफाया किया था।’’ केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार में राजग के सहयोगी दल ने संपादकीय में यह भी लिखा कि इस चुनाव से सबसे बड़ा सबक यह मिलता है कि धन, बल और खरीद-फरोख्त की राजनीति हमेशा काम नहीं आती। 

यहीं पर बस नहीं, शिव सेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने भी एक साक्षात्कार में कहा है कि ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर अब समाप्त हो गई है और भाजपा की उम्मीदवार ने मुम्बई महानगर पालिका का जो चुनाव जीता था वह उम्मीदवार की सास की मृत्यु से मिले सहानुभूति वोट के कारण संभव हुआ था।’’ आज देश में दोनों बड़े दलों कांग्रेस और भाजपा में से जहां कांग्रेस अब तक हाशिए पर चल रही थी वहीं भाजपा सफलता के शिखर की ओर तेजी से बढ़ रही थी परंतु पार्टी के लोगों की अति महत्वाकांक्षा, अनेक वरिष्ठï सदस्यों तथा शिव सेना जैसे सहयोगी दल की नाराजगी और नोटबंदी तथा जी.एस.टी. जैसे फैसलों के चलते लोगों की मुश्किलों में वृद्धि ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। पार्टी के वरिष्ठï सदस्यों के विचारों की अनसुनी तथा उनके उपहास का भी नकारात्मक संदेश लोगों में गया है। 

अब जबकि चुनावों में 2 वर्ष ही रह गए हैं, भाजपा के लिए यह सोचने की घड़ी है कि पार्टी के अंदर यह क्या हो रहा है। यदि पार्टी के दिग्गज और सहयोगी नाराज हैं तो उन्हें मनाना चाहिए और यदि कोई कमी है तो उसे दूर करना चाहिए। आखिर शिव सेना जैसी पार्टी जो विचारों में भाजपा के इतना नजदीक है उसके साथ अब इतनी दूरी क्यों? आज आवश्यकता इस बात की है कि पार्टी में वरिष्ठï और उपेक्षित लोगों की आवाज को सुना जाए और उनकी असहमति को दूर किया जाए।

यदि काम में कोई त्रुटि है तो सबको साथ लेकर चलते हुए उसे दूर किया जाना चाहिए और सहयोगी दलों की नाराजगी को भी दूर किया जाए। पार्टी के भीतर और सहयोगी दलों के साथ लगातार बढ़ रही कटुता निश्चय ही भाजपा के हित में नहीं। भाजपा नेतृत्व को सोचना चाहिए कि अपने पुराने वरिष्ठï साथियों और गठबंधन सहयोगियों की उपेक्षा करना अंतत: पार्टी और राजग के लिए अहितकर ही सिद्ध होगा।—विजय कुमार  

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