Edited By ,Updated: 09 May, 2019 12:26 AM
प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं पर आज जमाना बदल गया है। बुढ़ापे में जब बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें बुजुर्गों से उनकी...
प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं पर आज जमाना बदल गया है। बुढ़ापे में जब बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें बुजुर्गों से उनकी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवाने के बाद माता-पिता की ओर से आंखें फेर कर उन्हें अकेला छोड़ देती हैं।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में मुम्बई की 80 वर्षीय बुजुर्ग विधवा अमीना शेख का सामने आया जिन्हें उनके बेटे ने घर से निकाल कर भीख मांग कर पेट भरने और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेसहारा छोड़ दिया है। श्रीमती अमीना के अनुसार मुम्बई में कुर्ला के इंदिरा नगर के मरियम कम्पाऊंड में उनकी काफी जमीन-जायदाद थी। अमीना के बेटे नजीर ने धोखे से उन्हें बताए बिना उनके अंगूठे के निशान लेकर सारी जमीन अपने नाम लिखवा कर सईद खान नामक व्यक्ति को बेच दी।
इसके बाद नजीर ने मां को घर से निकाल दिया और दूसरी जगह रहने के लिए चला गया। अब यह बदनसीब वृद्धा कुछ दयावान लोगों की सहायता से अपने जीवन की संध्या बिता रही हैं और इनका कहना है कि : ‘मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि अपनी जिंदगी की शाम मुझे एक भिखारिन और लावारिस के रूप में गुजारनी पड़ेगी और पेट भरने के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ेंगे।’
यह किसी एक बुजुर्ग की कहानी नहीं है। संतानों की उपेक्षा के कारण आज ऐसे न जाने कितने बुजुर्ग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं जिस कारण देश में वृद्धाश्रमों की आवश्यकता बढ़ गई है। इसीलिए हम बार-बार यह लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें और बिना संतुष्टिï किए किसी कागज या दस्तावेज पर अपने अंगूठे का निशान या हस्ताक्षर भी न दें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं। —विजय कुमार